भारतीय महिला क्रिकेट टीम की जीत -एक क्रांति,एक नई शुरुआत ,बीसीसीआई द्वारा आर्थिक पुरस्कारों की बारिश- क्या टीम को विजय परेड मिलेगी?

भारत की उन 70 करोड़ महिलाओं की सामूहिक जीत है, जिन्हें अक्सर यह कहकर पीछे धकेल दिया जाता रहा कि “यह काम तुम्हारे बस का नहीं।”

भारतीय महिला क्रिकेट टीम की यह जीत इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में दर्ज होगी। विजय परेड,आर्थिक पुरस्कार, आईसीसी द्वारा घोषित “टीम ऑफ द टूर्नामेंट” अब महिला क्रिकेट “साइड स्टोरी” नहीं, बल्कि मुख्य कथा बन चुकी है- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र

गोंदिया – वैश्विक स्तरपर 2 नवंबर 2025 यह तारीखआने वाले वर्षों में भारतीय खेल इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में दर्ज की जाएगी।यह दिन केवल एक क्रिकेट मैच की जीत का नहीं, बल्कि उस सोच की पराजय का प्रतीक है जिसने सदियों तक भारतीय नारी को सीमाओं में जकड़ कर रखा। यह विजय न केवल भारतीय महिला क्रिकेट टीम की है, बल्कि यह भारत की उन 70 करोड़ महिलाओं की सामूहिक जीत है,जिन्हें अक्सर यह कहकर पीछे धकेल दिया जाता रहा कि “यह काम तुम्हारे बस का नहीं।”इस दिन भारत की बेटियों ने साबित कर दिया कि अगर संकल्प अटूट हो,तो हर मैदान जीता जा सकता है,चाहे वह घर का हो या खेल का।इस ऐतिहासिक विजय ने भारतीय खेल जगत कीपरंपराओं को झकझोर दिया है। यह सिर्फ एक ट्रॉफी जीतने की कहानी नहीं,बल्कि समाज के भीतर पनपी लैंगिक असमानता के खिलाफ एक बगावत है।दशकों तक महिला क्रिकेट को


“कमज़ोर” या “कम लोकप्रिय” खेल माना जाता रहा।लेकिन 2 नवंबर 2025 को भारतीय महिला टीम ने यह भ्रम तोड़ दिया। उन्होंने यह दिखा दिया कि पसीना,परिश्रम,धैर्य और आत्मविश्वास किसी लिंग से नहीं, बल्कि जुनून से परिभाषित होता है।क्रिकेट, जो कभी पुरुषों के दबदबे वाला खेल माना जाता था,अब एक नई पहचान पा चुका है,“क्रिकेट है तो भारत है, और भारत है तो उसमें नारी की शक्ति भी शामिल है।”यह जीत खेल की सीमाओं से परे जाकरसामाजिक सोच, सांस्कृतिक मानसिकता और आर्थिक समानता के विमर्श को भी नया आयाम देती है।2 नवंबर 2025 सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि भारत में महिला सशक्तिकरण की नई सुबह है। जिस तरह 1983 में कपिल देव की टीम ने पुरुष क्रिकेट में भारत को विश्व विजेता बनाकर नया युग शुरू किया था, उसी तरह इस तारीख ने महिला क्रिकेट को नयी परिभाषा दी है।भारतीय महिला खिलाड़ियों ने अपनी मेहनत और संघर्ष से यह दिखाया कि अब “क्रिकेट में पुरुषों का वर्चस्व” जैसा कोई मिथक नहीं बचा।यह दिन खेलों में महिलाओं की समानभागीदारी के लिए भीप्रेरणा स्रोत बनेगा। जैसे ही भारत नेनिर्णायक गेंद पर जीत हासिल की, हर घर में टीवी स्क्रीन के सामने बैठी लाखों लड़कियों ने अपने भीतर एक सपना महसूस किया,“मैं भी खेल सकती हूं, मैं भी जीत सकती हूं।” यही वह विचार है जो इस तारीख को केवल क्रिकेट से जोड़ने के बजाय, एक सामाजिक आंदोलन का हिस्सा बनाताहै।भारत की महिला क्रिकेट टीम कीहालिया विश्वस्तरीय जीत ने न केवल खेल जगत को बल्कि पूरे देश को उत्साह और गर्व से भर दिया है। यह सिर्फ एक जीत नहीं, बल्कि महिला क्रिकेट की उस दीर्घ यात्रा की पराकाष्ठा है, जो वर्षों से पुरुष प्रभुत्व वाले क्षेत्र में खुद को स्थापित करने के लिए संघर्ष करती रही। इस जीत के बाद तीन बड़े पहलुओं ने सुर्खियाँ बटोरीं (1)क्या टीम को विजय परेड मिलेगी ( 2) बीसीसीआई का आर्थिक पुरस्कार क्या संकेत देता है? और (3) आईसीसी द्वारा घोषित “टीम ऑफ द टूर्नामेंट” से भारतीय कप्तान को बाहर रखना क्या उचित था?


