“एक पुस्तक हो उपहार”



ज़माना बदल गया है, सब बदल रहे हैं, और हम सब भी बदल रहे हैं, ये कोई आज की बात नहीं है और न कोई ऐसा विशेष विषय की जिसे गंभीरता से सोचा जाए।
कुछ परिवर्तन परिस्थितियों से, कुछ अपनी सहूलियत के लिए तो कुछ परिवर्तन किसी को दिखाने या कुछ लोगों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए करना होता है, करते भी हैं।
पर इन सब को अलग रख, बस एक विषय पर हम आज ये चिंतन करेंगे के ऐसा क्या और ऐसा क्यूं हुआ, क्या सही है, या क्या ग़लत है, या फ़िर ये सब तो हमने पहले कभी नहीं देखा, समझा या इस विषय पर न जान सके कि इतनी महत्वपूर्ण विषय हमारे बीच से अचानक कैसे बाहर हो गई या ये पता ही नहीं चला….
“विषय है अध्ययन पुस्तकों का”
पुस्तकें पढ़ना: –
ये बहुत ही छोटा और कोई ऐसा इतना महत्वपूर्ण विषय नहीं है। पर आज के इस भाग दौड़ की ज़िंदगी और प्रतियोगिता भरी जीवन के इस होड़ में लगभग बहुत लोगों के द्वारा पुस्तकें पढ़नी और किसी विषय पर कुछ लिखने की आदत या कला अब लगभग ख़त्म सी हो गई है या ये कहे के पुस्तक पढ़ने और कुछ स्वयं लिखने की कला विलुप्त सी होती जा रही हैं।
बच्चों में पुस्तकें पढ़ने की आदत न डालने की जिम्मेदारी, हमारी, समाज, स्कूल के उन शिक्षकों की भी है। पर आजकल के शिक्षक बच्चों को मोबाईल पर विषय से संबंधित सामग्री उपलब्ध होने की जानकारी दे कर बच्चों को पुस्तक को पढ़ने के लिए प्रेरित नहीं करते हैं जिस कारण बच्चे पुस्तकों में समस्या की समाधान खोजने के जगह, मोबाईल पर कुछ चंद मिनटों में ही अपने समस्या या आवश्यक जानकारी प्राप्त कर लेते हैं।
पहले जिस मोबाईल को बच्चों से दूर रखने की बात उनके पालकों और शिक्षकों के द्वारा कही जाती थी वही आज उन बच्चों को मोबाईल से जानकारी लेते देखते हैं तो वो फूले नहीं समाते, जिसका कारण है, पालकों में उस विषय पर जानकारी का अभाव और उन शिक्षकों को उस बच्चे को पुस्तकों में से समाधान खोजने से बचना इत्यादि कारण बच्चों को पुस्तकों से दूर और मोबाईल के करीब लाकर खड़ा कर दिया है।
ऐसा नहीं है के मोबाईल के उपयोग से मुझे कोई आपत्ति है या उसका विरोध करने को मै कह रहा हूं।

पहले, जब कोई प्रश्न का उत्तर उस बच्चे को अपने पास उपलब्ध पुस्तक में नहीं मिलने पर वह दूसरे साथी के पास उपलब्ध पुस्तक में अपने प्रश्न का जवाब या उत्तर खोजने की कोशिश करता था, और यह प्रक्रिया तब तक उसका चलता था जब तक के उसके प्रश्न का सही उत्तर उसे नहीं मिलता था। आज वही बच्चे प्रश्न का उत्तर मोबाईल पर चंद मिनटों पर प्राप्त कर लेता है।

कहने का तात्पर्य यह है कि, एक बच्चे के दिमाग में उठे प्रश्न के या किसी विषय पर सोचने को और उसका समाधान तलाशने के लिए दूसरे पुस्तकों में वो जो अपने दिमाग़ का उपयोग कर रहा था, अब उसे अपने दिमाग़ में ऐसा कोई विचार भी नहीं आ सकता है, जिसके कारण उसका अपना दिमाग वो उस स्थिति को समझने या दिमाग़ से जानने को सोच भी नहीं पा रहा है।

