आम आदमी से खास बने और खास से बने कैदी, कुर्सी की लालच ने कहां से कहाँ पहुंचा दिया : विजय दुसेजा

सम्पादकीय : आज देश की राजनीति में जो हो रहा है यह देखकर चंद लोगों को रोना भी आ रहा है क्योंकि कभी किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि ऐसा भी दिन आएगा और यह भी देखना पड़ेगा क्या इसे ही राजनीतिक कहते हैं ? इस कुर्सी के नशे में कुर्सी के मोह ने क्या से क्या बना दिया कहां से कहां पहुंचा दिया उसके बाद भी लोग नहीं समझ रहे हैं, नहीं सोच रहे हैं, बस कुर्सी के पीछे भाग रहे हैं दिल्ली की राजनीति में जो घटना क्रम घट रहा है वह पूरे देश को हिला कर रख दिया है और सोचने के लिए मजबूर कर दिया है एक आम आदमी की कहानी से शुरुआत होती है आम आदमी की पार्टी की उसकी कहानी फिल्मी लगती है जैसे फिल्म में एक साधारण सा गरीब इंसान शहर आता है कमाने खाने के लिए और किस तरह सत्ता के मोह में माया के मोह में क्या से क्या बन जाता है अंत में क्या होता है सबको पता है पर वह फिल्मी कहानी थी लेकिन यह हकीकत है जिस भ्रष्टाचार के आंदोलन से निकले आम आदमी पार्टी के संस्थापक अरविंद केजरीवाल जो सत्ता को क्या नहीं कहते थे नेताओं को कितना कोसते थे जीस गुरु को अपना आदर्श मानते थे उस गुरु का कहना नहीं माना समझाने के बाद भी आखिर वही गलती की जिसके लिए उसके गुरु बार-बार समझाते थे कि इससे दूर रहो पर सत्ता का नशा, जो भी कराए बहुत कम है आखिर उसने आम आदमी पार्टी बना ली आम आदमी के नाम से पार्टी बनाई जनता को बड़े-बड़े सपने दिखाए और शुरुआत अच्छी भी की थी क्योंकि उनकी इस पार्टी में कई आंदोलन से जुड़े हुए उनके सहयोगी भी साथ में थे लोगों का भरोसा ओर विश्वास ज्यादा था जैसे ही एक बार सत्ता हाथ में आ गई पूर्ण बहुमत मिल गया वैसे ही धीरे-धीरे बदलाव आने लगा जब यह बात उनके साथियों को समझ में आने लगी तो उन्होंने भी समझाया पर तब तक वह आम इंसान आम आदमी और खास इंसान खास आदमी बन गया था और जमीन से आज ऊपर एक बड़े पद में पहुंच चुका था अब उसको उससे और आगे की राह दिखाई दे रही थी प्रधानमंत्री का पद दिखाई दे रहा था उसके सामने यह सब कीड़े मकोड़े और फालतू की बातें समझ रहा था धीरे-धीरे जो उसे समझा रहे थे, वह उसे अपना दुश्मन समझने लगा था, रस्सी को भी सांप समझने लगा था, पानी को जहर समझने लगा था, अच्छी बातों को गलत समझने लगा था और अपने ही लोगों को दूतकारने लगा चिल्लाने लगा और अंत में एक-एक करके सब अच्छे लोग धीरे-धीरे उसका साथ छोड़कर अलग होते गए जिस रोशनी की किरण से वह आगे बढे़ थे जनता को दिखाई थी वही किरण उसे छोड़कर कर चली गई जिस जनता ने उस पर विश्वास किया था जनता को विश्वास दिलाया था वही विश्वास उनका साथ छोड़ कर चला गया अब ना किरण रही ना विश्वास रहा और ऐसे ही अनेक साथी लोग धीरे-धीरे अलग होते गए और जो नए लोग आते गए वह सत्ता के चाहने वाले थे, सत्ता के भूखे थे, कुर्सी का मोह था अब उसके चारों तरफ वही लोग थे जिन्हें सत्ता का सुख चाहिए था धीरे से सारे वादे भूल गए, सारी बातें भूल गये, सारे आदर्श भूल गया, अपने गुरु को भी याद नहीं किया और मगरूर हो गया जैसे ही दिल्ली के दोबारा चुनाव में विजय होकर लौटे अपने आप को सबसे बड़ा नेता समझने लगे और रही सही कसर पंजाब ने पूरी कर दी जहां उनकी सरकार बन गई अब तो वह अपने आप को करिश्मा से भरा नेता समझने लगे कि मोदी के बाद अगर कोई नेता है तो वह मैं हूं और जो मैं कहूं वही सही है जो मैं करूं वही सही है जो मैं बोलूं वही सही है जिन पार्टियों को आंदोलन के समय क्या नहीं कहा उनके नेताओं को, आज उनके साथ बैठकर खाना खा रहे हैं ,चाय पी रहे हैं, गले मिल रहे हैं ,जैसी संगत वैसा असर होगा और हुआ भी वही उनके पार्टी के नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे एक-एक करके जेल के अंदर जाने लगे उनके मंत्री भी उपमुख्यमंत्री भी अब तलवार उनके ऊपर लटकने लगी तो इधर से उधर भागने लगे और कानून से भाग कर जाओगे कहां
अपने किए कर्मों का फल तो यही भुगतना है सत्ता का सुख बहुत भोग लिया अब अपने कर्मों का भी फल भोगो

