डरकर जीने से श्रेयस्कर धर्म रक्षार्थ कुर्बान हो जाना- महामंत्री हंसदास।

रीवा/ शिव अवतारी उदासीनाचार्य श्री श्रीचन्द्र भगवान जी का 530वां अवतरण दिवस श्रीसद्गुरु देव स्वामी सन्तदास साहिब जी की दिव्य चेतना के परम् पावन सन्निधि में स्थानीय सिंधु भवन रीवा में अत्यंत हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।
इस अवसर पर आयोजित “श्रीचन्द्र सत्संग सुधा” में अखिल भारतीय सिंधु सन्त समाज ट्रस्ट के राष्ट्रीय महामंत्री पूज्य स्वामी हंसदास जी ने भगवानश्री के जीवन चरित्र सुनाते हुए बताया- भगवान श्रीचन्द्र जी ने “चेतहु नगरी तारहु गांव, अलख पुरूष का सिमरहु नाउ” अर्थात गांव-गांव नगर-नगर पहुँच कर सनातनियों को जगाकर परमात्मा के नाम से जोड़ना; को अपने जीवन का मूल मंत्र बनाते हुए निरन्तर भ्रमण करते हुए सिंध प्रदेश के ठट्टा नगर पहुँचे। जहां पर मुगल शासक मिर्जा बाकी खां के धार्मिक प्रतिबन्ध से दुखी सिंधी हिन्दू समाज को समझाया कि तुम लोग अपने धर्म का दृढ़ता पूर्वक पालन करो। डर कर जीने की अपेक्षा धर्म रक्षा करते हुए मर जाना अधिक श्रेयस्कर है। मरना तो सबको है, भयभीत होकर यदि तुम मन्दिरों में पूजा पाठ बन्द कर दोगे, तो क्या मृत्यु से बच जाओगे? मृत्यु तो अवश्यभावी है, फिर क्यों न हम धर्म की बलवेदी पर बलिदान होकर धर्म की रक्षा करें। भगवानश्री की स्पष्ट और बेबाक बातों से प्रभावित होकर उन्होंने देवालयों में शंखध्वनि और भजन कीर्तन आरम्भ कर दिया। मिर्जा बाकी ने हिन्दू समाज से शाषनाज्ञा उल्लंघन का कारण पूछा तो हिन्दूओं ने भगवानश्री के नगर आगमन और उनके आदेश के बारे में बताते हुए कहा कि हम गुरुआज्ञा का उल्लंघन कैसे कर सकते है। मिर्जा बाकी गुस्से में बोला तुम्हारा गुरु तो पागल है। तुम अपने प्राणों की खैर मनाओ। भविष्य में ऐसी शिकायत न आये। हिन्दू समाज ने भगवानश्री को आकर बताया कि मिर्जा बाकी आपको पागल कह रहा है। भगवानश्री ने इतना सुनते ही कहा कि पागल तो वो स्वयं है। इतना कहते ही मिर्जा बाकी पागल हो गया और स्वयं ही अपनी कटार से अपनी इह लीला समाप्त कर ली। इस प्रकार सिंध की हिन्दू जनता पापी शासक से मुक्त हो पाई। ये घटना सम्वत 1642 की है।
इसके पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ भगवान श्रीचन्द्र जी के षोडशोपचार पूजन, दुग्धाभिषेक और पवित्र वाणी मात्रा- शास्त्र के सामूहिक पाठ के साथ हुआ। प्राकट्य महोत्सव के उपलक्ष्य में स्वामी सरूपदास जी ने मंगलमय गीत भजन गाकर और उपस्थित विशाल भक्त मण्डल ने नृत्य कर जन्मोत्सव की खुशियां मनाई।
सर्वजन हिताय पल्लव (प्रार्थना) के पश्चात विशाल भंडारे में प्रसाद ग्रहण किया।
कार्यक्रम में सन्त मण्डल और ब्राह्मण मण्डल के अलावा सर्वश्री सरदार प्रह्लाद सिंह, नन्दलाल कोटवानी, संतलाल आहूजा, डॉ नरेश बजाज, रमेश कुंजवानी, चंदीराम केसवानी, ज्ञानचंद मोटवानी, रमेश मंशानी, घनशयाम काकवानी, कन्हैयालाल मंगलानी, लद्धाराम ठारवानी, भजनलाल सचदेव, हासानन्द तनवानी, गिरधारी गंगवानी पप्पू मन्जानी, सुरेश पंजवानी “पप्पन” विजय सचदेव, दिलीप आसनानी,नारायण डिगवानी, प्रकाश तारानी, कमलेश सचदेव, परसराम कोटवानी, राजकुमार टिलवानी, रमेश ठारवानी, महेश आसनानी, गोपाल पूरी, कन्हैया घंशाणी, सुन्दरदास तारवानी, वीरेंद्र चुंगवानी, साधुमल माखीजा, सत्यपाल चुंगवानी, पमन मंशानी, प्रकाश डुडानी, अमित डिगवानी, सुरेश मिहानी, हरचाराम हिरवानी, जयपाल पूरी, सतीश सुंदरानी, बंटू रामचंदानी, भगवानदास लालवानी, रमेश सोनेता, प्रकाश शिवनानी, खेमचन्द लालवानी, दीपक जियाणी, नरेश काली, मनोज तनवानी, लेखराज मोटवानी, मुकेश हिरवानी, हरीश वाधवानी, विनोद पुरस्वानी, महेश हिरवानी, जयराम गंगवानी, दीपक दुर्गिया, गुलाब शिवनानी, गोपाल मन्जानी, मुकेश ठारवानी, सुमित रामचंदानी, किशोर ठारवानी, अनिल ठारवानी, भरत आहूजा, नवीन मोटवानी सहित नगर के सभी सामाजिक और धार्मिक संगठनो के अलावा भारी संख्या में माताएं बहिने और बच्चे शामिल हुए।