सिंधी प्रीमियम लीग क्रिकेट टूर्नामेंट आरंभ हुआ, सट्टेबाजों में खुशी की लहर दौड़ी ?

विजय की ✒कलम

बिलासपुर में सिंधी प्रीमियम लिंग क्रिकेट टूर्नामेंट का हुआ आगाज सट्टे बाजो मैं थोड़ी खुशी की लहर दोडी़ आप लोग सोच रहे होंगे मैं यह क्या बोल रहा हूं पर यह कड़वी है सच्चाई है?
आजकल क्रिकेट कोई भी हो चाहे वह इंटरनेशनल हो नेशनल हो प्रदेश का हो शहर का हो मोहल्ले का हो चाहे समाज का हो हर जगह खट्टेबाजो ने अपनी एक पकड़ बना ली है और आजकल क्रिकेट ही नहीं बल्कि सभी खेलों में सट्टे बाजो ने अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं?


पर क्रिकेट एक लोकप्रिय खेल बन चुका है भारत का और गली-गली में पहुंच चुका है इसलिए इसमें ज्यादा ही सट्टे बाजो का इंवॉल्व होता है और खासकर हमारे युवा भी ज्यादा ही इसमें अपना इंटरेस्ट रखते हैं यह खेल वैसे तो क्रिकेट का आरंभ हुआ था समाज के युवाओं को खेलों में जोड़ने के लिए वह आकर्षित करने के लिए पर अब जो आयोजन करता है खुद इस खेल को जिस तरह भारत में आईपीएल खेला जाता है और से बिल्कुल बिजनेस बना दिया गया है इस तरह इस खेल को भी यहां पर भी बिजनेस बनाकर रखा है आईपीएल की तर्ज पर,


इस खैल का सामाजिक स्तर पर
आयोजन किया जाता है और हमारे युवा ज्यादा ही इस खेल में इंटरेस्ट लेते हैं तो इसलिए सट्टेबाज भी इसमें ज्यादा ही सक्रिय रहते हैं और कहीं ना कहीं आयोजित करताओ का जो पहले उद्देश्य था वह उद्देश्य से अब भटक गये है?
और सिर्फ एक ही उद्देश्य आ गया है अपना सपना मनी मनी? मैंने पहले भी कई बार विरोध किया है कि पूज्य सिंधी सेंट्रल पंचायत या उसके अधीन पंचायत या सामाजिक संस्था एवं संगठन कोई भी आयोजन करते हैं सामाज के लिए तो वह बिल्कुल समाज हित के लिए होना चाहिए और निस्वार्थ होना चाहिए बिजनेस धंधा नहीं होना चाहिए?


पर कुछ समय से देखा जा रहा है इसे बिल्कुल बिजनेस और धंधे के तौर पर आयोजन किया जाता है?
और नाम समाज का लिया जाता है भगवान झूलेलाल का लिया जाता है ?
और किया जाता है धंधा ओर बिजनेस? सच बोलते हैं तो बुरा लगता है किसी भी कुर्सी में अगर कोई व्यक्ति बैठता है तो पहले उसकी मानसिकता क्या है यह सोचना बहुत जरूरी है और वह किस पैछै से जुड़ा है यह भी देखना बहुत जरूरी है क्योंकि हमारे यहां ज्यादातर धंना सेठ बड़े पदों पर कुर्सियों पर अधीन है?
और उसे छोड़ना नहीं चाहते क्योंकि उससे उनका बिजनेस चलता है अब समाज सेवा से नाम की रह गई है और उसकी आड़ में बहुत बड़े-बड़े खेल हो रहे हैं?
अगर सच्ची सेवा करनी होती नीस्वार्थ करनी होती समाज के हित में करना होता तो कुर्सी की आड़ में बैठकर नहीं करते?
कोई भी सेवा करने के लिए जरूरी नहीं है कुर्सी आपको मिले या कुर्सी में बैठकर ही की जाए लेकिन जिसे आदत हो गई है धंधा करने की बिजनेस करने की तो आदत कहां जाएगी,?


और जिसे अपना ही बिजनेस इसी के इसी पर आधारित है इसी के नाम से चलता है तो वह तो वही करेगा?
पर तकलीफ इस बात की है कि कुछ लोग सब कुछ जानते हुए भी आंखें बंद कर देते हैं जैसे मालूम उन्हें कोई दिखाई नहीं देता है सच बताओ तो कान बंद कर देते हैं जैसे कोई उन्हें कुछ सुनाई नहीं देता है और कुछ बोलने के लिए कहो तो मुंह बंद कर देते हैं जैसे मानो 👅जुबान नहीं है?
मुंह में और जब बात किसी दूसरे पर आती है तो फटाक से सुन लेते हैं फाटक से देख लेते हैं और फटाक से बोल भी देते हैं मतलब साफ है तुम पियो तो अमृत है ओर हम पिए तो शराब है मतलब कानून सिर्फ गरीब लोगों के लिए और मध्यम वर्ग लोगों के लिए है या जिनके पास पैसा नहीं है?


उनके लिए है नियम कायदा भी पैसे वालों के लिए पद वालों के लिए नहीं है इनका सोचना यही है अपनी राह से भटक गए हैं अभी भी वक्त है सही राह पर आ जाओ और धंधा करना बंद करो सेवा करना आरंभ करो नहीं तो हमने पहले भी कहा है समाज का बड़ा र्गक तो हो रहा है और जो थोड़ा कुछ बचा है वह बहुत जल्दी हो जाएगा और आने वाली पीढ़ी कभी भी आप लोगों को माफ नहीं करेगी अभी भी अगर समझ जाओगे सुधर जाओगे संभल जाओगे सही राह पर आ जाओगे तो इसमें आपका ही भला है समाज का भी भला है और सबका ही भला है?


नहीं तो अनर्थ तो होगा हो भी रहा है एक कवि ने बड़ी अच्छी बात बोली है मानो तो गंगा है ना मानो तो बहता पानी है मानो तो दिल से मानो ईमानदारी से मानो और निस्वार्थ होकर कार्य करो खेल को खेल भावना की तरह खेला जाए और कराया जाए ना कि बिजनेस और धंधे की तरह ? हमारा काम है सच बोलना सच लिखना सच दिखाना धर्म कर्म के कार्य करना समाज के लोगों का जिसमें हित है वही बात बोलना

हम सदा हैं सच के साथ धर्म के साथ देश के साथ

संपादकीय