बुन्देली संस्कृति संगम जबलपुर संस्था की संचालिका श्रीमती प्रभा विश्वकर्मा "शील" ने बताया कि उनके अथक प्रयासों से इस संकलन में 111 साहित्यकारों की रचनाओं को स्थान मिला है और कुछ साहित्यकार जबलपुर के बाहर से भी शामिल हुए है। य़ह आयोजन रानी दुर्गावती संग्रहालय कला वीथिका के सभागार में आयोजित किया गया ।जहाँ बुंदेली संस्कृति और परंपराओं को दर्शाने हेतु बुंदेली चित्रकला और अख्ति के घड़े गुड्डा गुड़िया सजा कर रखे गए और उनका व्याह रचाया गया साथ ही सरस्वती पूजन के साथ ही शिवपुराण बुंदेली भाष्य सुषमा खरे की कृति को ध्यान में रखते हुए भोलेनाथ की झांकी भी सजाई गई । प्रभा जी ने बताया कि आज बुन्देलखण्ड की संस्कृति का विशेष दिन था इसलिए पूरी संस्कृति को उन्होंने एक ही जगह दर्शाया और मनोरमा जी की कृति ' हमारी परम्पराएं हमारी धरोहर ' का विमोचन भी किया गया उसको ध्यान में रखते हुए पुतरा पुतरियों की पूजा के बाद चने दlल और गुड़ का प्रसाद सभी अतिथियों को वितरित किया गया और आयोजन में तीन कृतियों का विमोचन अंतर्राष्ट्रीय ख्याति लब्ध आचार्य दादा भगवत प्रसाद दुबे जी और ग्यानगंगा महाविद्यालय के संस्थापक श्री जैन जी और महापौर श्री जगतबहादुर अन्नू जी की उपस्थिति में किया गया। और संस्कारधlनी के संचालक मंच मणि श्री राजेश पाठक प्रवीण जी ने इस आयोजन को व्यवस्थित ढंग से संवारने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया और कुछ बच्चियों द्वारा बुंदेली लोकगीतों पर नृत्य प्रस्तुतियां भी दी गई जिन्होंने दर्शकों का मन मोह लिया। और इस आयोजन में संतोष नेमा संतोष जी और डॉ मुकुल तिवारी जी तरुणl खरे, कविता राय, और प्रीति नामदेव विनीता पैगवार आदि ने अपना महत्वपूर्ण सहयोग और योगदान प्रदान किय। अतिथियों ने इस आयोजन की भूरिभूरि प्रशंसा की और प्रभा जी के इस बुंदेली धरोहर को संजोने के प्रयास को सराहा। कवि संगम त्रिपाठी ने बताया कि प्रभा विश्वकर्मा 'शील' बुन्देली भाषा व संस्कृति को संजोने का प्रेरणादायक कार्य कर रही है।