मध्यप्रदेश, ;- जैन धर्म के 24 वे तीर्थंकर महावीर स्वामी का जन्म ईसापूर्व 599 में वैशाली के समीप कुंडग्राम में हुआ था। महावीर स्वामी का वास्तविक नाम वर्धमान था। महावीर स्वामी युवावस्था की 30 वर्ष की आयु में ही गृहत्याग कर तपस्या के लिए चले गए थे।उनको 42 वर्ष की आयु में केवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ। भगवान महावीर स्वामी के अनुयाई में राजा बिंबिसार, कुणिक.चेटक प्रमुख थे।जैन ग्रंथों के अनुसार धर्म तीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है जो सभी जीवो को आत्मिक सुख प्राप्ति का उपाय बताते हैं। भगवान महावीर स्वामी अवसर्पिणी काल के चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर थे।उन्होंने दुनिया को सत्य अहिंसा का पाठ पढ़ाया। दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत अहिंसा सत्य अपरिग्रह, अस्तेय ब्रह्मचर्य का ज्ञान दिया। अनेकांतवाद श्यादवाद और अपरिग्रह जैसे महाव्रती सिद्धांत दिए। महावीर स्वामी के सर्वोदयी तीर्थों में क्षेत्र काल समय जाति की सीमाएं नहीं थी।महावीर स्वामी का जियो और जीने दो का सिद्धांत आज भी वंदनीय है। इक्ष्वाकु वंश क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहां जन्म के बाद भी उन्होंने संन्यास को अपनाया और समाज को नई दिशा प्रदान की। भगवान महावीर ने जिनकल्पी श्रवण की कठिन चर्या को अंगीकार किया। साधना काल के समय उन्होंने कठोर तपस्या की और मौन रहे। भगवान महावीर स्वामी जीवन भर केवल ज्ञान की प्राप्ति के लिए उपदेश देते रहे। महावीर स्वामी के11 गणधर थे। जिनमें प्रथम इंद्रभूति थे। वे अहिंसा के परम उपासक थे, वे केवल वध ही नहीं वरन मन में किसी के प्रति बुरा विचार को भी हिंसा मानते थे। भगवान महावीर ने आत्मिक और शाश्वत सुख की प्राप्ति के लिए अहिंसा धर्म का उपदेश दिया। भगवान महावीर स्वामी को वीर, अतिवीर, सन्मति भी कहा जाता है। 527 ईसा पूर्व 72 वर्ष की आयु में कार्तिक कृष्ण अमावस्या को उनका पावापुरी में महानिर्माण हुआ। जहां आज एक जल मंदिर भी स्थित है।
डॉ विजय पाटिल
शिक्षक सह साहित्यकार
सेंधवा जिला बड़वानी मप्र