विजय की ✒कलम

बिलासपुर :- ☝एक बात हमेशा याद आती है जो
लोग कहते रहते हैं कुर्सी की राजनीति सबसे गंदी राजनीतिक होती है? और जो कुर्सी का नशा है वो सब कुछ करवा देता है?
🏡घर परिवार 👬दोस्त😎 यार रिश्तेदार सबसे नाता तुड़वा भी देता है और जुड़वा भी देता है?
मतलब कि, स्वार्थ की राजनीति जब किसी व्यक्ति या संस्था समाज में घुस जाए तो उसका भी बेड़ा गर्क होना तेए है?
आजकल की राजनीतिक से तो भगवान ही बचाए?
पर हम देश की राजनीति और प्रदेश की राजनीति की बात नहीं कर रहे हैं हम बात कर रहे हैं बिलासपुर सिंधी समाज की राजनीति की ?
अब आप सोचेंगे कि समाज में राजनीति कहां से आ गई?
पहले ऐसा नहीं था पर कहते हैं ना जब लक्ष्मी आती है और सत्ता पावर आता है तो साथ में अवगुण भी अपने आप ही पीछे-पीछे आ जाते हैं ?
पर हमारी नजर सत्ता और लक्ष्मी एंव पावर पर रहती है ?

इसलिए हम अवगुणों को 👀देख नहीं पाते हैं इसका नतीजा सबके सामने बाद में पता चलता है 🔍👀❗
कहने का तात्पर्य यह है कि पहले कुछ नहीं था तो सब खुश थे चाहे वह 🏡घर परिवार हो चाहे दुकान हो या समाज हो कम में सब 😃खुश थे,
और आज ज्यादा है फिर भी दुखी हैं क्यों?
संत महात्माओं के यहां देख लो लाखों में लोग सत्संग सुनने पहुंचते हैं पर उन लाखों में दो-चार ही वीर्ले होते हैं जो सत्संग की बातों को ग्रहण कर कर अपने जीवन में अमल करते हैं,?
और वही लोग सच्चे सुखी होते हैं?
👪भीड़ कम नहीं हो रही है न, ही,संत महात्मा कम हो रहे हैं? दिन- ब दिन नये नये संत महात्मा बढ़ते जा रहे हैं?
भीड़
🏡घर दुकान में गुरु👳🔮के बड़े-बड़े फोटो लगाने से कुछ नहीं होगा? जब तक आप उनके बताए हुए अमृत वचनों को अपने जीवन में उतारेंगे नहीं तब तक दुख तकलीफ परेशानी कम नहीं होगी?
हमारा समाज भी बहुत खुशहाल समाज है और पुरुषार्थी समाज है शांत सह भाव वाला समाज है पर कुछ धन्ना सेठो की नजर लग गई है?
और उन्हीं की गंदी नजर के कारण गंदी राजनीति समाज में घुस गई है?
जीसके कारण कुछ समय से भूचाल आ पड़ा है?
हर कोई पद और कुर्सी के पीछे भाग रहा है पावर और धन दौलत के पीछे भाग रहा है?
जिसके कारण ऐसे ऐसे अहित हो रहे हैं वह ऐसे ऐसे कार्य हो रहे हैं जो समाज हित में नहीं है? और वो नहीं होने चाहिए?
2 साल पूर्व कश्यप कॉलोनी के एक भाई साहब अध्यक्ष बने थे और बहुत अच्छा कार्य कर रहे थे पर कुछ समय के बाद पूज्य सिंधी सेंट्रल पंचायत का चुनाव होने वाला था
वह 👦 अध्यक्ष मेरे अच्छे मित्र भी थे मैंने उन्हें बहुत समझाया की अपने धर्म का पालन करना न्याय नीति और ईमानदारी से कार्य करना पर कहते हैं ना सत्ता जो कुछ भी करवा कम है?
उसने मेरी बातों को अनसुना कर दिया और कुछ धन्ना सेठो की जाल में फंसकर अपना ही अहित कर दिया?
फिर उसका भी कार्यकाल समाप्त हुआ वह चुनाव में खड़ा हुआ जिन लोगों ने वादे किए थे बड़े-बड़े सारे वादे तोड़ दिए? अकेला इसे छोड़ दिया फिर भी यह लड़ने के लिए तैयार था मैंने कहा अच्छी बात है पर इतिहास में पहली बार देखा गया है कि चुनाव के चंद घंटे पूर्व एक सेंट्रल पंचायत का पूर्व मुखी आता है और पता नहीं क्या खिचड़ी पकाई उसने , और क्या कहानी बताई उस भाई साहब को, कि कुछ समय बाद
अपना नाम वापस ले लीया ?
जब मैंने कई बार पूछा कि भाई 4 घंटा पूर्व चुनाव होने वाला था फिर नाम वापस लेने का मतलब क्या है ?
क्या बातें हुई हैं कौन सा प्रलोभन दिया गया है? यां ऐसी कौन सी उनके हाथ में तुम्हारी नस दब गई है या पकड़ में आ गई है जो तुमने ऐसा काम किया?
पर उस समय उसने कुछ नहीं कहा?
मजे की एक बात और है की पहली बार रात्रि में चुनाव होने वाला था आज तक कभी नहीं हुआ हमारे समाज में रात्रि को चुनाव पर इस बार रात्रि को चुनाव होने वाला था?
और अब जो बातें पता चल रही है उसे सुनकर हंसी के अलावा और कुछ नहीं आ रहा है?
सब हलुवा है दिखावे का
यह हलुवा है जो खिलाएंगे नहीं सिर्फ दिखाएंगे और उल्लू बनाएंगे?
उस पंचायत में नई कार्यकारिणी का गठन हुआ एक पूर्व मुखी को जो सम्मान जनक पद मिलना चाहिए था पर वह पद भी नहीं मिला?
