बेनकाब सत्तारूढ़ पार्टी : पहाड़गंज में बिल्डर्स लॉबी और जनप्रतिनिधि की कथित साठगांठ से अवैध निर्माण को बढ़ावा

विक्रम गोस्वामी  

नई दिल्ली। दिल्ली के पहाड़गंज के चुना मंडी क्षेत्र में, गली नंबर 11 में 1908/1910, 1911/1913 और गली नंबर 10 में 1919/20, 1920/1921 पर एक विशाल अवैध बहुमंजिला इमारत बिना किसी रोकटोक के बन रही है। स्व-मूल्यांकन योजना के तहत 75-75 वर्ग गज के चार अलग-अलग भूखंडों के लिए मंजूर किए गए भवन योजनाओं को मिलाकर 350 वर्ग गज से अधिक क्षेत्र में यह निर्माण किया जा रहा है, जिसमें सार्वजनिक भूमि पर अवैध अतिक्रमण भी शामिल है। यह न केवल भवन उपनियमों, दिल्ली नगर निगम (डीएमसी) अधिनियम 1957, सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली हाई कोर्ट और दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के दिशानिर्देशों का उल्लंघन है, बल्कि इसमें जनप्रतिनिधि और करोल बाग जोन, आनंद पर्वत के कनिष्ठ अभियंता (जेई) श्री देवेंद्र कुमार, (एई) श्री दीपक त्यागी की कथित मिलीभगत भी उजागर होती है।सूत्रों के मुताबिक, बिल्डर्स ने आर्किटेक्ट्स के माध्यम से छोटे भूखंडों के लिए मंजूरी हासिल की, लेकिन बिना अनुमति के इन्हें मिलाकर एक विशाल इमारत बना रहे हैं। यह न केवल क्षेत्रीय नियमों का उल्लंघन है, बल्कि सार्वजनिक स्थानों पर अतिक्रमण से भीड़भाड़ बढ़ रही है।

पहाड़गंज के निवासियों का कहना है कि उनकी शिकायतों को निगम ने अनसुना कर दिया। एक स्थानीय दुकानदार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हमने पहले भी ऐसा देखा है – छोटी मंजूरी लेकर विशाल निर्माण किया जाता है, और अधिकारी सब देखकर भी चुप रहते हैं।” देवेंद्र कुमार पर आरोप है कि वे जनप्रतिनिधि और बिल्डर्स के साथ मिलकर उल्लंघनों को नजरअंदाज कर रहे हैं, संभवतः अनुचित लाभ के बदले।
यह मामला दिल्ली में अवैध निर्माणों की व्यापक समस्या को दर्शाता है। हाल की रिपोर्ट्स में खुलासा हुआ है कि निगम ने सैकड़ों अनधिकृत संपत्तियों को मंजूरी दी, जिनमें स्पष्ट अनियमितताएं थीं।  अनधिकृत कॉलोनियों में भी ऐसी इमारतें सालों तक बनी रहीं, बिना किसी कार्रवाई के।  बिल्डर्स लॉबी स्व-मूल्यांकन योजना का दुरुपयोग कर बिना जांच के निर्माण करती है, जिससे सुरक्षा और पर्यावरणीय खतरे बढ़ रहे हैं।
स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के मुताबिक जनप्रतिनिधि पर आरोप है कि वे इस संरक्षण रैकेट के सूत्रधार हैं। जांच से पता चलता है कि बिल्डर्स माफिया से उनकी कथित साठगांठ के कारण ऐसे प्रोजेक्ट्स पर कार्रवाई नहीं होती। सोशल मीडिया पर हाल ही में ऐसी शिकायतें सामने आईं, जहां एक सत्तारूढ़ पार्टी से जुड़े बिल्डर ने शिकायतों के बावजूद अवैध निर्माण जारी रखा, और निगम ने केवल नोटिस चस्पा कर खानापूर्ति की।  पहाड़गंज में जनप्रतिनिधि का कथित प्रभाव निरीक्षणों को रोक रहा है, जिससे निर्माण तेजी से बढ़ रहा है। एक पूर्व निगम कर्मचारी ने कहा, “यह मिलीभगत का स्पष्ट मामला है – जेई उच्च अधिकारियों को रिपोर्ट करता है, लेकिन जनप्रतिनिधि का दबाव कार्रवाई रोक देता है।”
कानूनी नजरिए से यह गंभीर है। सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है कि अवैध निर्माणों को सार्वजनिक हित पर प्राथमिकता नहीं दी जा सकती।  फिर भी, पहाड़गंज में यह प्रोजेक्ट उपनियमों, अतिक्रमण और डीडीए की मंजूरी के बिना भूखंड विलय को तोड़ रहा है। हाई कोर्ट के शहरी विकास दिशानिर्देशों की अनदेखी हो रही है, जिससे भूकंपीय जोखिम वाले क्षेत्र में खतरा बढ़ रहा है। पर्यावरणीय चिंताएं भी बढ़ रही हैं, क्योंकि अतिक्रमण से जल निकासी और हरे-भरे स्थानों पर असर पड़ रहा है, जिससे मानसून में बाढ़ की समस्या बढ़ी है।
आलोचकों का कहना है कि राजनीतिक संरक्षण इस माफिया को बढ़ावा दे रहा है। मुंबई में भी ऐसी ही मिलीभगत सामने आई थी।  दिल्ली में मुंडका अग्निकांड जैसे मामलों में भी सत्तारूढ़ पार्टी से जुड़े लोगों को अनुचित लाभ देने की बात सामने आई।  जनप्रतिनिधि और कुमार पर रिश्वत लेकर चुप्पी साधने के आरोप हैं। निवासी मांग कर रहे हैं कि इस साइट को सील कर, अवैध हिस्सों को तोड़ा जाए और जनप्रतिनिधि व कुमार को जवाबदेह ठहराया जाए। एक स्थानीय एनजीओ के कार्यकर्ता राजेश कुमार ने कहा, “अगर इसे नहीं रोका गया, तो यह खतरनाक मिसाल कायम करेगा।” दिल्ली में 1,700 से अधिक अनधिकृत कॉलोनियों के बीच, यह मामला निगम में पारदर्शिता की जरूरत को रेखांकित करता है। क्या अधिकारी कार्रवाई करेंगे, या बिल्डर्स लॉबी फिर हावी होगी? जनता जवाब का इंतजार कर रही है।