अजय शर्मा जी (धमनी वाले)की कलम ,🖋️से

विभाजन की विभीषिका दिवस पर मेरे प्रिय मित्र ९८ वर्षीय सेठ चेला राम जी वासवानी १४और १५अगस्त की मध्य रात्रि अपने भरे पूरे परिवार को जीवन के संघर्षों से कैसे जूझना सिखा कर इस दुनिया से गोलोक गमन कर गए ।संयोग ही कहें कि ठीक १९४७ के भारत विभाजन की मध्य रात्रि यानी १४ और पंद्रह अगस्त की पश्चिम पाकिस्तान में मारकाट ,लूट पाट और हिंसा इन सिंधी परिवारों के साथ शुरू कर दी गई ,महिलाओं बेटियों के साथ बलात्कार ,आगजनी मतलब हर अत्याचार तब चेला राम जी किशोर वय थे ।इनमें सोचने समझने और याद रखने की शक्ति थी ।तब सिंधी परिवारों को सरकार ने पुनर्वास प्रदान करने संकल्प लिया।जमीन जायदाद संपदा सब वही छूट गए जो सोने चांदी रुपया पैसा वह भी रास्ते से लेकर ट्रेन में बैठने तक लूट लिए गए ।बेटियों और बहुएं भी ट्रेन से खींच कर उतार लिए गए ।ये सब मेरे मित्र चेला राम जी भोगी हुई पीड़ा को बताते थे
उन्हें और सभी सिंधीयो को आज भी जब कोई पाकिस्तानी बोलता है तो पीड़ा होती है ,ये तो अखंड भारत के बंटवारे पर मुसलमानों द्वारा हिंसक तरीके से भगाए जाने पर अपना धर्म और संस्कृति सभ्यता बचाने यहां आए
तब सरकार का निर्णय था कि लोग अपने पसंद का देश चुन सकते हैं
इसलिए इन विस्थापितों का मजाक नहीं बनाना चाहिए।
तो बात चेला राम जी की चल रही थी सब कुछ छोड़कर आए लोगों के संघर्ष की कहानी तो सब जानते हैं ।इसके पीछे कठिन संघर्ष है
चेला राम जी ने भी जीवन में परिवार पालने खूब संघर्ष किया ,गरीबी दुख पीड़ा सब सहे ।जो भी काम किया उसने उन्होंने लज्जा महसूस नहीं की
यहीं बात अपने बच्चों को भी सिखाया
सेठ चेला राम हो जाने ,अनेक व्यवसाय प्रतिष्ठान के मालिक हो जाने पर भी सेठ ने अपने बच्चों और पोतो
को बड़ी निर्ममता पूर्वक सेठ नहीं बनने दिया ।उन्होंने गोलोक गमन के सात दिन पूर्व तक एक एक गोदाम शो रूम के कचरों की भी कीमत बच्चों को समझाया ।
मुझे भी बताया कि महाराज मैं आज बूढ़ा आदमी तीस हजार एक दिन में कमा कर बैठा हूं मैने पूछा वो कैसे तो
उन्होंने कहा कि बच्चे जिन्हें कबाड़ समझ कर फेंक या कौड़ी के मोल बेच देते उसमें मैने काम की चीजें निकाली
लब्बोलुआब ये है कि ९८ साल की उम्र में भी स्कूटी में चलना ,याददाश्त रहना और प्रत्येक व्यावसायिक प्रतिष्ठान पर नजर रखकर बच्चों को कंट्रोल में रखकर सफलता के मार्ग देना कोई मेरे मित्र चेला राम जी के जीवन अनुभव से सीखे ।
आज उनका परिवार सफल व्यावसायिक घराना है यह सब उनकी देन है
धर्म अध्यात्म के लिए समर्पित गीता रामायण का पठन और घर में मां जगदम्बे का भव्य दिव्य मंदिर,जहां चकरभाठा या यहां से बाहर गए सिंधी परिवार हर सुख दुख में इस मां के मंदिर में माथ नवाने ,मीठी रोटी चढ़ने आता है ।ऐसे शक्ति पूजक में अद्भुत आत्मविश्वास धैर्य शक्ति थी
वो मुझसे कहते थे जब जाऊंगा तो बताकर जाऊंगा महाराज बिस्तर में किसी की सेवा नहीं लूंगा
डर नहीं है कि कौन सेवा करेगा मगर मेरी इच्छा है उसे मातारानी पूरा करेगी
मुझे हंसते बोलते ले जाएगी
यही हुआ चेला राम जी को उनकी माता वैसे ही ले गई एक घर में अशोक भानु हरि मनु सतीश और देवी का भरा पूरा परिवार होने के बाद भी केवल दो
दिन घर से बाहर न निकल कर संकेत दे दिया कि यहां का दाना पानी समाप्त अब बड़े घर जाना है और चले गए
सब धन संपदा छोड़कर
जैसे सन १९४७ की १४ और १५ अगस्त की मध्य रात्रि सब धन संपदा छोड़कर पश्चिम पाकिस्तान की जन्म भूमि छोड़कर आए थे
परमात्मा मृतक की आत्मा को सद्गति प्रदान करें प्रार्थना
विभाजन की विभीषिका की पीड़ा भोगने वाली पीढ़ी से ये थे ,जो घटना का जिक्र करते थे
७९ बरस होने के बाद भी भारत और राज्य सरकार
इन्हें आवास के हजार डेढ़ हजार फुट जमीन का मालिकाना हक न दे सकी
इस संवेदनहीनता पर सबको विचार करना चाहिए
कितना चिंतनीय विषय है मैं सिंधी विस्थापितों को भूमि स्वामी अधिकार दिलाने लगातार सक्रिय हूं २००५ से७ के बीच ३१७ लोगों को दिलाया भी मगर गंदी घृणित राजनीति सन १९४७ की यातना पीड़ा को महसूस नहीं कर सकती उसने काम रोक दिया
हर चुनाव में आश्वासन की पट्टा देंगे जीत के बाद समाज को धमकी
ये पीड़ा १९४७ से ज्यादा पीड़ा दायक है विभाजन के समय तो मुसलमान ने लूटा , मारा धमकाया मगर आज तो अपनी सरकार के लोग धमकाते हैं
झूठ बोलकर १८ साल से काम रोके बैठे हैं
विभाजन की विभीषिका भोगने वाले चेला राम जी चल दिए
बड़ी इच्छा थी कि उस पीढ़ी के लोग अपनी आंख से देख कर जाएं
मगर अफसोस गंदी राजनीति को कोई दुख पीड़ा नहीं
पीड़ा यातना भोगने वाली इस पीढ़ी को नमन
अजय शर्मा धमनी वाले