किसी भी विषय को गंभीरता से समझने, उस विषय पर जानकारी प्राप्त करने, और उस प्राप्त जानकारी को संग्रह करने में अपने दिमाग़ का उपयोग किया जाता है, अब वह लगभग विलुप्त होता जा रहा है और आजकल अपने समस्या, प्रश्नों का समाधान  अन्य उपलब्ध माध्यम से जैसे AI, Chat GPT, या अन्य कई माध्यमों से प्राप्त करने लगे है।
पहले किसी भी साधारण या पढ़े लिखे व्यक्ति से किसी विषय पर चर्चा करने से वह तुरंत उस विषय से संबंधित पुस्तकों को सामने रखकर उन पुस्तकों में अपने प्रश्न का उत्तर बड़ी गंभीरता से खोज लेते थे, और उस समय उनके चेहरे पर जो ख़ुशी झलकती थी वो देखने लायक होती थीं। कई कई लोग तो उसका सही अर्थ खोजने के लिए डिक्शनरी तक भी लाकर सामने रखकर बैठ जाते थे और अल्फाबेटिकल तरीके से उस शब्द के मतलब या पर्यायवाची शब्द को खोज निकालते थे, इससे केवल यह नहीं होता कि उस शब्द का सही अर्थ क्या है मिल जाता था उन्हें… उस शब्द के सही अर्थ के मतलब को खोजने में उन्होंने जो अपने दिमाग़ का उपयोग किया था , सही अर्थ में उस समय उनके दिमाग के विकास या उपस्थिति झलकती थी।
आज साधारण से साधारण शब्द का दूसरा पर्यायवाची शब्द बहुत ही कम लोगों को पता है और मोबाईल के कारण वो अपने दिमाग़ में जोर देने से अच्छा मोबाईल पर उसका समाधान खोजने में ज़्यादा सही समझते हैं।

नई नई तकनीक से किसी के मन में उठे उन प्रश्नों के उत्तर भी मोबाईल से तुरंत प्राप्त हो जाते हैं और उस प्राप्त उत्तर से उस समय उनका काम हो जाता है जिसके कारण उस बच्चे या व्यक्ति के दिमाग़ में कोई नई सोच या कोई नया विचार आ नहीं सकता है।

किसी भी विषय पर तुरंत उसकी जानकारी प्राप्त करना ही कोई लक्ष्य नहीं होना चाहिए, उस समय ये भी दिमाग़ में रहे के उसके साथ साथ और क्या क्या उसकी उपयोगिता हो सकती है ये विचार केवल कई पुस्तकों को अपने स्वयं के द्वारा अध्ययन करके ही प्राप्त किया जा सकता है।
अगर आप किसी विषय में, चार पुस्तकों को पढ़ते हैं तो ये निश्चय है कि आप कुछ अलग सोचने और कुछ हटकर अपनी स्वयं के भी विचार किसी को नए तरीके से समझने, व्यक्त करने में या समझाने के लिए पारंगत हो सकते हैं।
पहले किसी भी अच्छे पढ़े लिखे व्यक्ति से मिलने पर उसके द्वारा किसी भी बच्चे को उपहार स्वरूप पेन और उस बच्चे के उम्र की विषय से सम्बन्धित पुस्तक दिया जाता था।
यहां तक कि कोई बुजुर्ग के घर किसी के जाने पर या किसी बुजुर्ग व्यक्ति के द्वारा किसी से भी मिलने पर उपहार स्वरूप देने वाली कोई वस्तु होती थीं तो वो, होती थी पुस्तकें, वो चाहे रामायण हो या अन्य पारिवारिक या अन्य किसी भी विषय पर उपयोगी पुस्तक।
कुछ वर्षों पूर्व तक, सामान्यतः सभी अपने स्कूल के विषय के पुस्तकों को उनके साथी सहपाठी को या किसी परिचित को पढ़ने दे दिया करते थे, कुछ अपने घर पर अलमारी में सजाकर रखते थे, और अचानक से किसी विषय पर बहस हो तो तुरंत उस अलमारी से उस विषय से सम्बन्धित उपलब्ध पुस्तक में उसका जवाब तलाश करने की परंपरा चलती थी।
लोगों के घरों में कुछ हो न हो, पुरानी पुस्तकों का संग्रह और डिक्शनरी अमूमन सभी के घर पर उपलब्ध होती थी, जो आजकल विलुप्त सी हो गई है।
जब आप किसी विषय पर पुस्तक पढ़ते हैं तो आपके दिमाग में उस विषय के साथ साथ कई और अन्य विशेष विषय पर भी जानकारी होने लगती है और आपका दिमाग़ उस पुस्तक के साथ साथ अपने तरह से भी उस विषय के सन्दर्भ में सोचने लगता है।
एक स्वस्थ इंसान के मस्तिष्क में उठे विचारों को और उसके द्वारा उस विषय पर सोचने, जानकारी प्राप्त करने और उस विषय पर अपने सोच के अनुरूप काफ़ी कुछ सही जानकारी उस व्यक्ति को प्राप्त हो जाती है।
हर परिवार को अपने बच्चों को किसी न किसी तरह पुस्तक पढ़ने की प्रेरणा देते रहना चाहिए क्यूंकि जितना किसी पुस्तक को पढ़कर जानकारी या ज्ञान प्राप्त की जा सकती है वो मोबाईल से कभी मुमकिन नहीं।
किसी भी बच्चे के दिमाग का विकास उसके द्वारा किसी भी विषय पर सोचने, और संदर्भित पुस्तकें लगातार पढ़ने से आसानी से हो जाती हैं।
मोबाईल लगातार चलाने से लत लग सकती है और वो किसी भी स्थिति में किसी के लिए चाहे उसकी व्यक्तिगत, पारिवारिक, या उसके स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता है, पर यदि किसी के द्वारा किसी भी विषय के लिए पुस्तक पढ़ते रहने से उसे प्राप्त जानकारी, विषय में उसकी दक्षता और उसकी सोचने के अलग अंदाज उस व्यक्ति के साथ साथ उस के परिवार, समाज और देश के प्रगति लिए वह एक जागरूक इंसान और वह एक बेहतर उदाहरण सभी के लिए बन सकता है।

