भारतीय रुपए की अंतरराष्ट्रीय स्थिति,वैश्विक मुद्राओं में मूल्यांकन और विज़न 2047 का रोडमैप -एक विस्तृत विश्लेषण

भारतीय रुपए की अंतरराष्ट्रीय स्थिति सदैव भारत की आर्थिक संरचना,विकास दर, निर्यात- आयात संतुलन और वैश्विक आर्थिक घटनाओं से गहराई से प्रभावित होती रही है

डॉलर-निर्भर वैश्विक व्यापार प्रणाली में आईएनआऱ की भूमिका बढ़ रही है,लेकिन उतनी दृढ़ नहीं हो सकी है कि उसे विश्व व्यापार की प्राथमिक मुद्राओं में शामिल किया जा सके-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र

गोंदिया – वैश्विक स्तरपर दुनियाँ में 195 से अधिक देश हैं, और हर देश अपनी अलग मुद्रा का इस्तेमाल करता है।दुनियाँ में सबसे लोकप्रिय मुद्राएँ डॉलर, यूरो,पाउंड, दीनार रियाल, येन आदि हैं। एक देश से दूसरे देश की यात्रा करते समय,उस देश में लेन-देन करने के लिए मुद्रा विनिमय की आवश्यकता होती है ।सरकार मुद्रा जारी करती है;इसे वैध मुद्रा भी कहा जाता है। मुद्रा का मूल्य स्थिर नहीं रहता और हर दिन बदलता रहता है। मुद्रा का मूल्य विभिन्न देशों में अलग- अलग होता है।पिछले सप्ताह के दौरान,अमेरिकी डॉलर और भारतीय रुपये की विनिमय दर 02-12-2025 को 89.755 के उच्चतम स्तर और 25-11- 2025 को 89.0625 के निम्नतम स्तर के बीच उतार- चढ़ाव करती रही।24 घंटे में सबसे बड़ा मूल्य परिवर्तन 01-12-2025 को हुआ, जिसमें मूल्य में 0.235 प्रतिशत की वृद्धि हुई।भारतीय रुपए (आईएनआऱ) की अंतरराष्ट्रीय स्थिति सदैव भारत की आर्थिक संरचना,विकास दर, निर्यात- आयात संतुलन और वैश्विक आर्थिक घटनाओं से गहराई से प्रभावित होती रही है। वर्तमान वैश्विक आर्थिक परिवेश, जहाँ अमेरिका और यूरोप जैसी अर्थव्यवस्थाएँ अपनी मौद्रिक नीतियों को लगातार सख्त कर रही हैं, वहीं भारत जैसे उभरते देशों की मुद्राएँ प्रत्यक्ष रूप से डॉलर के उतार-चढ़ाव से प्रभावित हो रही हैं। इस स्थिति में भारतीय रुपया एक संक्रमणकाल में खड़ा है। एक ओर वह विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था की मुद्रा है, वहीं दूसरी ओर उसकी अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता और मूल्यांकन अभी भी सीमित है।डॉलर-निर्भर वैश्विक व्यापार प्रणाली में आईएनआऱ की भूमिका बढ़ रही है लेकिन वह अभी भी उतनी दृढ़ नहीं हो सकी है कि उसे विश्व व्यापार की प्राथमिक मुद्राओं में शामिल किया जा सके। मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र यह मानता हूं क़ि अंतरराष्ट्रीय स्तरपर भारतीय रुपया इस समय एक ऐसी मुद्रा के रूप में देखा जाता है जो स्थिर भी है औरचुनौतीपूर्ण भी। स्थिर इसलिए कि भारत का वित्तीय तंत्र मजबूत है, विदेशी मुद्रा भंडार विश्व के शीर्ष देशों में आता है, और आर्थिक विकास दर दुनियाँ में सबसे तेजों में है। लेकिन चुनौती इसलिए कि रुपये की विनिमय दर अभी भी बाहरी कारकों विशेषकर अमेरिकी डॉलर पर अत्यधिक निर्भर है। डॉलर के मजबूत होने से भारत जैसे देशों की मुद्राओं पर स्वतः दबाव आता है और यह दबाव बढ़ते विदेशी निवेश बहिर्वाह, अस्थिर वैश्विक बाजार और तेल-कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण और भी घना हो जाता है। इसी वजह से भारतीय रुपये की अंतरराष्ट्रीय मजबूती अक्सर वैश्विक परिस्थितियों से निर्धारित होती है, न कि केवल भारत की घरेलू आर्थिक क्षमता से जो महत्वपूर्ण कारक है।


