बिलासपुर:- कार्तिक मास की अमावस्या पर महालक्ष्मी का पर्व दीपावली मनाई जाती है। दीपावली की रात को तंत्र-मंत्र साधना की रात माना जाता है ।अमावस्या तिथि के दौरान साधना करने से सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा को दूर किया जा सकता है। लक्ष्मी का तात्पर्य केवल धन से नहीं होता बल्कि जीवन की समस्त परिस्थितियों की अनुकूलता ही लक्ष्मी कही जाती है। शास्त्रों में दीपावली की रात को सबसे बड़ी रात माना जाता है। अत:दीपावली की रात महानिशा भी कहा जाता है। दीपावली को कालरात्रि,महानिशा,महाकृष्णा और दिव्यरजनी भी कहते हैं ।शास्त्रों में इस रात्रि का अत्यंत महत्व माना गया है।तंत्र साधना के लिए यह उत्तम रात है। दीपावली की दिन की जाने वाली पूजा से सुख समृद्धि धन सौभाग्य सिद्ध आरोग्य मिलता है। जनमानस के लिए यह पर्व मनोरथ सिद्धि का दिन कहा गया है। कार्तिक अमावस्या के दिन अंधकार पर प्रकाश की विजय का पर्व दीपावली होती है। दीपावली स्वच्छता का प्रतीक है। स्वच्छता का मतलब बाह्य और आंतरिक शुद्धि करना। दीपावली के आते ही घरों में मरम्मत रंगरोगन सफेदी का कार्य किया जाता है। भारत सरकार के साथ-साथ कई संस्थाएं भी जो वास्तविक स्वच्छता अभियान चलाकर लोगों को जागरुक कर रही है। जिस जगह स्वच्छता साफ-सफाई होगी प्रदूषण कम होगा,वही लक्ष्मी जी का वास होगा।अगर लक्ष्मी का वास होता तो सबके जीवन में वैभव ऐश्वर्य,उन्नति, प्रगति,आदर्श स्वास्थ्य प्रसिद्धि और समृद्धि आएगी। वर्षा के वातावरण में जो कीड़े मकोड़े जीव जंतु उत्पन्न होते हैं वह दिवाली पर्व पर दीपशिखा में जलकर समाप्त हो जाते हैं। दिवाली लाखों प्रकाशकों का प्रज्वलित होने का पर्व है।पुराणों में पद्म पुराण और स्कंद पुराण में दीपावली का उल्लेख मिलता है। उपनिषद में दीपावली को यम एवं नचिकेता की कथा से जोड़ते हैं। रामायण में श्री राम के वनवास से अयोध्या लौटने की खुशी में दीपावली मनाई जाती है।सातवीं शताब्दी के संस्कृत नाटक में राजा हर्ष इसे दीपप्रतिपादुत्सव: कहा है।
नवीं शताब्दी में राजशेखर ने काव्यमीमांसा में इसे दीपमालिका कहा है। ग्याहरवीं शताब्दी में फारसी यात्री अलबरूनी ने कहा कि कार्तिक माह में मनाया जाने वाला पर्व दीपावली है। दीपावली दिन नेपाल में नया वर्ष भी शुरू होता है। दीपावली पर्व भारत के साथ विशेष रूप से दुनिया भर में मनाया जाता है ।भारतीय संस्कृति की समझ और भारतीय मूल के लोगों के वैश्विक प्रवास के कारण दीपावली मनाने वाले देशों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है।
दीपावली प्रकाश पर्व है,ज्योति का महोत्सव है। दीपावली जितना अतःलालित्य का उत्सव है, उतना ही बाह्यलालित्य का । दीपों की पंक्तियां ज्योति की निष्ठाएं समाहित हो जाएं तो दीपावली की आभा अभिव्यक्त हो उठती है। दीपावली का लालित्य वस्तुतः प्रकाश एवं अंधेरे का मनोरम समन्वय है। उसमें अग्रगामिता है। दीपावली सौंदर्य का प्रतिबिंब भी है, जहां मनुष्य की अनुभूति अनुभव एवं संवेदना अपना आकार लेते हैं। दीपावली की ज्योति प्रक्रिया स्रोत एवं संरचना एक ऐसी सहृदयता एवं एकता पर आधारित हैं ,जो सबको जोड़कर चलती हैं ।दीपावली सौंदर्य की महत्ता का पर्व है। दीपावली समाज व व्यक्ति के जीवन के अनगिनत आयामों को नया रूपांकन देती है। मिट्टी की कला के इतने सारे रूप इस समय देखने को मिलते हैं कि शायद साल भर नहीं मिलते हों। भिन्न-भिन्न तरह के दीए,हाथी, घोड़े,पेड़ पौधे, सभी कुछ मिट्टी की कला से ही निर्मित होते हैं। समाज के सभी वर्ग,किसान आदि दीपावली को नई अभिव्यंजना देते हैं। दीपावली के वैभव से किसान का वैभव रचा जाना चाहिए। किसान के वैभव में ही दीपावली का वैभव छिपा हुआ है। किसान कृषि को राष्ट्रीय समृद्धि का आधार बनाने की आधारशिला है।दीपावली के महोत्सव में हमें ऐसे सभी बिंदुओं का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। नई आभा नहीं रची जा सके और यदि बड़े परिवर्तन न संभव हो सकें तो छोटे-छोटे बदलाव लाना चाहिए, जो सृजन की दीपावली ला सकते हैं ।अतीत के खंडहर से ही अब नई दुनिया सृजित होगी।भारत का पुनरुत्थान यहीं से करना होगा। दीपावली ऐसे सभी अर्थों की तहों में जाने का दुस्साध्य प्रयत्न है। किसी भी सृजनात्मकता में प्रकाश के अनगिनत रंग होते हैं। दीपावली एक लालित्यपूर्ण सृजनात्मकता है। उजाले की निजता दीपावली को प्रश्रय देती है। उजाले की प्रसारणशीलता उसके सामाजिक पक्ष को नया आयाम देती है। दीपावली परिवर्तन,सौंदर्य, निजता, स्वायत्तता एवं ज्योति समन्वयन ये सब एक साथ स्थापित करती है ।दीपावली हमें संकीर्णता, स्वादहीनता एवं विद्वेष की भावनाओं को तिरोहित करना सिखाती है। इस प्रकार सोचने से ही हमें दीपावली के वास्तविक मर्म का बोध होता है l दीपावली हमारे भीतर के सृजन को ऊर्जा एवं आभा देती है । सृजन की फुलझड़ियां ही जीवन को नूतन बनाती है। इसमें जितनी परंपराओं की सुरक्षा है,सांस्कृतिक परिवर्तन है, उतनी ही गतिशीलता का समन्वय भी है।हमें दीपावली में अपने अंदर सृजन के दीए को जलाना चाहिए,जिससे हम स्वयं प्रकाशित हो सके और राष्ट्र को प्रकाशपथ पर अग्रसित कर सकें।
डॉ. विजय पाटिल
शिक्षक सह साहित्यकार
सेंधवा,जिला बड़वानी,मप्र