साथियों बात अगर हम इस जीत को 70 करोड़ भारतीयमहिलाओं को समर्पित विजयोत्सव के रूप में देखें तो,यह जीत उन 70 करोड़ भारतीय महिलाओं के नाम है, जिन्हें समाज ने कभी न कभी यह कहकर रोका कि “यह लड़कियों का काम नहीं।”यह विजय उन माताओं के नाम है जिन्होंने गरीबी के बावजूद अपनी बेटियों को खेल का सामान खरीदकर दिया, उन बहनों के नाम है जिन्होंने समाज की ताने सुने लेकिन हार नहीं मानी, और उन बेटियों के नाम है जिन्होंने टूटी सड़कों, पुराने बल्लों और घिसी हुई गेंदों से भी सपनों को संजोया।महिला क्रिकेट टीम की यह उपलब्धि केवल खिलाड़ियों की नहीं, बल्कि उन असंख्य स्त्रियों की सामूहिक चेतना का परिणाम है, जो धीरे-धीरे अपनी सीमाओं से बाहर निकल रही हैं। इस जीत ने यह साबित कर दिया है कि अगर अवसर समान हों, तो महिलाएं केवल बराबरी नहीं, बल्कि उत्कृष्टता की मिसाल पेश कर सकती हैं।
साथियों बात अगर हम इस जीत को बेटियां अब किसी से कम नहीं की सटीक सोच के रूप में देखे तो,भारतीय महिला क्रिकेट टीम की यह विजय उस सोच का उत्तर है, जो सदियों से कहती आई थी,“लड़कियां कमजोर हैं।” भारत की बेटियों ने अब यह सिद्ध कर दिया है कि वे केवल घर की दीवारों तक सीमित रहने के लिए नहीं बनीं। उन्होंने अपने बल्ले और गेंद से उस
मानसिकता को तोड़ दिया है जो उन्हें दूसरे दर्जे का मानती थी।ये वही बेटियां हैं जिन्होंने गरीबी, सामाजिक असमानता, खेल सुविधाओं की कमी,और भेदभाव जैसी तमाम बाधाओं को पार किया। कई खिलाड़ी छोटे कस्बों से आती हैं, जहां क्रिकेट का मैदान तक नहीं होता। लेकिन उन्होंने मिट्टी में अपने सपनों को सींचा, और आज वही बेटियां विश्व पटल पर भारत का परचम लहरा रही हैं।उनका हर रन, हर विकेट, हर कैच एक संदेश देता है,“हम बेटियां अब किसी से कम नहीं।” यह संदेश केवल भारत के लिए नहीं, बल्कि दुनिया भर की उन महिलाओं के लिए भी प्रेरणा है जो सीमाओं से बाहर निकलने का साहस जुटा रही हैं।
साथियों बात अगर हम मेरी जीत को समाज की सोच पर प्रहार- चूल्हे-चौके से विश्व मंच तक के सामर्थ्य के रूप में देखे तो,भारत की इस जीत ने केवल ट्रॉफी नहीं जीती, बल्कि उस सोच को हराया जिसने लड़कियों को घर की चारदीवारी में कैद कर रखा था। सदियों से समाज ने स्त्रियों को रसोई, परिवार और सेवा तक सीमित रखा। खेल, विज्ञान, राजनीति या किसी भी सार्वजनिक क्षेत्र में उनका योगदान अक्सर नजरअंदाज किया गया। लेकिन जब भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने विश्व मंच पर विजय पताका फहराई, तो यह पराजय केवल विरोधी टीम की नहीं, बल्कि उस पुरानी सोच की भी थी।यह जीत उस पितृसत्तात्मक मानसिकता के खिलाफ एक क्रांति है, जो हमेशा कहती थी,“लड़कियां यह नहीं कर सकतीं।” अब वही बेटियां यह कह रही हैं,“हम कर सकती हैं, और बेहतर कर सकती हैं।”यह परिवर्तन केवल खेल के मैदान तक सीमित नहीं रहेगा,बल्कि आने वाले समय में यह राजनीति, शिक्षा, विज्ञान और समाज के हर क्षेत्र में दिखाई देगा।
