विजय नाद
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✍🏻 विजय कुमार शर्मा
📞 9610012000
अजमेर के आनासागर में इस बार सिर्फ़ पानी नहीं सड़ा, संवेदनाएं भी गल गईं।
मरी हुई मछलियाँ ऊपर तैर रही थीं
और ज़िम्मेदार लोग नीचे बैठकर
फोटो खिंचवाने की मुद्रा साध रहे थे।
तीन दिन का “सफाई महायज्ञ” रचा गया —
मंच, माला, माइक और मीडिया के बीच
मछलियों का ‘विधिपूर्वक उठावना’ हुआ।
🧎♂️ पहला दिन: उद्घाटन और उदघोषणा
देश के कृषि राज्य मंत्री और शहर के नए-नए कॉलमकार बने विधानसभा अध्यक्ष जी ने
झील के किनारे खड़े होकर घोषणा की —
“आस्था का जल ही अजमेर का असली गहना है।”
पीछे झील में मरी मछलियाँ
उन भाषणों पर उतनी ही प्रतिक्रिया दे रही थीं
जितनी जनता हर चुनाव से पहले देती है —
“निश्चल मौन।”
🌊 दूसरा दिन: सफाई का स्वांग
हज़ारों नागरिकों को “सेवा” के नाम पर झील किनारे बुलाया …
किसी के हाथ में जाल था, किसी के हाथ में फावड़ा
किसी के हाथ में प्लास्टिक की थैली,
और किसी के पास सिर्फ़ कैमरा।
मछलियों को झील से बाहर निकाला गया,
फूलमालाओं से सजाया गया,
मानो वे मृत्युलोक की नहीं, वोटलाभ की दूताएं हों।
☔ तीसरा दिन: उठावना और जल-प्रवचन
तीसरे दिन राज्य के जल संसाधन मंत्री जी आकर
मछलियों के उठावने में शरीक हुए —
संवेदना की भाषा में कहा गया,
“जल है तो जीवन है।”
भीगती आंखों की जगह
भीगते कपड़े और टपकती योजनाएं दिखाई दीं।
⚡ इंद्रदेव का प्रतिशोध
पर इंद्र देवता को यह तमाशा मंज़ूर नहीं था।
उन्हें यह स्वीकार नहीं हुआ कि
अरबपतियों के निजी सेप्टिक टैंक बन चुके
आनासागर की लाश पर
राजनीति अपने सैंपलों की प्रदर्शनी लगाए।
उन्होंने 42 मिमी बारिश कर दी।
तीन दिन में बाहर निकाली गईं मछलियाँ,
प्लास्टिक की थैलियाँ,
श्रद्धांजलि के फूल,
और भाषणों की गूंज —
सब वापस झील में बहा दिए गए।
प्रकृति ने एक झटके में
तीन दिन की ‘राजकीय लीला’ का विसर्जन कर दिया।
📢 अब सवाल जनता से है…
क्या मछलियों के उठावने से झील पुनर्जीवित हो जाएगी?
क्या हर बार इंद्र को आना पड़ेगा
ताकि झील की आत्मा को नौटंकी से मुक्ति मिले?
झीलें मूर्ति नहीं होतीं, कि सिर्फ़ सजाई जाएं —
वे जीव होती हैं, उन्हें जिया जाता है।
आनासागर के तट पर जो हुआ —
वह जल का सम्मान नहीं,
जनता की याददाश्त की परीक्षा थी।
और हुआ ये
मछलियाँ मर गईं,
झील फिर गंदली हो गई,
लेकिन चेहरों पर फ़्रेशनेस लौट आई।
क्योंकि फ़ोटो खिंच गई,
वीडियो बन गया,
और कॉलम भी तैयार है।
इंद्रदेव की बारिश ने
झील को तो नहीं,
तमाशे को धो डाला।
📣 अब इंद्र को बार-बार मत बुलाओ,
इस बार खुद बदलो —
वरना अगली बार बारिश नहीं, प्रलय आएगी।
जय जल, जय जनचेतना,
झील के हत्यारों का असली उठावना तब होगा जिस दिन जनता सही मायने में जागेगी।