बुराई को सुनना, बुराई को चुनना” जैसा ही है-स्वामी हंसदास उदासी



जो लोग आपके सामने दूसरों की बुराई करते हैं, निश्चित ही वो लोग दूसरों से आपकी बुराई भी करते होंगे। बुरा करना ही गलत नहीं है अपितु बुरा सुनना भी गलत है।

किसी की बुराई सुनने से हमारे स्वयं के विचार भी दूषित हो जाते हैं। विचारों का प्रदूषण विज्ञान से नहीं अपितु स्वयं के अन्तः ज्ञान से ही मिटाया जा सकता है। विचारों का प्रदूषण फैलने का कारण हमारी वो आदतें हैं जिन्हें किसी की बुराई सुनने में रस आने लगता है।

“बुराई को सुनना, बुराई को चुनना” जैसा ही है क्योंकि जब हम बुराई सुनना पसंद करते हैं तो बुराई का प्रवेश हमारे जीवन में स्वतः होने लगता है। जो हम रोज सुनते हैं, देखते हैं, वही हम होने भी लग जाते हैं।

उन लोगों से अवश्य ही सावधान रहने की आवश्यकता है, जो सदैव दूसरों की बुराई का बखान करते रहते हैं। दूसरों की बुराई सुनने की अपेक्षा स्वयं के जीवन से बुराई को मिटाने के लिए प्रयासरत रहें।

*꧁‼️जय राम जी की ‼️꧂*