विजय की ✒कलम
बिलासपुर :- शहर में वैसे तो संस्थाएं बहुत हैं सभी अपने-अपने हिसाब से कार्य कर रही हैं पर जैसा केवल पहले भी कहा है जिस तरह एक तानाशाह के गिद्ध कि नजर किसी संस्था या पंचायत में पढ़ती है तो उसका बेड़ा गर्क हो जाता है?
और यही हाल ,
हाल ही में हमें देखने को मिल रहा है बिलासपुर के सबसे पुरानी और देश की सबसे बड़ी संस्था भारतीय सिंधु सभा बिलासपुर इकाई की ?
हाल भी बड़ा दुखद नजर आ रहा है ?
इससे पहले भी हमने विस्तार से विजय की कलम में जानकारी दी थी कि अभी भी वक्त है इस संस्था को अपने नाम के अनुसार कार्य करने दिया जाए वह उसे अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए जरूरी है कि वह धन्ना सेठो से ? चापलूसो से? और तानाशाह के गिद्ध की नजर से बचा कर रखें?
पर लगता है इन्हें समझ में नहीं आया वह आएगा भी नहीं? क्योंकि अब इसमें मैंने पहले ही कहा था की सेंट्रल पंचायत के लोगों की एंट्री हो चुकी है?
और तानाशाह कि गिद्ध की नजर और छाया भी पड़ चुकी है?
तो अब भगवान ही मालिक है इस संस्था का?
पर जब ऐसा हाल देखते हैं कुछ ऐसा समझ में आता है दिखाई देता है सुनने में आता है तो दुख होता है जब अपने बड़े बुजुर्गों का अपमान होता है?
हाल ही में प्रतिभा सामान समारोह कार्यक्रम का आयोजन किया गया जो साल में एक बार होता है और बड़ा तामझाम किया जाता है?
चंदा भी ज्यादा इकट्ठा किया गया है?
और इस बार भी यह कार्यक्रम आयोजन किया गया खुशी की एक ही है वह बात है कि रायपुर वाले यहाँ आकर उन बड़े बुजुर्गों का नाम याद कर रहे थे और धन्यवाद कर रहे थे कि जिनके कारण रायपुर की शाखा खुली?
और दुख इस बात का है कि अपने घर के ही लोग उन बड़े बुजुर्गों को भूल गए कुछ तो भगवान के पास चले गए है?
पर दो-चार जो बचे हैं उनको भी वह सम्मान नहीं मिला जो मिलना चाहिए था?
क्या दादा प्रताप नागदेव या हुंदराज जेसवानी जैसे पुराने सदस्यों वरिष्ठ जनों का सम्मान किया गया ? उन्हें मंच पर स्थान दिया गया उन्हें सह सम्मान निमंत्रण दिया गया?
दादा प्रताप नागदेव अपने घर में है असवस्थ हैं कोई बात नहीं पर उनसे मिलने के लिए जा सकते थे उनका वहां पर सम्मान कर सकते थे? ऐसा उन्होंने किया?
दादा हुंदराज जेसवानी कार्यक्रम में उपस्थित थे पर निचे बीच की लाइन में बैठे थे ? क्या उन्हें बुलाकर मंच पर विराजमान नहीं कर सकते थे? उन्हें वह सम्मान नहीं दे सकते थे जो वह उसके अधिकार के लायक थे?
जो कल के धना सेठ हाल ही में कुछ समय पूर्व ही संस्था में शामिल हुए हैं ? आज वह बड़े-बड़े ऊंचे पदों पर बैठे हैं? और जो पुराने लोग हैं 20 साल 30 साल से सेवा कर रहे हैं आज भी वह उसी स्थिति पर है जो शुरुआत में थे?
क्या उन्हें सिर्फ झाड़ू लगाने के लिए कुर्सियां बिछाने के लिए और पोस्टर बैनर बनवाने के लिए और सड़कों पर चोंक चोराहो में बैनर पोस्टर फ्लेक्स लगवाने के लिए रखा है?
हाल ही में भारतीय सिंधु सभा का फिर से टिम का गठन हुआ ? और जैसा की सूत्रों से जानकारी मिली है जो पुराने अध्यक्ष थे वह फिर से रिपीट हो गए हैं ? महामंत्री भी वही है? कोषाध्यक्ष भी वही है?
मतलब पुरी की पूरी टीम फिर से रिपीट हो गई?
यह देखकर हंसी भी आती है और दुख भी होता है ?
कल तक कहने वाला व्यक्ति कि मुझे कुर्सी से प्यार नहीं , विजय भाई मुझे सेवा से प्यार है, पर कुर्सी में बैठने के बाद कुर्सी छोडने के लिए तैयार नहीं है?
