एक निजी कोरियर कंपनी में काम करने वाला युवा दिनाकरण ~ सरकारी अटल आवास के अपने घर के बाहर खुशी खुशी गुनगुनाते हुए सेकेंड हैंड मारुति 800 को बड़े जतन से धोए जा रहा था ~
बगल की पोश कॉलोनी से मार्निंग वॉक पर निकले PWD के बड़े बाबू गुप्ता जी ने चुटकी लेते हुए कहा ~ दिनाकरण इतना मत धो , कही कार की पेंट न उखड़ जाएं ~ कहा से लाए तुम यह कार ~
मेरे बड़े भैय्या सुधाकरन कलकत्ता में चीफ एक्जीक्युटिव पद से रिटायर हुए तो जो राशि मिली उसमें से मेरे लिए यह सेकेंड हैंड कार खरीद भेजी ~ खुश होते हुए दिनाकरण ने बताया ~
सोच में पड़ हुए गुप्ता बाबू को दूर से आते प्रोफेसर प्रशांत से टोका ~ क्यों बड़े बाबू ऐसे मौन क्या सोच रहे हो पहले बार कार को धुलती देख रहे हैं क्या ~
नहीं भाई सोच रहा हूं कि एक दिनाकरण का भाई है जो कार गिफ्ट दे दिया एक मेरा भाई था जो अपना बुखार भी न दे ~ *काश* मेरा भाई भी ऐसा होता ~
पूरी बात सुन प्रोफेसर प्रशांत असमंजस में पड़ गए ~ अब आप क्या सोच रहे प्रशांत जी ~
प्रोफेसर प्रशांत धीर गंभीर हो बोले मैं सोच रहा हूं मैं भी अपने छोटे भाई को एक सेकेंड हैंड कार गिफ्ट कर दूं एक महीने की पेमेंट न सही ~ गांव में रहता भाई कितना खुश होगा ~
सवाल सोच का है अच्छी खासी इनकम वाले गुप्ता जी को भाई से अपेक्षा है ~ #और
लगी बंधी सूखी तनख्वाह पर गुजारा करने वाले प्रोफेसर प्रशांत की इच्छा है अपने भाई को वह भेंट दे ~ सारा संसार , सामाजिक परिवेश इसी ,#सोच पर टिका है *किसी को गिलास आधा भरा नजर आता है किसी को आधा खाली ~*
चयन आपने करना है ~ गुप्ता सरीखी अपेक्षा या फिर प्रोफेसर प्रशांत सरीखी आशा ~ अपनी समस्याओं में सिमटे कोसते रहना या फिर वंचितों के निहितार्थ जूझना ~
दीदी *राजकुमारी आहुजा जी* तो प्रोफेसर प्रशांत सी सोच वाली प्रवर्तक है ~ अपने जीवन में हजार समस्याएं दरपेश हो ~ पर बारी जब *परहित* की हो तो रोक नहीं पाती अपने आपको ~
~*राजकुमारी आहुजा दीदी* एक नई पहल के हर आवेदन निवेदन पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है किसी को व्हील चेयर चाहिए तो , हॉस्पिटल बेड की ज़रूरत हो तो, किसी बच्चे को फीस कम पड़ती हो , किसी वंचित छात्र छात्रा को बुक्स चाहिए या किसी को ट्राय सायकल हर जगह हर पल आप हाजिर रहती हैं
सादर अभिवादन
*सामाजिक सरोकार हेतु प्रतिबद्ध सेवा एक नई पहल।
