जब से सृष्टि की रचना हुई है तब से सनातन धर्म चल रहा है सतयुग हो त्रेता युग हो द्वापर युग हो या कलयुग हो हर युग में पाप को पपियो को सर्वनाश करने के लिए भगवान ने किसी ने किसी रूप में इस पृथ्वी लोक पर अवतरण लिया है इस कलयुग में भी 1075 साल पहले सिंध की भूमि में मुगलों के बादशाह मिरक शाह ने सनातन धर्म के लोगों को अपने धर्म में मिलाने के लिए उन पर अत्याचार करना शुरू कर दिया प्रतिदिन सवा पाव जनेउ लोगों को मार कर उतारता था उसके बाद खाना खाता था दिन-ब-दिन उसका अत्याचार बढ़ता जा रहा था जो लोग उसका कहना मानते थे और धर्म परिवर्तन कर देते थे तो उनको छोड़ देता था और जो लोग नहीं मानते थे उनकी हत्या कर देता था ,उनके पापों से उनके जुल्मों से तंग आकर एक बार उनसे मिलने के लिए हिंदू समाज के बड़ी संख्या में लोग पहुंचते है और कहते कि बादशाह आप तो बड़े हैं और हम छोटे हैं आपकी प्रजा हैं आपको हमारी रक्षा करनी चाहिए उल्टा आप हमें मार रहे हो और आपका धर्म अलग है हमारा धर्म अलग है हमने आपको कभी कुछ नहीं किया तो आप हमें क्यों परेशान कर रहे हो क्यों हमें अपने धर्म से जुदा कर रहे हो, तो मिरक शाह,बादशाह नहीं माना और कहा मैं चाहता हूं कि एक ही धर्म रहे और वह हमारा इस्लाम धर्म रहे बाकी और कोई धर्म मत रहे इसलिए तुम सनातन धर्म के मानने वाले हिंदुओं चाहे मेरे धर्म में शामिल हो जाओ या मरने के लिए तैयार रहो या सिंध छोड कर चले जाओ तब हमारे समाज के लोगों ने कहा कि हमें सोचने के लिए कुछ समय चाहिए तो उसने कहा ठीक है




मैं आपको समय दिया 3 दिन का आप जाकर सौच लो विचार कर लो उसके बाद समाज के लोग सभी बैठक करके सोचने लगे कि इस 3दिनों में अगर हम अयोध्या या काशी जाए भगवान रामचंद्र , भगवान कृष्ण के मंदिर , तो आने जाने में समय लग जाएगा ,इसलिए सभी लोग मिलकर ,सह परिवार सिंधु नदी के किनारे पहुंचे और वरुण देव से प्रार्थना करने लगे भूखे प्यास बैठे रहे एक दिन गुजर गया 2 दिन गुजर गया तीसरे दिन भविष्यवाणी हुई सिंधु नदी के बीच से बड़ी मछली में विराजमान होकर भगवान झूलेलाल हाथ में गीता लिए बाहर निकले और कहां ,मेरे बच्चे चिंता मत करो आपको कुछ नहीं होगा सनातन धर्म की रक्षा के लिए मैं माता देवकी पिता रतन राय के घर में चैत्र माह में जन्म लूंगा और तुम्हें मिरक बादशाह के जुल्मों से आजाद कराऊंगा, उसके बाद यह बात राजा के कानों तक पहुंच गई पर राजा को विश्वास नहीं हो रहा था उसने कहा देखता हूं आने दो और सभी हिंदू धर्म को मानने वाले लोग सिंधी समाज के लोग खुशी के मारे झूम उठे, ठीक 9 महीना बाद चेत्र माह के दिन भगवान झूलेलाल ने सिंध के नछरपुर गांव में माता देवकी पिता रतन राय के घर में जन्म लिया आकाश, वर्षा होने लगी, संख की ध्वनि पूरे सिंध में बजने लगी जिससे मिरक शाह बादशाह भी हैरान हो गया ओर उसका महल भी ढ़ूलने लगा, तब मिरक बादशाह ने वजीर को भेज कर भगवान झूलेलाल को मारने का प्रयास किया पर भगवान झूलेलाल ने अपनी लीला से वजीर को भी सही राह पर ले आए,
और वजीर ने भगवान झूलेलाल से माफी मांगी और कहां जैसी लीला आपने मुझे दिखाइ है वैसी लीला महल में आकर मिरक बादशाह को दिखाएं तब भगवान झूलेलाल, नीले घोड़े पर सवार होकर मिरक बादशाह के महल में पहुंचे और अपनी लीला से पहले महल को जला दिया फिर उस महल में पूरा पानी भर दिया यह देखकर मिरक शाह दंग रह गया और समझ गया यह सब भगवान झूलेलाल की लीला है तो उसने भगवान झूलेलाल से माफी मांगी और कहा मैं समझ गया मुझे माफ कर दीजिए मैं अब किसी की भी हत्या नहीं करूंगा और सभी धर्म का मान सम्मान करुंगा