जबकि सेंट्रल पंचायत झूलेलाल सेवा समिति ,सिंधु चेतन, वह कई अन्य व्यापारिक संस्थानों में भी ऊंचे ऊंचे पदों में बैठे हैं? उसके बाद भी यह कुर्सी नहीं छोडेंगे यह कुर्सी भी चाहिए ? 56 भोग की तरह सब कुछ चाहिए हमें?
तभी मैं 🙋 सोचता हूं की कुर्सी में है क्या एक बार मैं भी तो बैठ कर देखू इसमें है क्या जो लोग बैठने के बाद छोड़ना नहीं चाहते?
आखिर कब तक धन्ना सेठों के आगे निर्म वर्ग और मध्यम वर्ग का यूं ही अपमान होता रहेगा?
अकेले में आकर कब तक आंसू बाहते रहोगे? दुनिया के सामने नकली मुस्कान दिखाते रहोगे आखिर कब तक?
वक्त की पुकार यही है जब खुद मारोगे तभी स्वर्ग पहुंच पाओगे?
कहने का तात्पर्य यह है
कि आपको बोलना होगा अपने मंच पर बोलना होगा और सच बोलना होगा नहीं तो यूं ही घुट घुट कर मर जाओगे? और आपकी आने वाली संतान भी यूं ही इनकी गुलाम बनकर रह जाएगी?
ऐसा लगा कि यह प्रतिभा सम्मान समारोह न होकर खुद का सम्मान समारोह कार्यक्रम आयोजन कर रहे हैं?
अपने ही लोगों की जय जयकार करवाना अपने लोगों को मंच पर बुलाना अपने ही लोगों को डांस ब्रैक करवाना अपने लोगों को सिर्फ बुलाकर बच्चों को प्रोत्साहित सम्मान स्वरूप सम्मान पत्र मोमेंटो देना?
अपने ही सिर्फ खास एक वर्ग को जो टीम बनाकर रखी है एक गैंग बना कर रखा है? उन्हीं को सिर्फ मीडिया के सामने वह हर जगह प्रजेंट करना क्या यह उचित है?
कप्तान वह होता है जो सबसे पीछे खड़ा होता है और बार-बार 11 नंबर वाले को आगे भेजता है और हौसला अफजाई करता है सच्चा और ईमानदार कप्तान उसे कहते हैं?
अगर टीम विजेता होगी तो नाम तो कप्तान का वैसे ही होगा फिर काहे के लिए इतना…. ऐसे कार्य करना?
सम्मान सभी का होना चाहिए बडो़ का भी हो छोटो का भी हो पर शुरुआत बड़े बुजुर्गों से होनी चाहिए? क्योंकि उनकी छत्र छाया में ही रहकर हम आगे बढ़ते हैं और आज इतनी पुरानी संस्था के जो आप पद पर बैठे हैं वह सब उन्हीं के कारण है पहले सम्मान उनका होना चाहिए?
यह मर्यादा संस्कृति आज भूल गए हैं क्यों?
चंद कागजों के नोटों की गडी के कारण?
सत्ता की भुख व कुर्सी के कारण?
अभी भी वक्त है मैंने पहले भी कहा है हर बार कहता हूं
प्रेम करो देश से
प्रेम करो अपनी संस्कृति भाषा बोली से
प्रेम करो अपने भगवान से
प्रेम करो अपने माता-पिता से प्रेम करो अपने गुरु जनों से
प्रेम करो बड़ों से
प्रेम करो छोटों से?
और त्याग करो कुर्सी का
त्याग करो अहंकार का
त्याग करो ,मोह माया, लालच का ,
अगर जब आप यह करते हैं तो आप खुद ही महान बन जाएंगे? और कुर्सी की जरूरत नहीं पड़ेगी कुर्सी से 10 गुना ऊपर आपका नाम हमेशा रहेगा कुर्सी रहे न रहे पर आपका नाम हमेशा लोग याद रखेंगे,
ऐसा कार्य करो ताकि आने वाली पीढ़ी भी आपका अनुसरण करें और गर्व से कहें कि मैं आपकी संतान हूं या मैं आपका शिक्षय हूं या मैं उस संस्था से जुड़ा हूं जिसमें आप प्रमुख थे या अपने सेवा दी थी?
क्या ऐसा दिन आएगा क्या अभी भी आंखें खोलोगे यहां जागते हुए भी सोने का नाटक करोगे ?
और यूं ही बड़ों का अपमान होता रहेगा क्या?
फैसला आपके हाथ
हम सदा हैं धर्म के साथ
न्याय के साथ
सच के साथ ओर समाज के साथ
जय हिंगलाज माता जय झूलेलाल
संपादकीय