कार्यकारिणी का सदस्य मात्र बनाया गया जो वरिष्ठ के हिसाब से और एक भाई साहब के सम्मान के हिसाब से वह छोटा था और उचित भी नहीं था ?
एक अपमान जैसा यह पद था?
उसके जख्मों पर मलहम लगी कि न लगी यह तो वक्त ही बताएगा?
पर समय आगे बीता 2025 आया और सेंट्रल युवा विंग का कार्यकाल भी समाप्त हुआ 30 या 31 जुलाई को उसकी बैठक आयोजित की गई जीसमें वर्तमान अध्यक्ष ने अपना इस्तीफा दिया ?
आय वय का ब्यौरा दिया और नए अध्यक्ष के बारे में चर्चा शुरू हुई जैसा कि सभी लोग मानकर चल रहे थे कि नया अध्यक्ष वह बनेगा जो कि
4 सालों से महामंत्री पद पर है और करीबन जब से युवक समिति बनी है तब से उसका सदस्य है और निरंतर मेहनत कर रहा है सेवा कर रहा है जिसका नाम है नीरज जाग्यासी तो वही अध्यक्ष बनेगा पर ऐसा नहीं हुआ?
उस मीटिंग में कहा जाता है कि बहुत वाद विवाद हुआ नाम पर पर?
किसी तरह चद धन कुबेरों ने और एक तानाशाह ने युवाओं को रोक दिया?
कहा कि अभी सेंट्रल पंचायत का चुनाव होने वाला है इसलिए आप अभी शांत रहिए उसके बाद देखा जाएगा ?
और पद जो ईमानदार है मेहनती है और आप सभी से विचार विमर्श करके जीसे आप चाहते हो उसे देंगे?
इस लालच में फंस गए बेचारे? और सेंट्रल पंचायत चुनाव में दिन-रात मेहनत करने लगे पसीना बहा दिया और उसका रिजल्ट भी सबके सामने है?
जबकि अध्यक्ष कौन बनेगा यह पहले से ही डिसाइड हो चुका था?
सिर्फ नाम की घोषणा होनी बाकी थी?
पर तानाशाह और धन्ना सेठों को यह पता नहीं था?
कि इस भाई साहब के साथ शहर के और युवा विंग के काफी सारे युवा इसके सपोर्ट में और साथ में हैं ?
यही से खेल हुआ शुरू नाम दो थे वह चार हो गए?
जो दो नाम और थे इनका सरनेम भी एक ही था मतलब एक ही सरनेम वाले तीन नाम हो गए पर पद किसे मिलेगा सबको पता था फिर भी दो सरनेम वाले उन नाम को आगे किया गया ताकि समय आने पर यह कहा जाए कि भाई जो इसके सपोर्ट में बैठेगा उसे ही अध्यक्ष बनाया दिया जाएगा?
एक खेल खेला गया उस भाई साहब के साथ क्योंकि अध्यक्ष पद देना नहीं था ?
अध्यक्ष उसे बनाना नहीं था? अध्यक्ष तो किसी और को बनाना था जो फाइनल हो चुका था?
भाई साहब को तो सिर्फ लॉलीपॉप खिलाया गया उल्लू बनाया गया?
कई लोग दबी 👅जुबान से यह बात कहते हैं की भाई साहब बेचारा मध्यम वर्ग का है धना सेठ नहीं है ?
और ना ही बड़े-बड़े धन्ना सेठ इसके गॉडफादर भी नहीं है ?
इसलिए इसके साथ ऐसा किया गया है?
और इसे अध्यक्ष नहीं बनाया गया है,? जबकि यह बहुत काबिल मेहंती और ईमानदार मिलनसार युवा है?
इस बात को तो आप सब मानते हैं की चलती सिर्फ एक व्यक्ति की है बाकी सब कठपुतली है?
हाल ही में सेंट्रल पंचायत कि नई कार्यकारिणी की घोषणा की गई और महिला विंग युवा विंग कि कार्यकारिणी का शपथ ग्रहण कार्यक्रम आयोजित किया गया उसमें वह भाई साहब भी पहुंचा पर जो खुशी बाकी लोगों में थी वह उसके चेहरे पर नहीं थी?
( 💜❤दिल में दर्द था ओर 😢आंखों में गमों के आंसू भरे पड़े थे पर किसी तरह उन्हें रोक कर रखा था)
एक पुरानी फिल्म के गाने का एक लाइन याद आ रही है जो शायद वह मन में सोच रहा होगा?
( 💜❤दिल के अरमांन आंसुओं में डूब गए हम सबके हुए पर कोई हमारा न हुआ )
☺✨सपने में भी नहीं सोचा था कि उसके साथ भी खेला हो जाएगा
और एक ईमानदार मेहंती भाई साहब फिर से राजनीति की गंदी बिसात में मोहरा बनाकर पिट जाएगा
अब सबको याद आती है विजय की कलम और हमर संगवारी क्योंकि सच बया वही करते हैं जो सच की राह पर चलते हैं बाकी सभी लोग👫👬👭तो मतलब की यारी मतलब की रिश्तेदारी और
मतलब की दोस्ती निभाते हैं एवं बीच मझधार में छोड़कर चले जाते हैं
हमारा आज भी वही सवाल है क्या इससे समाज का उद्धार होगा?
आने वाली युवा पीढ़ी का उद्धार होगा?
निर्म वर्ग और मध्यम वर्ग को सत्ता की चाबी कब मिलेगी?
या उनका भी इस भाई साहब की तरह आगे भी इसी तरह दोहन करते रहेंगे ?
और धन्ना सेठ अपने पुत्रों को कुर्सी में बैठाते रहेंगे?
संपादकीय