विशेष संवाददाता हरिकिशन गंगवानी ,भारत तथा विश्व भर में ओशो के लाखों करोड़ों शिष्य और प्रेमी हैं. वे जुलाई के महीने में, आषाढ़ पूर्णिमा के अवसर पर होने वाली पूर्णिमा को ओशो पूर्णिमा के नाम से मनाते हैं. वर्ष 1990 तक ओशो जब तक देह में थे तो ओशो के शिष्य और प्रेमी–विशेषकर भारत भर से– पुणे में उनके आश्रम में आकर इस उत्सव में सम्मिलित होते थे. यह क्रम वर्ष 2000 तक अनवरत चलता रहा, लेकिन बाद में पुणे में इस उत्सव को मनाना बंद कर दिया गया। तब से भारत के विभिन्न क्षेत्रों में स्थापित ओशो के सैकड़ों ध्यान केंद्र हैं, जहाँ इस उत्सव को मनाया जाता रहा है. शिष्य और प्रेमी फेसबुक तथा सोशल मीडिया के माध्यम से अन्य ओशो प्रेमियों को इस उत्सव में सम्मिलित होने की सूचना प्रकाशित करते हैं, निमंत्रण देते हैं. इस वर्ष आगामी 21 जुलाई को गुरु पूर्णिमा है, लेकिन उसके दो सप्ताह पहले, 7 जुलाई को फेसबुक पर ओशो के नाम से जुड़े 200 पृष्ठों को पुणे स्थित ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन ( जो स्विट्ज़रलैंड की ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन के आधीन कार्य करती है) के प्रबंधक लोगों ने हटवा दिया है, ताकि ऐसे उत्सवों की सूचना ओशो के सभी शिष्यों तक पहले की तरह नहीं पहुंचे. ये स्विट्ज़रलैंड की ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन, जो ओशो नाम पर कॉपीराइट और ट्रेडमार्क के एकाधिकार की समय समय पर घोषणा करती रहती है, की साज़िश है. इस फाउंडेशन ने जूरिख में अपने नाम को पंजीकृत करवाया हुआ है. जूरिख में यह फाउंडेशन विश्व की साठ से अधिक भाषाओं में प्रकशित ओशो की पुस्तकों पर रॉयल्टी बटोरती है. वह धन भारत में नहीं आता है। इसकी osho.com पर ओशो के हिंदी तथा अंग्रेजी प्रवचनों को online download पर ओशो के हिंदी तथा अंग्रेजी प्रवचनों को ऑनलाइन डाउनलोड माध्यम से विश्व के अनेक देशों से धन अर्जित करती है। लेकिन यह साड़ी कमाई भारत के बाहर रह जाती है. इसके अतिरिक्त ओशो के भारतीय शिष्यों को ओशो के नाम से जुड़े ध्यान उत्सवों में रुकावटें डालती है. इसका उद्देश्य ओशो को एक कमोडिटी की भांति बेचना है, इसलिए आये दिन यह ओशो के सन्देश के स्वतंत्र प्रसारण में अनगिनत बाधाएं खड़ी करती है.इसके ऐसे क्रूर व्यवहार से ओशो के भारतीय शिष्य बहुत नाराज़ हैं, उनका आक्रोश बढ़ता जा रहा है। वे जल्दी ही न्यायालय के द्वार पर दस्तक देंगे और ओशो की धरोहर पर अनुचित एकाधिकार को चुनौती देने वाले हैं। स्वामी चैतन्य कीर्ति