श्री सदगुरू देव स्वामी सन्तदास साहिब जी के पावन निर्वाण-दिवस पर विशेष !!गुरुदेव स्वामी सन्तदास जी ने सरल और सादगी भरा जीवन जीते हुए किया निरन्तर परमार्थ चिंतन-स्वामी हंसदास

लेखराज मोटवानी/रीवा (म.प्र.) : इस धरती पर जितने भी महान महपुरुष हुए हैं। उन सब ने किसी ने किसी सिद्ध गुरु का सानिध्य प्राप्त किया है, उनकी सेवा की है उनकी कृपा को पचा कर संसार में अपना नाम रोशन किया है। और सदा के लिए अमर हो गया है।

जिस बालक ध्रुव को उसके पिता की गोद नसीब नहीं होती थी। उसी बालक ध्रुव को जब नारद जी जैसे गुरु मिले और गुरु मंत्र का जाप किया तो उन्हें एक सांसारिक पिता की तो बात ही बहुत दूर है स्वयं परमात्मा की गोद में बैठना नसीब हुआ।

स्वामी विवेकानंद जिनका बचपन का नाम नरेंद्र था। वह कई संस्थाओं में गए, कई व्यक्तियों से, कई अध्यात्मिक व्यक्तियों से मिले परंतु जब वह स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी के शिष्य बने तभी वह नरेंद्र से ‘स्वामी विवेकानंद’ बन पाए। आज कौन नहीं जानता स्वामी विवेकानंद को ?

ईश कृपा बिन गुरु नहीं, गुरु बिना नहीं ज्ञान !
ज्ञान बिना आत्मा नहीं, गांवही वेद पुराण !!
अर्थात भगवान की कृपा के बिना गुरु नहीं मिलते और गुरु के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं होता। ज्ञान के बिना अपने वास्तविक स्वरूप अमर आत्मा का पता नहीं चलता ऐसा हमारे वेद और पुराण बताते हैं।

धन्य हैं ऐसे गुरू जिनके चरणों की सेवा करके अनेक सज्जनों का उद्धार हो गया। वास्तविकता देखी जाए तो जब – जब धरती पर भार बढ़ता है, पाप बढ़ता है, अनाचार और अत्याचार बढ़ता है, तभी कोई समर्थ सद्गुरु के रूप में भगवान स्वयं अवतरित होते हैं।

संत की आत्मा और भगवान की आत्मा एक ही है। संत श्री तुकाराम जी, श्री एकनाथ जी, ज्ञानेश्वर महाराज, राजा जनक, सुकदेव जी, दत्तात्रेय भगवान तथा शंकराचार्य आदि अनेक ऐसे महान आत्मा समर्थ सद्गुरु इस धरती पर आए और मनुष्य को जीवन जीने का सही तरीका सिखाया और जन्म-मरण रुपी कष्टों का लेखा जोखा बदलते हुए मोक्ष का मार्ग प्रशस्त किया। सच्चे गुरु की सेवा करने वाले व्यक्ति की तो रोज दिवाली होती है।

एक बार एक ब्रह्मनिष्ठ सन्त घूमते-घूमते एक सेठ साहूकार के यहां पहुंचे। उस सेठ साहूकार ने नानक देव जी की बहुत सेवा की। अपने हाथों से गुरु जी के पैरों की चरण चंपी की। बड़े प्रेम से भोजन करवाया, पंखे से हवा की और बड़ा उत्साहित और प्रसन्न हुआ कि मेरे ऊपर भगवान की कितनी बड़ी कृपा है कि आज गुरु मेरे घर पर पधारे हैं।

रात्रि होने पर सब विश्राम करने लगे। रात्रि में स्वप्न के दौरान उसने अपने आप को बड़ा पीड़ित, असहाय और रोगी के रूप में देखा। वह सारी रात इस सपने को देखते हुए परेशानी में रहा।

सुबह उठकर वह बड़ा विस्मित हुआ कि इतने बड़े ज्ञानी महापुरुष के दर्शन हुए इसके बावजूद भी मुझे ऐसा स्वप्न क्यों दिखा? मेरी सारी रात काली बीती है। इस बात में भी कोई न कोई रहस्य होगा?

उन्होंने संत जी से इसके बारे में पूछा कि गुरु जी आप जैसे महान आत्मा का दर्शन करने के बाद तो व्यक्ति का चित् प्रसन्न रहना चाहिए, व्यक्ति को शुभ स्वप्न देखने चाहिए। परंतु मेरे साथ तो उल्टा हुआ।

सन्त जी ने मुस्कराते हुए कहा- बेटा संतो की महिमा को पूरा कोई नहीं समझ सकता। तुमने स्वप्न में जो रोग, असहाय और पीड़ा देखी है। वह तुम्हारे कर्मों के कारण तुमने भोगनी थी। परंतु साधु की सेवा करने मात्र से तुम्हारे रोग के कई साल सिर्फ एक ही रात में कट गए और वह भी सिर्फ स्वप्न में ही दूर हो गए।

ऐसे ही महान ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष स्वामी सन्तदास जी के निर्वाण दिवस पर आज उनका पूण्य स्मरण करते हुए उनके श्रीचरणों में शतकोटि नमन करते है। जो सरल और सादगी भरा जीवन जीते हुए केवल परमार्थ-चिंतन में ही लगे रहे। गुरुओं की सेवा कर परमात्म-तत्व का साक्षात्कार किया। और संसार सागर में भूले भटके जीवो को न सिर्फ अपनी वाणी बल्कि अपने आचरण से उपदेशित किया। उनके उपदेश आज भी उतने ही सार्थक और हमारे प्रेरणा-स्त्रोत है।

उनके सम्पर्क में आने वाला हर व्यक्ति उनके निश्चल स्वभाव को भुला नही सकता। उनके समक्ष जिसने भी जो शुभ मनोकामना की, वो निश्चित ही पूर्ण हुई। न सिर्फ इस लोक बल्कि परलोक सुखी करने का साधन भी उनके उपदेशो से प्राप्त होता था।

हमारी अल्प बुद्धि और सामर्थ्य से उनकी महिमा का गुणगान सम्भव नही है। श्री गुरु अर्जुन देव जी की निम्न पंक्तियों-
“साध की महिमा वेद न जानहि। जेता सुनहि तेता बखिआनहि।।
के साथ विराम देकर उनकी महान शख्सियत को श्रद्धा सहित दण्डवत प्रणाम करते है।