साथियों बात अगर हम जीत के बाद उदय हुए इन तीन मुद्दों पर चर्चा करें तो (1) क्या भारतीय महिला क्रिकेट टीम को जीत पर मिलेगी “जीत की परेड”?जब भी कोई भारतीय टीम विश्व कप या किसी अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में ऐतिहासिक जीत दर्ज करती है, तो जनता की अपेक्षा रहती है कि उनका स्वागत उसी शान और गरिमा से किया जाए, जैसी पुरुष टीम को दी जाती है। वर्ष 2025 में महिला टीम की यह जीत भारतीय खेल इतिहास में एक “टर्निंग पॉइंट” साबित हुई है। देशभर में सोशल मीडिया और जनभावनाओं ने यह मांग उठाई है कि भारतीय महिला क्रिकेट टीम के सम्मान में मुंबई या दिल्ली में “विजय परेड” का आयोजन होना चाहिए,जैसे 2011 में पुरुष विश्व कप जीत के बाद हुआ था।यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह केवल जश्न का प्रतीक नहीं, बल्कि “समानता के अधिकार” का प्रतीक भी बनेगा। महिला खिलाड़ियों ने जिस संघर्ष और समर्पण से इस मुकाम को हासिल किया है, वह सम्मान के हर रूप की हकदार है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड जैसी क्रिकेट बोर्ड अपनी महिला टीमों के सम्मान में परेड आयोजित कर चुके हैं। ऐसे में भारत यदि इस ऐतिहासिक पल को राष्ट्रीय स्तर के सार्वजनिक उत्सव में बदलता है, तो यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा बनेगा कि “क्रिकेट अब सिर्फ पुरुषों का नहीं, भारत की बेटियों का भी गौरव है।(2) भारतीय महिला क्रिकेट टीम के लिए बीसीसीआई ने खोला खजाना- बीसीसीआई (भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड) ने इस बार महिला खिलाड़ियों के प्रति अभूतपूर्व उदारता दिखाई है। जीत के तुरंत बाद
बीसीसीआई अध्यक्ष और सचिव ने घोषणा की कि सभी खिलाड़ियों को रिकॉर्ड-स्तर की प्राइज मनी और अतिरिक्त बोनस दिया जाएगा। बताया जा रहा है कि प्रत्येक खिलाड़ी को करोड़ों रुपये का इनाम, सपोर्ट स्टाफ के लिए विशेष प्रोत्साहन राशि, और अगले सीज़न के लिए महिला आईपीएल कॉन्ट्रैक्ट में भारी वृद्धि की जा सकती है।यह निर्णय न केवल उनके प्रयासों की पहचान है, बल्कि महिला क्रिकेट की आर्थिक स्थिति में भी ऐतिहासिक सुधार की शुरुआत है। अब तक पुरुष क्रिकेटरों और महिला खिलाड़ियों के बीच वित्तीय असमानता का मुद्दा चर्चा का विषय रहा है। लेकिन इस जीत के बाद बीसीसीआई ने संकेत दिया है कि भविष्य में “इक्वल पे पालिसी”को पूरी तरह लागू किया जाएगा।अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह भारत के खेल- संस्कृति की परिपक्वता का संकेत है। क्योंकि खेल में समान पुरस्कार और अवसर सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक सम्मान और लैंगिक न्याय का भी प्रतीक हैं। यह कदम भारत को ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड जैसी क्रिकेट व्यवस्थाओं की बराबरी की ओर ले जा सकता है, जहाँ महिला खिलाड़ियों को पहले से ही समान भुगतान नीति का लाभ मिल रहा है।(3)आईसीसी ने घोषित की “टीम ऑफ द टूर्नामेंट “,भारतीय कप्तान को नज़र अंदाज़ किया गयाजहाँ एक ओर भारत की जीत ने पूरी दुनिया में महिला क्रिकेट की नई लहर पैदा की, वहीं दूसरी ओर आईसीसी के “टीम ऑफ द टूर्नामेंट” चयन को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ।इस सूची में कई भारतीय खिलाड़ियों को स्थान दिया गया, लेकिन टीम की कप्तान,जिन्होंने शानदार रणनीति, नेतृत्व और व्यक्तिगत प्रदर्शन से टीम को जीत दिलाई,को नज़रअंदाज़ कर दिया गया।यह निर्णय क्रिकेट जगत में कई सवाल खड़े करता है। क्या यह चयन पूरी तरह प्रदर्शन आधारित था, या इसमें कुछ क्षेत्रीय और राजनीतिक पूर्वाग्रह भी झलकते हैं? विशेषज्ञों का मानना है कि कप्तान के निर्णयात्मक कौशल और प्रेरणादायक नेतृत्व को अनदेखा करना “महिला क्रिकेट की उपलब्धियों को सीमित करने” का संकेत देता है। जब पुरुष क्रिकेट में कप्तान की रणनीतिक भूमिका को सम्मानित किया जाता है, तो महिला क्रिकेट में उसे क्यों अनदेखा किया गया?यह मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लैंगिक पक्षपात और चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर प्रश्न खड़ा करता है। सोशल मीडिया पर # रेस्पेक्टऑरकैप्टेन ट्रेंड बन गया, और विश्वभर के प्रशंसक आईसीसी से पुनर्विचार की मांग कर रहे हैं।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि यह जीत सिर्फ मैदान की नहीं,मानसिकता की भी है,भारतीय महिला क्रिकेट टीम की यह जीत इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में दर्ज होगी।यह उस विचार की जीत है कि “समान अवसर, समान सम्मान” ही सच्चा लोकतंत्र है।चाहे विजय परेड का आयोजन हो या बीसीसीआई के आर्थिक पुरस्कार, और चाहे आईसीसी की चयन नीति पर उठे विवाद,इन तीनों घटनाओं ने एक बात साबित कर दी है कि अब महिला क्रिकेट “साइड स्टोरी” नहीं, बल्कि मुख्य कथा बन चुकी है।यह वह क्षण है जब भारत को अपनी बेटियों के लिए उसी सम्मान और गर्व के साथ खड़ा होना चाहिए, जैसे उसने पुरुष खिलाड़ियों के लिए किया था। यह सिर्फ खेल का उत्सव नहीं, बल्कि ‘नारी शक्ति के आत्म- सम्मान’ का महाकाव्य है, जिसने दुनिया को यह दिखा दिया कि भारतीय महिलाएँ अब सिर्फ क्रिकेट खेल नहीं रहीं, बल्कि इतिहास लिख रही हैं।

-संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र