क्या सिंधी समाज की पंचायत को अब भाजपा सिंधी समाज पंचायत माना जाए ?

विजय की कलम

जैसे-जैसे देश तरक्की कर रहा है विज्ञान तरक्की कर रहा है वैसे-वैसे कलयुग का प्रभाव भी बढ़ रहा है पाप भी बढ़ रहा है पर हमारी सोच कहां जा रही है हम कहां जा रहे हैं इस और कोई ध्यान नहीं दे रहा है हर कोई सिर्फ जेब भरने में और कुर्सी पाने में लगा बैठा है

(जब अपना काम है बनता तो भाड़ में जाए जनता)

यह एक कहावत है पर आज यह हमारे समाज में सही साबित हो रही है कुर्सी की बुख सत्ता की लालच कुछ नेताओं को तो लगती है और राजनीतिक में यह आम बात है पर अब यह गंदी राजनीति और कुर्सी की भूख हमारे समाज में भी घुस गई है खास कर कुछ ऐसे लोग हैं जीनके कारण जो हमारी पुरानी परंपरा चली आ रही थी वह अब खत्म होने के कगांर पर पहुंच रही है जो हमारी पंचायतों को मान-सम्मान
से देखा जाता था अब वह एक बिजनेसमैन की तरह हो गई है अभी तक हमने ना देखा था ना सुना था पर इस नगरी निकाय के चुनाव में जो हम देख रहे हैं वह बड़ा ही दुखदाई देने वाली घटनाएं है पूज्य सिंधी पंचायत का काम क्या है कि किसी एक वर्ग पार्टी का प्रचार करना उसके लिए वोट मांगना? पंचायत का काम है सभी पार्टियों के पास जाना वह अपने समाज को अधिक से अधिक लोगों को टिकट मिले इसके लिए कार्य करना अगर किसी सीट पर दोनों पार्टियों या तीन पार्टीया अगर हमारे समाज को टिकट देती है तो हमें वहां पर टस्थत रहकर भूमिका निभाई चाहिए वह समाज को कहना है कि वह अपने विवेक पर उम्मीदवार चुनकर पार्टी को देखकर वोट दिजीए जो भी जीतेगा वह समाज का ही व्यक्ति है और समाज के लिए ही कार्य करेगा पर कुछ समय से देखा जा रहा है खासकर अभी के चुनाव में जिस तरह एक पार्टी के पक्ष में छत्तीसगढ़ से लेकर बिलासपुर तक जो हाल है बड़ा ही बुरा हाल है मैं किसी पार्टी की बुराई नहीं कर रहा हूं ना किसी के लिए अच्छा बोल रहा हूं पर जो सच है वह सबके सामने लाना जरूरी है क्योंकि कुछ लोग समाज के नाम पर अपनी दुकानदारी कर रहे हैं समाज के लोगों को बेवकूफ बना रहे हैं मूर्ख बना रहे हैं अगर आप सच्चे समाज सेवी हैं समाज के हितेषी हैं और पंचायत के अगर किसी पद पर बैठे हैं या अध्यक्ष हैं तो ऐसा कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए जिससे हमारे समाज पर उंगली उठे या पंचायत का नाम खराब हो पर ऐसा आजकल कोई नहीं सोच रहा है? जिसे देखो अपना ही सोच रहा है? जब सत्ता में दूसरी पार्टी थी तब यही समाज के बड़े-बड़े लोग जाकर उन नेताओं के पास जी हजूरी करते थे बुलाते थे कार्यक्रमों में माला पहनाते थे जय जयकार करते थे आज सत्ता परिवर्तन हो गया तो उन्हें अछूत समझने लगे ? याद रखें समय का पहिया है आज इसकी सरकार है तो कल उसकी सरकार होगी हम वह कार्य करें जिसमें हमारे समाज का भला हो एक पार्टी का ठप्पा लगाकर अब कार्य न करें? हां अगर बात देशहित की हो राष्ट्रहित की हो तो आप जरूर आगे बढ़े पर लोकल बॉडी के चुनाव में तो लोग व्यक्तिगत उम्मीदवार को ज्यादा देखते हैं अगर कोई पार्टी हमारे समाज के लोगों को टिकट दी है तो बड़ी खुशी की बात है उसका धन्यवाद भी करते हैं हम पर किसी एक पार्टी के लिए दूसरी पार्टियों को नाराज करना यह उचित कहां तक है?
जब वह पार्टी सत्ता में आएगी तो किस मुंह से आप जाकर उन्हें कहोगे कि हमें समाज को टिकट दो यां यह पद दो? हमारे बिलासपुर सिंधी समाज के वरिष्ठ समाजसेवी वह कई संस्थानों में पंचायत में उच्च पद पर विराजमान रहे स्वर्गीय देवीदास वाधवानी भैया उन्होंने 5 साल पहले इसी नगरी निकाए के चुनाव के समय में सिंधी धर्म शाला गोल बाजार में समाज के कई वरिष्ठ जन अध्यक्ष लोग बैठे थे तब एक बात कही थी कि समाज के लोगों को दोनों पार्टियों में होना चाहिए ताकि किसी भी पार्टी की सत्ता हो, अगर हमारा समाज का व्यक्ति चुनकर आता है तो वह समाज का कार्य करेगा और आज एक राष्ट्रीय पार्टी ने 70 में से एक टिकट दी है तो हमारा हक बनता है कि हम उसे एक को जीताए ,ताकि उस पार्टी का भरोसा हमारे ऊपर हो और दोबारा हमें वह 1 से बढ़कर 5 सिटे दे उनकी बात को अनसुना कर दिया और 5 साल बाद आज फिर वही स्थिति बनी है पर यह सब देखने के लिए देवीदास भैया हमारे बीच नहीं है अगर होते भी तो क्या कर सकते थे बस अपने विचार रख सकते थे जो उस समय रखे थे समाज हित के लिए पर जिन्हें अपना हीत , अधिक दिखता हो वह समाज हित का क्या सोचेंगे? आज ऊपर बैठे देवीदास भैया अभी यह सब देखकर बहुत दुखी हो रहे होंगे जैसा मैं हो रहा हूं अभी भी वक्त है सोचे समझे और अपना हित नहीं समाज का हित देश हित सर्वोपरि है और रहेगा पंचायत को पंचायत रहने दे राजनीतिक पार्टी ना बनाए, बाकी सभी समझदार हैं ज्ञानवान है बुद्धिजीवी हैं (संपादकीय)