लोकप्रिय हिन्दी कहानियाँ – संवेदना, यथार्थ और साहित्यिक आत्मा का संकलन

पुस्तक – लोकप्रिय हिन्दी कहानियाँ (कहानी संग्रह)
संपादक – सागर यादव ‘जख्मी’
प्रकाशक – इंकलाब पब्लिकेशन
प्रथम संस्करण – जुलाई 2025

संपादक सागर यादव ‘जख्मी’ द्वारा प्रस्तुत कहानी संग्रह “लोकप्रिय हिन्दी कहानियाँ” हिंदी साहित्य को एक समकालीन, प्रामाणिक और विविधतापूर्ण स्वर देने वाला रचना-संकलन है, जो न केवल भावनात्मक धरातल पर पाठकों को झकझोरता है, बल्कि उन्हें सोचने को भी मजबूर करता है। यह पुस्तक एक साथ कई स्तरों पर पाठकों को प्रभावित करती है – विषय की विविधता, कथ्य की ईमानदारी, भाषा की प्रवाहमयता और चरित्रों की आत्मीयता इसे एक उल्लेखनीय कृति बनाती है।
इस संग्रह की सबसे बड़ी विशेषता है इसकी कथाओं की बहुरंगीता। यहां प्रेम है, पीड़ा है, संघर्ष है, मातृत्व है,

सामाजिक विद्रूपताएं हैं, युद्ध है, बुढ़ापा है, आशा है और जीवन का वह समूचा राग है जिसे हम अक्सर उपेक्षित कर जाते हैं। “मैं मर नहीं सकती”, “मौत के अनेक बहाने”, “सबसे प्यारा दोस्त”, “दूसरी संतान”, “धुआं और परछाइयाँ” विशेषकर रायपुर छत्तीसगढ़ के कवि डॉ. सूर्य प्रताप राव रेपल्ली की कहानी “सिंदूर उधार का-अपने प्यार का” सहित इस संग्रह में सम्मिलित सभी कहानियाँ आज के दौर में मानवीय अस्तित्व की गहरी पड़ताल करती हैं। ये कहानियाँ केवल वर्णन नहीं करतीं, पाठकों को भीतर तक महसूस कराती हैं — जैसे हम किसी अन्य का नहीं, अपना ही जीवन पढ़ रहे हों।
इस पुस्तक की कहानियाँ हिंदी के विविध कोनों से चुने गए रचनाकारों की हैं — नवोदित भी हैं, अनुभवी भी। यह मिश्रण संग्रह को एक संतुलित स्वरूप प्रदान करता है, जहां अनुभव की गहराई और नई दृष्टियों की ताजगी एक साथ पाठकों को मिलती है। हर लेखक अपनी भाषा, अपने परिवेश और अपनी संवेदना से एक भिन्न दृष्टिकोण लेकर आता है, जो पुस्तक की विविधता को और समृद्ध करता है।
भाषा इस संग्रह की दूसरी मजबूत कड़ी है। कहानियाँ न तो कृत्रिम शैली में हैं, न ही जटिल शब्दजाल में उलझी हैं। भाषा सहज, संवादप्रधान और भावों से परिपूर्ण है — जिसमें आम पाठक तुरंत जुड़ जाता है। लेखकों की भाषिक पकड़ और शैलीगत भिन्नता इस संग्रह को एकरस होने से बचाती है।
संपादक सागर यादव ‘जख्मी’ की दृष्टि और परिश्रम स्पष्टतः परिलक्षित होता है। उन्होंने सिर्फ कहानियों का संकलन नहीं किया है, बल्कि एक ऐसा मंच दिया है, जहां विविध संवेदनाएं, सामाजिक यथार्थ और साहित्यिक सरोकार एकसाथ सांस लेते हैं। संपादकीय दृष्टि यह महसूस कराती है कि यह संग्रह केवल मनोरंजन हेतु नहीं, बल्कि समाज और साहित्य के मध्य एक गम्भीर संवाद की शुरुआत है।
“लोकप्रिय हिन्दी कहानियाँ” समकालीन हिंदी कहानी की बहुआयामी संभावनाओं का प्रमाण है। यह संग्रह न तो केवल साहित्यिक अभिजनों के लिए है और न ही केवल सामान्य पाठकों के लिए — यह दोनों के मध्य एक ऐसी सेतु की तरह है, जहां साहित्य जीवन को छूता है और जीवन साहित्य में उतर आता है। यह संकलन उन लोगों के लिए भी विशेष है जो साहित्य को केवल पढ़ना नहीं, उसमें अपना अनुभव भी पाना चाहते हैं।
इस पुस्तक की सबसे बड़ी ताक़त इसकी सच्चाई है — इसमें कोई बनावट नहीं, कोई आडंबर नहीं। केवल मनुष्य है, उसकी कहानियाँ हैं, और वे सारे रंग हैं जिनसे ज़िंदगी बनती है — धूप-छांव, आँसू-हँसी, सपने और हकीकत।
इस संग्रह को पढ़ते समय बार-बार महसूस होता है कि आज भी हिंदी कहानी जीवित है, प्रासंगिक है और पूरी गरिमा के साथ हमारे समाज को, हमारे समय को रच रही है। यह पुस्तक निश्चय ही साहित्य प्रेमियों, पुस्तकालयों, शिक्षण संस्थानों और युवा पाठकों के लिए एक संग्रहणीय कृति है।
“लोकप्रिय हिन्दी कहानियाँ” हिंदी कहानी की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए एक सशक्त हस्ताक्षर की तरह सामने आती है — जिसमें प्रेमचंद की संवेदना भी है, और समकालीनता की तेज रोशनी भी। यह केवल कहानियों का संग्रह नहीं, बल्कि वर्तमान समय का दस्तावेज़ है — जिसमें समाज की धड़कनें स्पष्ट सुनी जा सकती हैं।