(जब चिड़िया चुग गई खेत तो अब पछताए से क्या फायदा)

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पर यहां तो कहानी उल्टी है अभी भी पछतावा नहीं है अभी भी अपनी गलतियों पर पर्दा ढकने की कोशिश की जा रही है और गलतियों पर गलती की जा रही है कम से कम अब तो अपने पद का मोह छोड़ो और पद को छोड़ो और कानून का सामना करो सच का सामना करो अभी तो आदर्श स्थापित करो कुछ तो अपने गुरु की लाज रखो जेल में जाकर ही सत्ता चलाऊंगा यह अहंकार नहीं तो और क्या है? क्या यही आदर्श है? क्या यही वही आम व्यक्ति है जिसने आंदोलन किया था? इसे जानता अपना भगवान मानने लगी थी गांधी जी को व अन्य नेताओ को अपना आदर्श मानने वाले अन्ना जैसे ईमानदार लोगों के साथ आंदोलन करने वाले क्या सभी ने यही सिखाया था ,?
गांधी जी ने कभी ऐसा किया है क्या महापुरुषों का नाम लेकर ऐसे कार्य न करो जिससे आने वाली पीढ़ी भी आपको माफ ना करें या आपको अपनी पार्टी के नेताओं पर भरोसा नहीं है कि मैं उन्हें अगर मुख्यमंत्री बना दूंगा तो कहीं वही लोग पार्टी में कब्जा ना कर ले क्या यही भय सता राह है ? या आप भी लालू की तरह जेल जाने पर अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री बनाओगे ?
बाबा साहेब के संविधान का अपमान मत करो अब तो कुर्सी छोड़ो सच का सामना करो कानून पर विश्वास है तो कानूनी लड़ाई लड़ो जनता के बीच में जाओ पर ऐसा कतई मत करो सत्ता के लिए गलत राह पर जाना बंद करो और अपने पद से इस्तीफा दो
और घोषणा करो कि जब तक आप बेदाग निर्दोष साबित नहीं होंगे तब तक आप कोई पद नहीं लेंगे जनता को विश्वास दिलाओ और अपने किए पर पछतावा है तो सच बोलो जब अपने बच्चों की कसम खाकर भी तुम पलटी खा सकते हो तो अब जनता भी शायद ही तुम पर भरोसा करेंगी फिर भी सच बोलोगे तुम्हारी कुछ तो इज्जत बचेगी
इसीलिए गुरु कहते हैं
सत्संग में कहीं गई बातों पर अमल किया करो, अपने माता-पिता, गुरु का कहना मानोगे तो सदा सुखी रहोगे और अगर नहीं मानोगे तो तुम्हारा हाल भी ऐसा ही होगा….