साथियों बात अगर हम वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (आऱईईआऱ) के नज़रिए से देखनें की करें तो तस्वीर अपेक्षाकृत संतुलित दिखाई देती है। यह दर व्यापारिक प्रतिस्पर्धा, मुद्रास्फीति और क्रय-शक्ति के आधार पर तय होती है। कई वर्षों के विश्लेषण से पता चलता है कि रुपया नाममात्र गिरता हुआ दिखता है, लेकिन वास्तविक प्रतिस्पर्धात्मकता उतनी खराब नहीं होती जितनी यूएसडी/आईएनआऱ दर को देखकर समझा जाता है। इसका एक कारण यह भी है कि भारत का निर्यात आधार विस्तार कर रहा है, सेवा-क्षेत्र वैश्विक स्तर पर प्रमुख है, और घरेलू बाजार की स्थिरता बाहरी दबावों को किसी हद तक संतुलित करती है।
साथियों बात अगर हम अब यदि हम भारतीय रुपये की तुलना अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं से करें, विशेषकर विकसित और विकासशील देशों की प्रमुख मुद्राओं से,तो वर्तमान स्थिति इस प्रकार उभरती है कि आईएनआऱ अधिकांश अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं के मुकाबले कमजोर है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगभग 89- 90 रुपये का मूल्य बताता है कि पिछले एक दशक में रुपये ने धीरे-धीरे कमजोरी दिखाई है। यूरो, ब्रिटिश पाउंड और जापानी येन जैसी स्थिर मुद्राओं के मुकाबले भी आईएनआऱ का मूल्यांकन दर्शाता है कि भारत को अभी भी वैश्विक आर्थिक धारा में अधिक स्थिरता प्राप्त करने की आवश्यकता है।हालांकि यह भी ध्यान देने योग्य है कि मुद्रा की कमजोरी हमेशा नकारात्मक संकेत नहीं होती,कई देश जानबूझकर अपनी मुद्रा को प्रतिस्पर्धी बनाए रखते हैं ताकि निर्यात को बढ़ावा मिले और घरेलू उद्योगों को लाभ हो। भारत की परिस्थिति मिश्रित है:कमजोर मुद्रा से निर्यात को कुछ हद तक सहारा मिलता है,लेकिन ऊर्जा- आयात पर भारी निर्भरता भारतीय अर्थव्यवस्था पर महंगा प्रभाव डालती है।यदि मध्य एशियाई देशों,जैसे कज़ाख़स्तान, उज्बेकिस्तान,किर्गिस्तान,ताजिकिस्तान या तुर्कमेनिस्तान की मुद्रा के मुकाबले आईएनआऱकी स्थिति का आकलन किया जाए,तो स्पष्ट होता है कि यहाँ आईएनआऱ कुछ मामलों में अधिक स्थिर दिखाई देता है। कई मध्य एशियाई देशों की मुद्रा राजनीतिक अस्थिरता, राजकोषीय सीमाओं और व्यापारिक निर्भरता के कारण अधिक उतार-चढ़ाव का सामना करती है। ऐसे में आईएनआऱ अपेक्षाकृत स्थिर मुद्रा है, जिससे भारत और मध्य एशिया के बीच व्यापारिक संबंधों में सकारात्मक अवसर बनते हैं।चूंकि भारत इन देशों के साथ ऊर्जा, रक्षा, शिक्षा, फार्मास्यूटिकल और तकनीकी सहयोग बढ़ा रहा है, इसलिए आईएनआऱ का इन क्षेत्रों में लेन-देन मूल्य धीरे-धीरे बढ़ सकता है।
साथियों बात अगर कर हम अब भारतीय रुपये के भविष्य की बात करें तो विशेषकर विज़न 2047 के संदर्भ में, तो तस्वीर अत्यंत रोचक और बहुआयामी है। भारत का लक्ष्य 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने का है। यदि यह लक्ष्य आर्थिक संरचना, नीति-निर्माण, उद्योग-विकास, अवसंरचना विस्तार और तकनीकी शक्ति के आधार पर पूरा होता है,तो निश्चित ही आईएनआऱ की वैश्विक स्थिति आज की तुलना में कहीं अधिक मजबूत होगी। भारत 2047 तक 26 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के अनुमान के साथ चलता है, जहाँ प्रति व्यक्ति आय में भी कई गुना वृद्धि होगी। इस तरह की विशाल आर्थिक क्षमता मुद्रा की अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता को स्वाभाविक तौर पर बढ़ाएगी।


