अंबिकापुर | 2 अगस्त 2025
सरगुजा रेंज के पुलिस महानिरीक्षक को एक पत्र लिखकर पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने और आरोपी पुलिसकर्मियों को जिले से बाहर स्थानांतरित करने की माँग की गई है। यह पत्र होली क्रॉस विमेंस कॉलेज, अंबिकापुर के सहायक प्राध्यापक व शोधार्थी अकील अहमद अंसारी द्वारा लिखा गया है, जिनकी पीएच.डी. का शोध विषय “डिजिटल फॉरेंसिक की भूमिका और अपराध जांच में उसका महत्व – सरगुजा ज़िले के संदर्भ में” है।

क्या है मामला?
यह मामला 21-22 जुलाई 2019 की रात का है, जब अधीना सलका, सूरजपुर निवासी सीसीटीवी तकनीशियन पंकज कुमार बेक एक व्यापारी के निवास पर इंटरनेट/सीसीटीवी सुधारने गया था। उसके बाद उसे और उसके साथी को अम्बिकापुर कोतवाली पुलिस द्वारा हिरासत में लिया गया। अगले दिन पंकज की लाश अर्ध-फांसी की स्थिति में परमार हॉस्पिटल में मिली।
घटना के बाद तत्कालीन थाना प्रभारी विनीत दुबे, उप निरीक्षक मनीष यादव, साइबर सेल प्रभारी प्रियेश जॉन, आरक्षक दिनदयाल सिंह और वाहन चालक को निलंबित कर दिया गया था। दिसंबर 2019 में आईपीसी की धारा 306 और 34 के तहत अपराध पंजीबद्ध किया गया था।
पत्र में उठाए गए प्रमुख बिंदु:
• अनुच्छेद 21 का उल्लंघन: यह घटना नागरिकों के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1997) मामले में जारी दिशानिर्देशों की भी अनदेखी हुई है।
• जांच की निष्पक्षता पर सवाल: आरोपी आरक्षक आज भी सरगुजा जिले में ही पदस्थ हैं, जिससे पीड़िता परिवार और गवाहों पर प्रभाव पड़ने की आशंका है। दिनदयाल सिंह वर्तमान में गांधीनगर थाना में पदस्थ हैं और उन पर सामाजिक कार्यकर्ताओं व पत्रकारों को ट्रोल करने का आरोप भी है।
• अनुच्छेद 39A का हवाला: राज्य का कर्तव्य है कि वह न्याय तक समान पहुंच सुनिश्चित करे, विशेषकर कमजोर वर्गों को। पंकज बेक की विधवा श्रीमती रानू बेक आज भी न्याय के लिए संघर्षरत हैं।

माँगें:
1. पंकज बेक की मौत की जांच उच्च स्तर पर पुनः आरंभ की जाए।
2. सभी आरोपी अधिकारियों को तत्काल सरगुजा संभाग से बाहर स्थानांतरित किया जाए।
3. पीड़िता को सुरक्षा व कानूनी सहायता प्रदान की जाए, ताकि निष्पक्ष जांच संभव हो सके।
न्याय व्यवस्था पर जनता का विश्वास कायम रहे – इस भावना के साथ अकील ने पत्र में पुलिस प्रशासन से शीघ्र और न्यायोचित हस्तक्षेप की अपील की है।
यह मामला अब सिर्फ विभागीय प्रक्रिया नहीं, बल्कि संविधानिक और नैतिक जवाबदेही का भी विषय बन चुका है।