- सिंधी समाज के सदस्यों ने की ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी से मुलाकात
- आत्मा की यात्रा, कार्मिक हिसाब और जीवन में सुख की प्राप्ति पर गहन आध्यात्मिक चिंतन
- दीदी ने व्यावसायिक जीवन में आध्यात्मिकता का व्यावहारिक दृष्टिकोण समझाया…
टिकरापारा, बिलासपुर 06/10/2025:- सिंधी कॉलोनी, जरहाभाटा निवासी सिंधी समाज के सदस्यों ने ब्रह्मा कुमारीज़ टिकरापारा सेवाकेंद्र पहुंच कर ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी से मुलाक़ात की। आध्यात्मिक चर्चा सत्र में जीवन, आत्मा और कर्म के रहस्यों पर सार्थक संवाद हुआ। आत्मिक जागरूकता के माध्यम से श्रेष्ठ कर्म करने की प्रेरणा देना तथा जीवन में सच्चे सुख की प्राप्ति का मार्ग बताना इस संवाद का सार रहा।
मंजू दीदी ने सकारात्मक व्यक्तियों का महत्व बताते हुए उनकी तुलना पांच पांडवों से की जो संख्या में कम होते हुए भी भगवान से प्रीतबुद्धि होने की वजह से विजय को प्राप्त हुए। इसी प्रकार से आज भी आध्यात्म से जुड़े थोड़े से मुट्ठी भर लोग ही संसार को कलियुग से सतयुग की ओर ले जायेंगे।

सुख की चार आवश्यकताएँ :
दीदी ने बताया कि मनुष्य का स्वभाव आनंद और प्रेम से जुड़ा है। हर व्यक्ति चार प्रकार का सुख चाहता है — तन का, मन का, धन का और संबंधों का। यदि पारिवारिक संबंधों में प्रेम न हो, तो व्यक्ति को संपूर्ण सुख की अनुभूति नहीं होती।
कार्मिक हिसाब-किताब:
आत्मा जब शरीर धारण करती है, तभी सुख-दुःख का अनुभव करती है। हमारे कर्म ही हमारे कार्मिक अकाउंट बनाते हैं। अच्छे या बुरे कर्मों का फल व्यक्ति को अवश्य भोगना पड़ता है। दीदी ने बताया कि यदि किसी ने किसी को कष्ट पहुँचाया है, तो उसे उसका हिसाब किसी न किसी रूप में चुकाना ही पड़ता है।
ज्ञान और भगवद गीता का सार:
चर्चा में दीदी ने यह भी कहा कि श्रीमद्भगवद गीता में निहित ज्ञान को सही रूप में समझना अत्यंत आवश्यक है। परमात्मा बच्चों को विवेक और ज्ञान देते हैं ताकि वे प्रकृति के अनुरूप श्रेष्ठ कर्म कर सकें।
विकार और रावण का प्रभाव:
पूर्व जन्मों के संस्कार व्यक्ति के कर्मों को प्रभावित करते हैं। जब आत्मा इस रंगमंच पर उतरती है, तो धीरे-धीरे रावण (विकारों) के प्रभाव में आकर गलतियाँ करने लगती है।
हिसाब-किताब समाप्त करने का संदेश :
दीदी ने सभी को प्रेरित किया कि वे अपने पुराने कार्मिक अकाउंट समाप्त करें और नए बंधन बनाना बंद करें। आत्मिक ज्ञान से ही व्यक्ति अपने जीवन को मुक्त और शांत बना सकता है।
शरीर और आत्मा का महत्व:
दीदी ने बताया कि आत्मा बिना शरीर के कुछ नहीं कर सकती। इसलिए शरीर भी अत्यंत मूल्यवान है। परमधाम से निरंतर आत्माएँ इस सृष्टि पर अवतरित हो रही हैं, जिससे जन्म संख्या में वृद्धि होती रहती है — यही कारण है कि जनसंख्या कभी घटती नहीं।
इस संवाद का समापन इस संदेश के साथ हुआ कि मनुष्य को भावना और विवेकपूर्वक यह तय चाहिए कि क्या करना है और क्या नहीं, ताकि जीवन में शांति, प्रेम और सच्चे सुख की प्राप्ति हो सके।