बिलासपुर :- एक तरफ आज देश में सबसे बड़ी जो चर्चा हो रही है और सोशल मीडिया अखबारों में चैनलों में जो यह खबर सुर्खियां बनी हुई है वह है राहुल गांधी वह विपक्षी पार्टियों के द्वारा वोटर लिस्ट में गड़बड़ी की शिकायतें बिहार से लेकर दिल्ली तक दिल्ली से लेकर बंगाल तक बंगाल से लेकर यूपी तक महाराष्ट्र से लेकर हरियाणा तक कर्नाटक से लेकर आंध्र तक हर जगह एक ही शिकायत है? कि वोटर लिस्ट में गड़बड़ी है ?उसी को लेकर विपक्षी पार्टियों भी संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह धरना प्रदर्शन कर रही है यहीं पर हमारे छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर में भी सिंधी समाज कि पूज्य सिंधी सेंट्रल पंचायत के होने वाले चुनाव में चार उम्मीदवारों ने नामांकन आज जमा कर दिए वापसी की तारीख 14 तारीख है इसी कड़ी में उम्मीदवार विजय दुसेजा ने अपना नामांकन जमा भी किया साथ ही में दो शिकायतें / निवेदन , मुख्य चुनाव अधिकारी वी के खत्री जी से लिखित में की उन्होंने अपनी शिकायत में बताया है कि विगत 2016 से लेकर अभी 2025 में जो हो रहे हैं चुनाव हर चुनाव में चुनाव लड़ने वाला उम्मीदवार एक ही शिकायत ज्यादा कर रहा है वह है वोटर लिस्ट में गड़बड़ी की मजे की बात यह है कि 2016 से लेकर 2025 तक अभी तक किसी भी शिकायत पर निष्पक्ष जांच नहीं की गई है?
अगर की गई होती तो 2023 में और 25 में भी ऐसी शिकायतें नहीं आती?
और एक रोचक वाली बात है कि सिर्फ चुनाव अधिकारी को ही शिकायत नहीं की गई है बल्कि पंजीयन ऑफिस में भी शिकायत दर्ज कराई गई है लिखित में लेकिन अभी तक उसका भी कोई निवारण नहीं हुआ है?
और सबसे आचार्य जनक बात है की चुनाव अधिकारी भी 2016 से लेकर अभी तक वही बनते आ रहे हैं?
और अभी हमने हमने इसकी छानबीन करनी शुरू की तो 2023 से लेकर 25 तक जो पूज्य सिंधी सेंट्रल पंचायत की कार्यकारी टीम थी उस टीम में तीनों चुनाव अधिकारी सदस्य हैं जैसा कि हमने लिस्ट में चेक किया विशेष आमंत्रित सामानीय सदस्य, योजना वित्त समिति के इसमें प्रथम नाम है प्रभाकर मोटवानी की दूसरा नाम है श्री मुरली नेभानी जी तीसरा नाम है वे के खत्री जी सिए,का यह तीनों उस कार्यकारिणी के सदस्य थे और हर बार इन तीनों में से 2 या 1 चुनाव अधिकारी के रूप में जरूर शामिल होते हैं अब सोचने वाली यह बात है कि जब मंत्रिमंडल का सदस्य ही चुनाव अधिकारी होगा तो निष्पक्ष चुनाव कैसे हो सकता है?
इसीलिए 2016 से लेकर 23 में 25 में भी बार-बार शिकायत आ रही हैं?
2 दिन पूर्व आम बैठक में भी यही बात मैंने🙋 उठाई थी कि चुनाव अधिकारी जो हैं इंसान बहुत अच्छे हैं ईमानदार है उसमें कोई दो मत नहीं है
पर कहीं ना कहीं आप पर ऊपर दबाव आ जाता है ?
जिसके कारण जो विपक्षी उम्मीदवार है अपनी शिकायत करता है उसका सही मायने में जांच नहीं हो पाती है?
और निष्पक्ष चुनाव नहीं हो पता है?
जिसकी शिकायत हमेशा सभी उम्मीदवार करते आये है?
जबकि नियम तो यह होना चाहिए कि जो भी व्यक्ति किसी भी वार्ड पंचायत या सेंट्रल पंचायत का पदाधिकारी या कार्यकारी सदस्य है तो उसे चुनाव अधिकारी नहीं बनाया जाए बल्कि समाज में ही ऐसे वरिष्ठ व्यक्तियों को चुनाव अधिकारी बनाया जाए जो किसी पंचायत में या उसे पंचायत से रिलेटिव संस्था में पदाधिकारी या सदस्य ना हो ताकि किसी भी उम्मीदवार को चुनाव में धांधली की गड़बड़ी की आशंका न लगे?
