ए माँ👩 तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी, जिसको नहीं देखा हमने कभी,
मां के आंचल में खुशी, नैनों में ममता, इसी दुनिया में उसके कदमों तले स्वर्ग है – समृद्ध जीवन के लिए इसे रेखांकित करना ज़रूरी – एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र
गोंदिया महाराष्ट्र –वैश्विक स्तरपर वैसे तो हर दिन मां का होता है, लेकिन मातृत्व की महानता को सार्वजनिक रूप से सम्मान देने के लिए प्रत्येक वर्ष मई माह के दूसरे रविवार को माँ दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष यह विशेष दिन 11 मई 2025 को पड़ रहा है। यह अवसर हमें माँ की महिमा, त्याग और ममता को गहराई से समझने और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है।
माँ: सजीव ईश्वर का रूप
“ऐ माँ, तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी, जिसको नहीं देखा हमने…”
1966 में प्रदर्शित हिन्दी फीचर फिल्म ‘दादी माँ’ का यह गीत माँ की उपमा को दिव्यता के उच्चतम शिखर पर स्थापित करता है। सच भी यही है—माँ केवल एक शब्द नहीं, बल्कि एक संपूर्ण भाव है, जो हमारे अस्तित्व की नींव है।

भारतीय संस्कृति में माता-पिता को देवतुल्य माना गया है। भगवान श्रीराम, श्रवण कुमार जैसे ऐतिहासिक उदाहरण हमारे लिए आदर्श हैं, जिन्होंने मातापिता की सेवा को सर्वोपरि माना। मां की गोद को स्वर्ग कहा गया है और उनके चरणों को ईश्वर का निवास।
माँ—त्याग, ममता और समर्पण की प्रतिमूर्ति
माँ अपने बच्चे को नौ महीने गर्भ में रखने से लेकर जीवनभर निस्वार्थ प्रेम और देखभाल करती है। माँ अपने जीवन की हर प्राथमिकता को बच्चे के हित में बदल देती है। बच्चों की खुशी के लिए वह समूचे संसार से संघर्ष करने को भी तत्पर रहती है।
आज जब युवा पीढ़ी पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित होकर माँ दिवस को केवल गिफ्ट देने तक सीमित कर देती है, तब यह आवश्यक हो जाता है कि हम इस दिन को केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक आत्मिक अनुभूति बनाएं। यह दिन माँ के चरणों में बैठकर, उनके द्वारा किए गए छोटे-बड़े कार्यों में सहयोग कर, उनके प्रेम और वात्सल्य का वास्तविक अनुभव लेने का दिन होना चाहिए।
हर दिन बने माँ दिवस

एक माँ के योगदान को केवल एक दिन में समेटना असंभव है। माँ के प्रति आदर और प्रेम केवल 11 मई तक सीमित न हो, बल्कि हर दिन माँ के नाम हो। अगर हम वास्तव में माँ के त्याग और समर्पण को समझ लें, तो यह हमारा नैतिक कर्तव्य बनता है कि हम उन्हें प्रतिदिन वही सम्मान दें जिसकी वे हकदार हैं।
माँ: हर घर की बुनियाद
माँ के अनेक नाम हैं—मम्मी, मम्मा, मॉम, माता—पर उसकी भूमिका एक ही रहती है: वह संपूर्ण परिवार की आधारशिला होती है। माँ ही घर को घर बनाती है। वह मित्र भी है, मार्गदर्शक भी, रसोइया भी और संरक्षक भी।
मातृत्व का उत्सव

मातृत्व का उत्सव केवल ग्रीटिंग कार्ड और फूलों तक सीमित नहीं होना चाहिए। यह दिन उस माँ को सम्मानित करने का दिन है, जो न केवल एक संतान को जन्म देती है, बल्कि उसे इस संसार में जीने लायक भी बनाती है। माँ के प्यार की कोई कीमत नहीं होती, और उनकी सेवा ही सच्चा स्वर्ग है।
निष्कर्ष
अगर हम उपरोक्त भावों और विचारों का सार निकालें, तो स्पष्ट होता है कि माँ दिवस केवल एक तारीख नहीं, बल्कि एक संकल्प है—माँ के त्याग, ममता और दिव्यता को प्रतिदिन सम्मान देने का।
मातृत्व से बड़ी इस संसार में कोई दौलत नहीं।
माँ के आंचल में ही सच्चा सुख, सच्चा स्वर्ग और सच्ची दिव्यता छिपी है।
“ऐ माँ, तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी…”