“मेकाहारा मारपीट कांड”: पत्रकारों की एकता के आगे झुकी सत्ता, अब सोशल मीडिया पर कांग्रेस-भाजपा आमने-सामने!
राजनीति का दोहरा चरित्र उजागर, पत्रकारिता बनी मोहरा?
पत्रकारों का आक्रोश और एकता: प्रशासन को झुकना पड़ा
अब सवाल जनता से है—क्या आप सच्चाई के साथ हैं या सिर्फ ट्रेंडिंग पोस्ट्स के?
आदित्य गुप्ता
रायपुर – राजधानी रायपुर के डॉ. भीमराव अंबेडकर स्मृति अस्पताल (मेकाहारा) में पत्रकारों के साथ हुई अभद्रता और मारपीट की घटना ने पूरे प्रदेश के मीडिया जगत को हिला कर रख दिया है। घटना के विरोध में पत्रकारों की ऐतिहासिक एकता ने न केवल प्रशासन को त्वरित कार्रवाई के लिए मजबूर किया, बल्कि सियासी गलियारों में भूचाल ला दिया। अब यह मामला सोशल मीडिया की दीवारों पर कांग्रेस और भाजपा के आरोप-प्रत्यारोप की रणभूमि बन चुका है।
घटना का सारांश: पत्रकारों के साथ अस्पताल परिसर में गुंडागर्दी
25 मई को चैनल IBC24 के तहसीन जैदी और लल्लूराम डॉट कॉम के शिवम मिश्रा, थाना उरला क्षेत्र में चाकूबाजी की घटना पर रिपोर्टिंग के सिलसिले में मेकाहारा पहुँचे थे। इसी दौरान निजी सिक्योरिटी एजेंसी ‘Call Me Services’ के गुर्गों—वसीम अकरम उर्फ वसीम बाबू, सूरज राजपूत, मोहन राव गौरी और जतीन गंजीर ने उनके साथ गाली-गलौच, मारपीट और यहां तक कि पिस्टल तानकर धमकाया। इस घटना का वीडियो वायरल हुआ और इसके बाद पत्रकारों में भारी आक्रोश फैल गया।
पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए चारों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। वसीम के पास से अवैध हथियार और 22 जिंदा कारतूस भी बरामद किए गए। आरोपियों को सार्वजनिक रूप से सिर मुंडवाकर जयस्तंभ चौक से जुलूस में निकाला गया, जो स्पष्ट संदेश था—पत्रकारों के खिलाफ हिंसा को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
सोशल मीडिया पर वायरल हुईं तस्वीरें, शुरू हुआ सियासी महायुद्ध
घटना के बाद सोशल मीडिया पर एक के बाद एक तस्वीरें वायरल हुईं, जिनमें वसीम बाबू दोनों प्रमुख दलों—कांग्रेस और भाजपा—के नेताओं के साथ दिखाई दे रहा है। यही नहीं, वायरल फोटो में वसीम बाबू के साथ एक व्यक्ति नजर आ रहा है, जिसने अलग-अलग मौकों पर दोनों राजनीतिक दलों के कार्यक्रमों में उपस्थिति दर्ज की थी। इन तस्वीरों ने न केवल जनता को भ्रमित किया, बल्कि नेताओं को भी बैकफुट पर ला दिया।
कांग्रेस का हमला: “भाजपाइयों का दामाद है वसीम!”
छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने आधिकारिक सोशल मीडिया पोस्ट में वसीम की भाजपा नेताओं के साथ तस्वीर साझा करते हुए लिखा:
“अपने जीजा को नमस्ते करो भक्तों… डबल इंजन सरकार के संरक्षण में बाउंसर का साम्राज्य फलता-फूलता रहा।”
कांग्रेस ने आरोप लगाया कि वसीम का सिक्योरिटी बिजनेस भाजपा नेताओं की छाया में चलता रहा और प्रशासन ने आंख मूंदे रखीं। कांग्रेस प्रवक्ताओं ने यह भी मांग की कि वसीम और भाजपा के बीच के संबंधों की निष्पक्ष जांच हो।
भाजपा का पलटवार: “कांग्रेस का भी आशीर्वाद रहा है वसीम पर”
भाजपा ने पलटवार करते हुए वसीम की कांग्रेस नेताओं के साथ ली गई तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट की और कांग्रेस से सवाल पूछा:
“जो आज दूसरों पर कीचड़ उछाल रहे हैं, वे पहले खुद अपने गिरेबान में झांकें। आरोपी दोनों पक्षों से जुड़ा रहा है, अपराधी का कोई दल नहीं होता!”
भाजपा नेताओं ने आरोप लगाया कि कांग्रेस इस गंभीर पत्रकार विरोधी घटना को भी सियासी रंग देकर मुद्दे से भटका रही है।
राजनीति का दोहरा चरित्र उजागर, पत्रकारिता बनी मोहरा?
इन वायरल तस्वीरों और सोशल मीडिया वॉर ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वसीम बाबू जैसे तत्वों का राजनीतिक दलों से “दोहरा संपर्क” रहा है। जब तक लाभ मिला, तब तक सभी ने नजदीकी बनाई, और अब जब कानून का शिकंजा कस गया, तो ‘पाला बदल’ की राजनीति शुरू हो गई।
एक के साथ दोनों दलों के कार्यक्रमों की तस्वीरें भी इस बात का संकेत हैं कि कई बार पत्रकारों को भी राजनीतिक आयोजनों की ‘विलंबित कीमत’ चुकानी पड़ती है।
पत्रकारों का आक्रोश और एकता: प्रशासन को झुकना पड़ा
इस घटना ने पत्रकार समुदाय को एकजुट कर दिया। रायपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष प्रफुल्ल ठाकुर के नेतृत्व में धरना प्रदर्शन, मुख्यमंत्री आवास का घेराव और पुलिस अधीक्षकों से वार्ता के दबाव में प्रशासन को त्वरित एक्शन लेना पड़ा। स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने फोन पर पत्रकारों से कहा:
“ऐसे लोगों को हम मिट्टी में मिला देंगे।”
निष्कर्ष: यह सिर्फ हमला नहीं, लोकतंत्र पर प्रहार है
मेकाहारा कांड एक सामान्य आपराधिक घटना नहीं थी। यह चौथे स्तंभ—पत्रकारिता पर सीधा हमला था। सोशल मीडिया पर चल रही कांग्रेस-भाजपा की जंग ने यह सिद्ध कर दिया कि राजनीतिक अवसरवादिता किसी भी सिद्धांत से बड़ी हो चली है।
यह मामला न्याय की लड़ाई से सियासी तमाशे में बदलता दिख रहा है।
अब सवाल जनता से है—क्या आप सच्चाई के साथ हैं या सिर्फ ट्रेंडिंग पोस्ट्स के?
पत्रकारों की एकता ज़िंदाबाद | लोकतंत्र अमर रहे |