(एक कहावत पुरानी है जब सैंया हो कोतवाल तो फिर डर काहे का)
और सोचने वाली बात है कि संविधान में भी मन मुताबिक संशोधन अपने फायदे के लिए किया जा रहे हैं ? जैसा की किसी भी संस्था का पंचायत का कार्यकाल पूरा हो जाता है तो उसकी कार्यकारिणी अपने आप ही भंग हो जाती है फिर वह भंग कार्यकारिणी के कोर कमेटी के सदस्य , डायरेक्ट वोट कैसे दे सकते हैं?
पर इन लोगों ने अपने फायदे के लिए संविधान को अपने हिसाब से तोड़ मरोड़ कर संशोधन किए हैं? अपने हित के लिए?
जब आम बैठक में विजय ने कहा कि भाई वोट का अधिकार हर सिंधी समाज के मतदाताओं को मिलना चाहिए जो अपने वार्ड में मध्यान्ह देता है और उसके लिए उसने माह भर पहले से ही लोगों को जन जागरूक करना शुरू कर दिया था
और चुनाव अधिकारी सेंट्रल पंचायत के अध्यक्ष व सभी वार्ड पंचायत के अध्यक्षों को लगभग निवेदन करके पत्र देकर आए थे जब इसके बारे में पूछा गया तो कार्यकारी अध्यक्ष धनराज आहूजा जी कहते हैं जो बड़े बुजुर्गों ने संविधान बनाया है हम इस संविधान पर चलेंगे तो हमने कहा था तब की संविधान इंसान ने बनाया है भगवान ने नहीं और संविधान में जनहित के लिए संशोधन हो सकता है पर आज जब हम इस बात पर आगे की तहकीकात करने उतरे तो हमें जानकारी मिली की जब से यह संस्था का पंजीयन हुआ है उसके बाद 2016 में संविधान में संशोधन किया गया था और 2016 के बाद अभी 2025 में संशोधन किया गया है जो बात अध्यक्ष ने आम सभा में छुपीई?
जो संविधान कि कापी हमें मिली है उसमें 13 मार्च 2025 को संविधान संशोधन वाली कापी हमें दी गई है जब हमने जानकारी मांगी तो उसने कहा कि फरवरी में ही संशोधन हो चुका था पर पंजीयन ऑफिस में एक माह लेट हो गया तो जब आप अपने हित के लिए अभी संशोधन कर सकते हैं तो सामाज हित में संशोधन क्यों नहीं कर सकते हैं ?
और आम बैठक में समाज से झूठ क्यों बोला गया?
इसका तात्पर्य यही है कि अपने अपने फायदे के लिए अपनी कुर्सी को बचाए रखने के लिए झूठ बोला गया?
संविधान में संशोधन किया गया?
पर जब समाज हित की बात आ रही है तब संशोधन करने से कतरा रहे हैं?
क्योंकि वह भी जानते हैं अगर वोट का अधिकार समाज के प्रत्येक व्यक्ति को मिल गया तो उनकी सत्ता खत्म हो जाएगी?
किसी भी संविधान में संस्था में आज तक दो दिन का प्रचार करने का नियम नहीं है ?
वह भी बिलासपुर जैसे शहर में पर इन्होंने अपने स्वार्थ के लिए अपने हित के लिए ऐसा संशोधन 2016 में करके रखा है? जिसका इस्तेमाल 2025 में कर रहे हैं?
क्या यह समाज हित में है?
क्या यह जनहित में है ?
क्या यह लोकतंत्र की हत्या नहीं है?
दुसरा लेटर जो हमने दिया है वह है वोटर लिस्ट में गड़बड़ी कि शिकायत?
जो कश्यप कॉलोनी पंचायत 2023 में 300 वोटर के हिसाब से 10 परसेंट 30 नाम भेजे गए थे आज इस पंचायत में 196 वोटर के हिसाब से 20 नाम भेजे गए हैं तो हमारा प्रश्न यह है कि 104 वोटर 2 साल में कहां गायब हो गए ?
(जमीन निकल गई या आसमान खां गया? )
और सिर्फ एक वार्ड की बात नहीं है अन्य वार्ड पंचायत की लिस्ट में भी बहुत सारी त्रुटियां हमें वोटर लिस्ट में देखने को मिल सकती है ? जो ऊपरी तौर पर अभी नजर नहीं आ रही है?
गहन शानबीन की जाएगी तो हो सकता है कि बहुत कुछ और मिल जाए?
एक तरफ चुनाव प्रचार के लिए दो दिन दिया जा रहा है दूसरी तरफ वोटर लिस्ट में सही नहीं मिल रही है ? तो ऐसे में विपक्षी उम्मीदवार जो प्रथम बार चुनाव लड़ रहे हैं वह कैसे जीत सकते हैं? कैसा मुकाबला कर सकते हैं?
जबकि ना उनके पास धन बल है ना बाहुबली है?
तो वह चुनाव में कहां टिक पाएंगे?
लोकतंत्र की हत्या करके चुनाव को मजाक बनाया जा रहा है क्या यह उचित है?
(अब देखना है कि चुनाव अधिकारी क्या इस बार अपनी अंतरात्मा की आवाज को सुनते हैं या …. के फरमान को मानते हैं? )