कविता (मुक्ति) सुमन शर्मा, अध्यापिका दिल्ली सरकार


आज तुम्हें मुक्त करती हूँ मैं
मेरे हर शब्द से, मेरे हर भाव से
मेरी हर दुआ, मेरे मन के हर घाव से
आज मैं तुम्हें मुक्त करती हूँ ……
मेरी हर शिकायत से, मेरी हर उम्मीद से
मेरी हर कमी से, मेरी जीस्त की हर रीत से
आज मैं तुम्हें मुक्त करती हूँ …….
तुम्हें ही नहीं,
मुक्त करती हूँ मैं आज खुद को भी
तुम्हारी आवाज़ सुनने की ललक से
तुम्हारी हो जाने की तड़प से
मैं खुद को मुक्त करती हूँ …….
लगातार तुम्हें सोचते रहने से
मन की बातें साझा करने से
बेसबब घंटों-घंटों तुम्हें सुनने से
मैं खुद को मुक्त करती हूँ ……..
अब तुम खुश रहो अपनी दुनिया में
अब जी भर वफ़ा निभाओ अपने दोस्तों से
अब कोई थर्ड क्लास, चीप, इडियट
तुम्हें कभी नहीं टोकेगी
अब अपने क्लास वन दोस्तों के साथ
दुनिया बनाओ, अपनी दुनिया सजाओ
खुद खुश रहो, और सबको खुश करो
मैं हम दोनों को ,
आज एक दूसरे से मुक्त करती हूँ …………..।