साथियों बात अगर हम 2047 के भारत में रुपया कैसा होगा, इसको समझने की करें तो यह सवाल आर्थिक नीति-निर्माताओं, बाज़ार विशेषज्ञों और वैश्विक निवेशकों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है। यदि भारत वर्तमान विकास दर को बनाए रखता है, ऊर्जा आत्मनिर्भरता बढ़ाता है, विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत करता है, व्यापार- घाटा नियंत्रित रखता है, और अधिक देशों के साथ रुपये में व्यापार शुरू करता है,तो यह संभव है कि आने वाले वर्षों में आईएनआर अधिक स्थिर और मजबूत मुद्रा के रूप में उभरे। इसके अलावा, डिजिटल मुद्रा (सीबीडी सी,सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी), फिनटेक, डिजिटल भुगतान, और वैश्विक मुद्रा- विनिमय नेटवर्क में भारत की सक्रियता रुपये की स्वीकार्यता बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाएगी।2047 में आईएनआऱ की संभावित विनिमय दर का अनुमान लगाना कई अनिश्चितताओं के कारण कठिन है। परंतु विकासशील और विकसित होने की दिशा में बढ़ रहे भारत की आर्थिक संरचना बताती है कि रुपये का अंतरराष्ट्रीय मूल्यांकन आज जैसा नहीं रहेगा। यह मजबूत भी हो सकता है, स्थिर भी हो सकता है, और वैश्विक मुद्रा-प्रणाली में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका भी निभा सकता है। यदि भारतीय अर्थव्यवस्था निर्यात-प्रधान बनती है तो आईएनआऱ की मजबूती बढ़ेगी। यदि भारत ऊर्जा -आयात पर निर्भरता कम करता है और रक्षा, तकनीक, एआई, फार्मा, अंतरिक्ष, सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों में अग्रणी बनता है, तो आईएनआऱ का मूल्यांकन आज की तुलना में कहीं अधिक अनुकूल हो सकता है।रुपये की मज़बूती केवल डॉलर की तुलना से नहीं मापी जाती। किसी भी मुद्रा की प्रभावशाली स्थिति उसके क्रय-शक्ति, स्थिरता, वैश्विक उपयोग, व्यापार-संतुलन और निवेशकों के भरोसे से तय होती है। भारत आज यह भरोसा लगातार बढ़ा रहा है, और यदि यह यात्रा 2047 तक सही दिशा में चलती रही, तो आईएनआऱ एक ऐसी मुद्रा हो सकती है जिसे दुनिया केवल उभरती अर्थव्यवस्था की मुद्रा के रूप में नहीं, बल्कि विकसित और स्थिर आर्थिक शक्ति के रूप में पहचानेगी।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे क़ि,भारतीय रुपये का भविष्य बेहद हद तक भारत की आर्थिक नीतियों, वैश्विक परिदृश्य, राजनीतिक स्थिरता,तकनीकी नवाचार और अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों पर निर्भर करेगा। यदि भारत वैश्विक व्यापार में बड़े पैमाने पर रूपये-आधारित लेन-देन की दिशा में सफल कदम उठाता है, डॉलर पर निर्भरता घटाता है,और डिजिटल- वित्तीय व्यवस्था में नेतृत्व भूमिका निभाता है, तो 2047 में आईएनआऱ उस स्थिति में हो सकता है जिसकी आज केवल कल्पना की जा रही है, एक स्थिर, मजबूत, विश्वसनीय और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में स्वीकार्य मुद्रा।

-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र 9359653465