पुस्तकों को पढ़ने से कई तरह के फायदे होते हैं जैसे कि:
उस विषय पर सही जानकारी होना जिससे आप अपना पक्ष रख सकते हैं बिना किसी हिचक के।
पुस्तकें किसी भी व्यक्ति को किसी भी विषय पर विस्तार से जानकारी प्रदान करती हैं।
पुस्तकें पढ़ने से उस व्यक्ति के दिमाग़ पर काफ़ी अच्छा प्रभाव पड़ता है और वह काफ़ी अच्छे तरह से समाज में अपना स्थान बना लेता है।
पुस्तकें लोगों को समझने, उनके समस्याओं को समझने और उन समस्याओं के निराकरण में भी अपना खास स्थान रखती हैं।
किसी भी अच्छे फ़िल्म या कोई भी परिकल्पना किसी न किसी के लिखे हुए पुस्तक से प्रेरित होकर ही की जाती हैं।
अन्ततः, आईए, हम भी आज इस विषय पर चिंतन अपने दिल से कर अपने साथ और अपने चारों ओर रहने वालों को पुस्तकों को पढ़ने से होने वाले लाभ और स्वस्थ समाज में उनका योगदान की चर्चा कर उनसे भी पुस्तक पढ़ने और अपने सामर्थ्य के अनुसार ही किसी को भी अच्छी एक पुस्तक हर वर्ष अपने हाथों से दान करने की अपील करें।
आपके घर कोई आए या आप किसी के घर घूमने या मिलने जाएं, आप अपने साथ मिठाई या फल ले जाएं या नहीं कोई बात नहीं, उस घर में रहने वाले किसी एक सदस्य के उनके उम्र के अनुकूल या उनकी रुचि के अनुसार कोई एक पुस्तक उपहार स्वरूप ले जाकर अवश्य प्रदान करें और स्वस्थ समाज का निर्माण करने में अपनी अहम भूमिका अदा करें।
जैसे कि……
मिठाई की मिठास रहेगी, बस कुछ पल के लिए,
ज्ञान भरी पुस्तकें निभाएगी, साथ सदा के लिए!

