मदर्स’ डे की शुरुआत कैसे हुई और कहां से हुई यह बात बहुत कम लोगों को ही पता होगी, क्योंकि आजकल देखा देखी में लोग ज्यादा चलते हैं मदर्स डे की शुरुआत , विदेश अमेरिका के एक शहर से हुई थी जैसा कि सुना है इसकी शुरुआत, एना रीव्स जाविऀस
ने की थी इसके पीछे की कहानी ऐसी है कि इस दिन के जरिए है एना अपनी मां और रीवर्स जाविऀस को श्रद्धांजलि देना चाहती थी उनकी मां गृह युद्ध के समय एक एक्टिविस्ट की तरह काम करती थी जब 1904 में उनकी मृत्यु हुई तो उनकी याद में उनकी पहली पुण्यतिथि पर वेस्ट वजिऀनिया में एक आयोजन किया जिसमें उन्होंने अन्य महिलाओं जो मां बन चुकी थी उनको सफेद फूल दिए जो कि उनकी मां 👩को बहुत पसंद था उन्होंने फैसला किया कि हर साल मदर्स डे मनाया जाना चाहिए जिसके लिए उन्होंने कई कैंपेन किया और अंत में अमेरिकी राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन ने 1914 में हर साल मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाने की घोषणा की,
इसमें कोई बुराई नहीं है अच्छी बात है माँ को याद करना चाहिए पर सवाल यह होता है कि क्या हम मां को सिर्फ एक दिन के लिए
याद करें या साल में सिर्फ एक बार याद करें ,
विदेश में रहने वालों की सोच अलग है लेकिन हम भारतीयों की सोच अलग है खासकर मेरी सोच तो बिल्कुल अलग है मां को याद करने का सिर्फ एक दिन नहीं होना चाहिए
(बल्कि उसे तो हर स्वास में याद करना चाहिए हर सेकंड याद करना चाहिए)
क्योंकि यह जीवन ही उसका है अगर वह नहीं होती तो हमारा जन्म कैसे होता
( जिस भगवान को हमने देखा नहीं है उसकी हम सुबह-शाम पूजा आरती प्रार्थना करते हैं भंडारा करते हैं बड़े-बड़े मंदिर गुरुद्वारा बनाते हैं )
पर जिस मां ने हमें जन्म दिया जो हमारे सामने है उसे हम यूं ही भूल जाते हैं और कुछ लोग तो बुढ़ापे में उसे 🏠घर से निकाल देते हैं और कई लोग तो उसे विद्वा आश्रम में छोड़ आते हैं और कुछ लोग नौकरानी की तरह उन्हें घर में एक कोने में रख देते हैं क्या यह उचित है ऐसा करके आप क्या समझते हो कि आपने कोई अच्छा कार्य कर दिया
यहां पर लोगों को दिखाने के लिए मदर्स डे के अवसर पर आप अपनी मां की पूजा कर लिए उसे गिफ्ट दे दिया और दो-चार फोटो सेल्फी लेकर सोशल मीडिया में डाल दिया तो आप अच्छे बेटे बन गए
ऐसी सोच बदलो नियत बदलो तब आपका दिन और आपका समय अच्छा होगा सच में अगर आप अपनी मां से प्रेम करते हो तो ऐसा कार्य न करो जिससे आने वाली पीढ़ी वह आपका यह लोक और परलोक दोनों ही अधर में लटक जाए
( मां, कोई , शब्दों का,खेल नहीं है,व तो जीवन का सार है )
(भगवान बोलोगे उसमें भी पांच अक्षर आते हैं और माँ👩 में दो अक्षर आते हैं और दो अक्षर का यह रिश्ता हमारे जीवन से जुड़ा हुआ है और जीवन के बाद भी जुड़ा रहेगा)
क्योंकि वह सच्चा रिश्ता है हमारे खून का रिश्ता है हमारे दिल का रिश्ता है हमारे आत्मा का रिश्ता है इस रिश्ते को और मजबूत बनाएं अपनी मां को एक दिन नहीं बल्कि हर स्वासं में याद रखें उसकी सेवा करें तन मन से जितना हो सके उसकी पूजा करें प्रतिदिन करें और उसके बताए हुए राह पर चले आपकी जिंदगी संवर जाएगी आपको किसी और की जरूरत नहीं पड़ेगी
( मंदिर गुरुद्वारा चर्च सत्संग कीर्तन में जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी मां के चरणों में ही वेद और पुराण है मां के ही चरणों में गंगासागर है मां के चरणों में चारों धाम है जब इस बात को समझ जाओगे,तो
समझो कि आपने भगवान को पा लिया )
( भगवान का स्वरूप ही 👩 माँ है )
( मां की महिमा अनंत है मुख से कही ना जाए,
तन मन धन, अर पीके चरण रहु समाए )
( सागर जितनी सांही हो आकाश जितना कागज हो फिर भी माँ की महिमा आप लिख नहीं पाओगे कम पड़ जाएगी,)
आज इस पावन अवसर पर गोविंद दुसेजा के द्वारा अपनी परम पूजनीय दादी जी के फोटो पर पुष्प अर्पण कर अगरबत्ती व दिप प्रजवलित करके पूजा अर्चना की केक काटा उनको भोग लगाया वह अपनी दादी से आशीर्वाद, लिया, इस अवसर पर विजय दुसेजा ने भी अपनी की फोटो की पूजा अर्चना की उन्हें याद किया
वैसे तो वह 24 घंटा उसके दिल में रहती है उनका आशीर्वाद सदा उनके साथ है उनके दिखाए हुए मार्ग पर चलते हैं उनकी बातों पर अमल कर वह आज भी सत्य की राह पर चलते हैं अपने कार्य करते हैं, और भगवान से एक ही प्रार्थना करते हैं कि हर जन्म में मुझे यही माँ👩 मिले
भवदीय
विजय दुसेजा
