परम श्रद्धेय आचार्य परमानंद महाराज जी का बिलासपुर आगमन दिनांक 10 जुलाई को हुआ जिसमें उन्होंने अपने अनुभव सुनाते हुए यह कहा की उनका जन्म एक साधारण वैष्णव परिवार में हुआ था और बाल्य काल से ही शिव भगवान के प्रति उनका विशेष प्रेम स्नेह रहा अपने जीवन की हर एक व्यथा को बात को परमात्मा से साझा करते थे और जब वह अपनी मां के गर्भ में थे तो उनकी मां भी शिव की उपासक थी प्रतिदिन 108 बार शिव जी का जाप किया करती थी छोटे से स्कूल में शिक्षा अर्जन करने के पश्चात 12 वर्ष निरंतर उन्होंने काशी विश्वविद्यालय में शिक्षा अर्जित की परमात्मा को प्राप्त करने की छह उन्हें बनी रही और भगवान से मिलने का जो संकल्प था वो ब्रह्माकुमारीज में आकर संपन्न हुआ… और उन्होंने आदि सनातन देवी देवता धर्म की महिमा करते हुए परमात्मा शिव को उनका स्थापक बताया एवं सर्व शास्त्रों में सर्वोच्च शास्त्र श्रीमद् भागवत गीता को बताया , गीता शास्त्र की महिमा करते हुए यह कहा कि एकमात्र यह शास्त्र है.. जिसमें किसी धर्म जाति वर्ण का जिक्र नहीं है और कोर्ट कचहरी में भी किसी भी धर्म किसी भी जाति का व्यक्ति हो उसे गीता पर हाथ रखकर सौगंध खानी ही पड़ती है कि मैं जो कुछ कहूंगा सत्य कहूंगा सत्य की सिवाय कुछ नहीं कहूंगा.. निराकार परमात्मा शिव ही है.. भजन को प्राप्त करने की विधि है स्वयं को आत्मा समझकर उनका याद करना जब हम स्वयं को समझ जाते हैं तो हम परमात्मा को भी समझने लगते हैं और उनके द्वारा दिए गए निर्देश को भी समझ पाते हैं तब अपना जीवन श्रेष्ठ बना सकते हैं शिव गुलजार भवन ब्रह्माकुमारीज तोरवा में उन्होंने अपने उद्गार व्यक्त किए.. लगातार दो सत्रों में उन्होंने अपने जादुई अद्भुत प्रवचन सुनाएं जिसका विषय था संस्कार परिवर्तन से नई संस्कृति का उदय जिसमें उन्होंने बहुत ही सरल रीति से अपने संस्कारों को कैसे परिवर्तन किया जाए उसकी विधि बताइए और सभी से निवेदन किया की ब्रह्माकुमारी में निशुल्क जो साथ दिवसीय कोर्स कराया जाता है उसे एक बार अवश्य करें जिससे आपका तीसरा नेत्र खुलने लगता है और जब ज्ञान सहज होता है सहज लगने लगता है तो उसे ज्ञान के आधार पर परमात्मा के समीप आप आते हैं योग की परिभाषा को भी उन्होंने बहुत सरल करते हुए कहा कि परमात्मा से प्यार ही योग है योग के लिए कोई अलग से हमें हठयोगी या कोई और अलग से ऐसी विधि नहीं है कि जिस आसान से हम परमात्मा को प्राप्त कर सकें बल्कि परमात्मा से दिल का स्नेह योग है.. परमात्मा शिव वह मीठा मधुर रस है मधुशाला है जहां से हमें एक बूंद भी हमने ग्रहण की तो हमारा जीवन संवर जाता है वह तो सागर है पूरा सागर पीने की बात नहीं एक बूंद ग्रहण करने की बात है हर करम में परमात्मा का हाथ और साथ अनुभव करते हुए हम अपने कार्य को बहुत सरल कर सकते हैं जीवन जीने का तरीका यही है और जब ग्राहक थी जब गृहस्थ जीवन में शिव परमात्मा का ज्ञान समाहित होने लगता है तो वो गृहस्थ देव तुल्य होने लगता है.. उन्होंने ब्रह्मकुमारी बहनों की भी महिमा करते हुए यही कहा कि इनको साधारण मत समझिएगा ईन्होंने अपना सर्वस्व समर्पण कर प्रभु कार्य में तल्लीन है.. गांव से लेकर शहर तक सेवाएं दे रही है निकॉन का व्यसन अनेकों के जीवन से व्यसन को मुक्त करा कर उनका जीवन आसान कर दिया और अनेकों का कल्याण किया अनेकों को सही दिशा देकर बुराइयों से अच्छाई की ओर परिवर्तित किया है आचार्य परमानंद जी महाराज बिलासपुर वासियों के लिए आनंद ठोकर बोले बिलासपुर वास परमात्मा के साथ विलास कर रहे हैं .. अंत में उन्होंने अंत में उन्होंने ब्रह्माकुमारी राजयोगिनी मंजू दीदी एवं राखी दीदी एवं उनके सहयोगी बहनों की सेवाओं को देखते हुए उन्हें नमन किया कृतकृत हुए..