ये तस्वीरें उस इंसान के वीभत्स चेहरे का सच बयान कर रही हैं जिसने व्यक्तिगत लाभ के लालच में सैकड़ों परिंदों का आशियाना एक पल में उजाड़ दिया। उसने असंख्य जीव जंतुओं के जीवन चक्र को एक झटके में उखाड़ फेंका, अमानवीयता का वो घिनौना चेहरा उन लोगों से भी इत्तेफाक नहीं रखता जो गाहे-बगाहे इन पेड़ों (बांस) की छाँव में कुछ देर धूप-बारिश से राहत पा जाया करते थे। जी हाँ, मैं इन तस्वीरों के माध्यम से एक बार फिर उस मोहनभाठा के दर्द की हक़ीकत बताने की कोशिश कर रहा हूँ जिसके बड़े हिस्से में सैकड़ों परिंदों का बसेरा है, कई प्रजाति के जीव-जंतु अपना जीवन चक्र चलाते हैं। इतना ही नहीं 'मोहनभाठा' उन परिंदों के लिये भी किसी जन्नत से कम नहीं जो प्रवास पर दूर देश से भारत के विभिन्न हिस्सों में हर साल पहुँचते हैं। स्थानीय और प्रवासी पक्षियों के ठहराव, उनके दाना-पानी को अपने आँचल में समेटे मोहनभाठा हर वक्त किसी बड़े संकट को महसूस करता हुआ दिखाई देता है।

उसके (मोहनभाठा) सीने पर कब, कौन, कितना कब्ज़ा जमा लेगा मालूम नहीं। पिछले दिनों (1 जून 2025) जब यह दृश्य आँखों के सामने आया तो मन कचोट गया, अपनी बात कहने के लिए तथ्य और साक्ष्य दोनों जरूरी थे लिहाजा कुछ तस्वीरें खींच ली। हवा में उड़ती गर्द और जमीन पर धराशायी पेड़ों की आड़ से कोई था जो मुझे तस्वीर खींचता हुआ देख रहा था, मन का चोर कब तक दूर से देखता। वो पास आया, बोला 'मैं प्रदीप गुप्ता हूँ, क्या आप इस तरफ की तस्वीरें खींच रहे हो ? मैंने हाँ में जवाब दिया, उसने कहा ये सारा कुछ मेरा ही किया हुआ है। ये जो खेत और फ़ार्म देख रहे हो मेरा है। उसने जिस अंदाज में अपना परिचय और मिल्कियत की झांकी सजाई उससे कहीं ज्यादा आत्मविश्वास के साथ मैंने अपना जवाब प्रस्तुत किया। गुप्ता जी की पेशानी पर कुछ सलवटें पड़ी, चेहरा कुछ परेशान होता दिखाई पड़ा। परेशानी होनी भी चाहिये, उसने सैकड़ों परिंदों का घर उजाड़ा था। लोगों की छाँव छीनने वालों को सुकून ना मिले ऐसी बद्दुआ तो मैं नहीं दूंगा, हाँ इतना जरूर कहूंगा कि कुदरत के साथ किया गया खिलवाड़ गुप्ता जी की नई प्लानिंग पर पानी जरूर फेरेगा। फल, सब्जी की पैदावार से ऊब चुके गुप्ता जी अब नारियल की खेती करेंगे।' ऐसे कई गुप्ता हैं जिनके नाम और सरनेम के साथ पते अलग हो सकते हैं मगर करतूत सबकी एक ही है। इंसानी शक्ल में ये वो गिद्ध हैं जिन्होंने मोहनभाठा (कभी ब्रिटिश सेना की भूमि थी, अब राज्य सरकार के पास है।) की सैकड़ों एकड़ भूमि पर कब्जा जमा रखा है। दरअसल इस पूरे कब्जे के पीछे कई कड़ियाँ जुडी हैं, गाँव के सरपंच से लेकर जिला स्तर के अफसर इस खेल में शामिल हैं। रसूखदार लोग किसान बनकर यहां कुछ एकड़ भूमि पट्टे पर लेते हैं, उसकी आड़ में कब्जे का खेल शुरू होता है। मसलन किसी व्यक्ति ने 20 एकड़ भूमि पट्टे पर ली उसने उस 20 एकड़ की आड़ में 60 से 70 एकड़ भूमि को घेर लिया है । विश्वसनीय सूत्र की माने तो गुप्ता जी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। जानकार बताते हैं कि मोहनभाठा में पंच-सरपंच की जेब गर्म करने से लेकर अफसरों की खातिरदारी के बाद सरकारी भूमि को अपने बाप की मिल्कियत समझने वालों ने ना सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुँचाया बल्कि उसकी आबो-हवा को प्रदूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। हमको गुप्ता,केडिया,अग्रवाल,खेड़िया या कोई भी जमीनखोर से व्यक्तिगत परेशानी नहीं, हमारी परेशानी उन बेजुबान पशु-पक्षियों को लेकर हैं जिनका अस्तित्व आज संकट में दिखाई देता है। ये वो लोग हैं जिन्होंने परिंदों की ज़िंदगी छीनने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, बाकी कसर बेख़ौफ़ घूमते शिकारी पूरी करते हैं। इन तमाम हालातों और हकीकतों से जब भी हमने जिला प्रशासन, वन विभाग को अवगत कराया जवाब में सिर्फ आश्वासन मिला। उन अफसरों की बेशर्मी, असंवेदनशीलता की दाद देनी होगी जिन्हे सच की ख़बर तो है मगर ठोस कदम उठाने का माद्दा नहीं। देखते हैं प्रशासन कब तक आँख-कान को बंद रखता है, अंजाम की परवाह किये बिना हम अपना काम जारी रखेंगे। चलते-चलते एक बात और, मैंने जिन गुप्ता जी की घिनौनी करतूत से आपको वाकिफ करवाया है वो लम्बे समय तक जेल में भी रहें हैं। बताते हैं उन्होंने अपने फ़ार्म में लगे पपीतों की चोरी के आरोप में (मोहनभाठा) एक बन्दे पर गोली चला दी थी।