और सिंध में आज भी भगवान झूलेलाल की पूजा अर्चना की जाती है
भगवान झूलेलाल ने इस मृत्यु लोक पर मात्र 13 साल 5 महीने 12 दिन रहे और अपनी लीला दिखाने के बाद मिरक बादशाह को, मार कर नहीं बल्कि सुधार कर उसे सही राह पर लाकर इस पृथ्वी लोक से अंतर ध्यान हुए जब वह अंतर ध्यान हो रहे थे तब सब सनातन धर्म के लोग रो रहे थे और कह रहे थे आप ना जाए तब, भगवान झूलेलाल ने कहा कि आप चिंता ना करें ,
मैं हमेशा आप लोगों के साथ रहूंगा जल और ज्योत के रूप में जब भी आपको तकलीफ परेशानी होगी जल और ज्योति कि आराधना करना पूजा करना मैं आपके दुख दर्द दूर करने के लिए आ जाऊंगा इसीलिए आज भी सिंधी समाज जल और ज्योत की पूजा करता है पूज्य बहरणा साहब को जब निकाला जाता है तो अखंड ज्योत जलाई जाती है और उसे
तालाब में प्रवावित किया जाता है और चैटीचंद्र के दिन ही भगवान झूलेलाल का जन्म हुआ था और वह शुक्रवार का दिन था जिसे सिंधी में थारू कहते हैं उस दिन पूरे विश्व भर में सिंधी समाज के लोग भव्य भगवान झूलेलाल की शोभायात्रा निकालते हैं और सबसे आगे पूज्य बहरणा साहब निकाला जाता है और समाज के लोग , आकर मत्था टेकते हैं घर से चावल ले आते हैं मीठी ताहयरी ले आते हैं जो उसमें डालते हैं और समाज की महिलाएं घरों के बाहर दीपक जलाती हैं मिठाइयां बांटती हैं मीठी ताहयरी सैसा, बनाकर नदी तालाब में डालती हैं दिपक को जलाकर प्रवावित करती हैं और अखों डालती हैं और पल्लव पाकर विश्व शांति के लिए प्रार्थना की जाती है, भगवान झूलेलाल सिर्फ सिंधी समाज के ही भगवान नहीं है,बल्कि पूरे सनातन धर्म के भगवान है और अलग-अलग प्रदेशों में भगवान झूलेलाल को अलग-अलग नाम से जाना जाता है वह पूजा जाता है क्योंकि वह जल के अवतार है और जल पूरे सृष्टि में सभी धर्म के लोगों को एक सामान मिलता है भेदभाव नहीं होता है इस तरह सिंधी समाज भी आज तक किसी भी समाज के साथ भेदभाव नहीं किया है हमेशा सबके साथ मिलजुल कर रहता है जैसे पानी दूध में मिल जाता है इस तरह सिंधी समाज भी हर वर्ग के साथ मिलकर देश की खुशी के लिए अपने धर्म को आगे बढ़ाने के लिए कार्य करता है और चेटी चंद्र के ही दिन हिंदू नव वर्ष भी आरंभ होता है और हमारा नया वर्ष भी उसी दिन शुरू होता है जैसे अंग्रेजी नए वर्ष 1 दिसंबर को शुरू होता है लेकिन हम सिंधी समाज का वह समस्त सनातन धर्म को मानने वालों का नया वर्ष चेटीचंड के दिन आरंभ होता है , उस दिन भव्य शोभायात्रा
निकलती है समाज के लोग जगह-जगह उसका आतिशबाजी के साथ फूलों की वर्षा के साथ स्वागत करते हैं वह मीठी ताहयरी,व शरबत बाटते है गर्मी का समय रहता है शीतल जल पीकर और मीठी ताहयरी ग्रहण करके शरीर के साथ-साथ मन को भी तृप्त करते है, सिंधी समाज के कई लोग उस दिन अपने-अपने घरों के बाहर व चौक में प्याऊ घर भी खोलते हैं ताकि गर्मी में लोगों को शीतल जल पिला सके जब घर में शादी होती है तो नई दुल्हन को भी चेटी चंद्र के दिन ही बाहर निकालते हैं झूलेलाल मंदिर ले जाते हैं उसके बाद ही वह अन्य घरों में और दूसरे जगह जा सकती है चेटीचंद्र का बहुत बड़ा महत्व है समस्त सिंधी समाज एक होकर इस महापर्व को हर्षो उल्लास के साथ मनाता है, यह जानकारी संतलाल दास सांई जी के द्वारा हमर संगवारी को दी गई