एक विनम्र अपील:
अपने घर में आप, लग्जरी सोफा रखें, टीवी 60 इंच का रखें, 400 लीटर का फ्रिज रखें या कोई भी विलासिता की वस्तु, पर अब एक नई सोच रखें, के अपने घर में एक स्थान चिन्हित करें और उस स्थान पर कुछ अच्छी पुस्तकों को सहेज कर रखने की कोशिश करें, कोई भी मित्र, रिश्तेदार, या आपके परिचित आपके घर पर कभी आएं तो उन्हें अपने घर में हाल, डाइनिंग, बेडरूम, दो टॉयलेट, बालकनी सब जरूर दिखाएं पर साथ ही साथ एक पल के लिए उन्हें अपने उन पुस्तकों पर भी उनकी निगाहें डालने को कहें और उन्हें भी ऐसा करने को प्रेरित करें!
साथ ही साथ, जैसे किसी किसी त्यौहार में में कुछ न कुछ खरीदना ज़रूरी है सब मानते हैं,  वैसे ही, हर वर्ष कोई एक अच्छी पुस्तक खरीदकर अपने उस चिन्हित स्थान पर रखें और समय निकालकर जरूर उसे पढें और उसकी खास अच्छी बातें, बातों ही बातों में अपनों से जरूर चर्चा करें जिससे कि वो भी उस पुस्तक में भरी हुई ज्ञान रूपी समंदर में गोता लगा सकें।
आपका बस इतना ही करना कई लोगों के जीवन में, विचार में परिवर्तन लाने में अहम भूमिका अदा कर सकती हैं।

ये कभी मत सोचिए कि वो किताब जो सौ पन्नों की दो सौ से तीन सौ की मिल रही है, वह बहुत महंगी है।
आपके द्वारा खरीदी गई उस दो सौ या तीन सौ रूपये से उस लेखक को या उसके प्रकाशक को आपसे कोई करोड़ रुपए की लाभ नहीं हो सकता है पर उस दो से तीन सौ रूपये के पुस्तक को पढ़कर आपको और आपके परिवार को होने वाले ज्ञान से आप और आपके साथी कितने लाभान्वित होंगे, ये परिकल्पना से बाहर हैं।

इसलिए……..
*किताब के क़ीमत पर नज़र मत डालिए, डालिए नज़र उस किताब पर जिसे पढ़कर आप इस जगह पर पहुंचे हैं!*

बस एक बार कल्पना कीजिए कि:
    आपके स्कूल में दाखिला से लेकर आखिरी तक के पढाई की पुस्तकों के कीमत को देखते हुए और कुल होने वाली पुस्तकों के लगभग कीमत को सोचकर यदि आपके पालक उस समय उन पुस्तकों को नहीं खरीदते और आपको उन्हें पढ़ने के लिए नहीं दिया जाता, तो क्या आप आज जो कुछ पढ़ पा रहें हैं, क्या आप सचमुच कुछ भी आज पढ़ने के काबिल होते या आज काबिल इंसान भी होते क्या? विचार कीजिए बस..

पुस्तकों के संदर्भ में मेरी स्वरचित रचना:

अपनी कलम से,

          “पुस्तक ज्ञान ही नहीं, ज्ञान की नानी है”

पुस्तक शब्द अपने आप में,अपार शब्दों का संकलन है,
होता था कभी हर घर में, पर ये अब हो रहा  विलुप्त है!

चाहकर भी कोई नहीं है देखता,हाथ उसके मोबाइल है,
पुस्तक में कोई चमक न लुक,मोबाईल है तो स्टाईल है!

चंद शब्दों की शॉर्ट कट जानकारी,समझे वो ही ज्ञानी है,
नहीं ज्ञान है उसे  “प्रताप”, कि पुस्तक ज्ञान की नानी है!

नहीं हुआ कोई ज्ञानी, बिन लिए सहारे किसी पुस्तक से,
हुआ ज्ञान का चहुमुखी विकास,चाहे कोई भी विचार से!

गीता हो या रामायण, चाहे हो कोई किसी धर्म का ज्ञान,
पुस्तकें ही देती समाधान, यही है बस सौ टके का ज्ञान!

है पुस्तक ही ज्ञान,समाधान और सौ टके की बात भी।

इन्हीं शब्दों के साथ,
आपका अपना….

🖋️ सूर्य प्रताप राव रेपल्ली 🙏
        मौलिक व स्वरचित
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