दिल्ली-एनसीआर में वायु संकट- जब हवा बनी जहर ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान चरण-3 की सख़्ती और राष्ट्रीय चेतावनी का संदेश
धरती बची तो सब बचा,प्रदूषण केवल हवा में धूल या धुआं नहीं है, यह उस असंतुलित विकास की चेतावनी है जो पूरी मानवता को खतरे में डाल रहा है- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र
गोंदिया – वैश्विक स्तरपर भारत की राजधानी दिल्ली, जो कभी सभ्यता, संस्कृति और शक्ति का प्रतीक मानी जाती थी,आज “सांस लेने के अधिकार” के संकट से जूझ रही है। नवंबर 2025 के दूसरे सप्ताह में जब पूरा उत्तर भारत दीपावली के बाद की धुंध में लिपटा हुआ था, तब दिल्ली- एनसीआर की हवा एक बार फिर जहरीली हो गई। मंगलवार दिनांक 11 नवंबर 2025 को सुबह 9 वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 425 तक पहुंच गया,यानी ‘गंभीर’ श्रेणी, जो न केवल मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है बल्कि प्रकृति और शहरी जीवन की स्थिरता के लिए भी एक भयावह संकेत है।10 नवंबर 2025 को जहां एक्यूआई 362 दर्ज किया गया था, वहीं 11 नवंबर 2025 को यह आंकड़ा 425 पर पहुंच गया। इस खतरनाक स्थिति को देखते हुए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने तुरंत ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरएपी) के तीसरे चरण को लागू करने का निर्णय लिया।भारत की राजधानी दिल्ली और उसके आसपास का एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) आज विश्व के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में शुमार हो चुका है। हवा में घुला जहर अब केवल एक शहर या प्रदेश की समस्या नहीं रहा, बल्कि यह एक अंतरराष्ट्रीय चेतावनी बन चुका है कि यदि दुनिया ने अब भी पर्यावरण सुरक्षा के नियमों का पालन नहीं किया, तो सांस लेने के लिए स्वच्छ हवा भी विलासिता बन जाएगी। दिल्ली की वायु गुणवत्ता जब गंभीर स्तर से ऊपर जाती है, तो वह मानव अस्तित्व के लिए एक खतरे की घंटी बजाती है। यही वजह है कि पर्यावरण सुरक्षा अब केवल स्थानीय प्रशासन की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की साझा जिम्मेदारी बन गई है। मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र यह मानता हूँ कि दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में प्रदूषण का स्तर हर साल सर्दियों में भयावह रूप लेता है। खेतों में पराली जलाना, वाहनों से निकलता धुआं, उद्योगों का उत्सर्जन, निर्माण स्थलों की धूल और पटाखों का धुआं,ये सभी मिलकर हवा को जहरीला बना देते हैं। इस वर्ष भी नवंबर की शुरुआत में वायु गुणवत्ता सूचकांक 425 के पार पहुंच गया, जो “गंभीर” श्रेणी से भी ऊपर है। ऐसे में अस्पतालों में सांस, आंख और त्वचा की बीमारियों के मामले बढ़ने लगे हैं। यही वह स्थिति है जिसमें सरकार को “ग्रेप-3” लागू करना पड़ा, जिसके तहत निर्माण गतिविधियों डीजल जनरेटर और भारी वाहनों के संचालन पर रोक लगाई गई। लेकिन सवाल यह है कि क्या केवल आपात कदमों से समाधान संभव है?चूँकि दिल्ली- एनसीआर में वायु संकट-जब हवा बनी जहर- ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान चरण-3 की सख्ती और राष्ट्रीय चेतावनी का संदेश जारी कर दिया गया है इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे पर्यावरण सुरक्षा अब विकल्प नहीं,अनिवार्यता है- दिल्ली।
साथियों बात अगर हम एनसीआर के प्रदूषण संकट से पूरी दुनियाँ को सीखने की जरूरत को समझने की करें तो प्रदूषण केवल स्थानीय नहीं, वैश्विक चुनौती हैआज का पर्यावरण संकट सीमाओं से परे जा चुका है। जब दिल्ली में हवा जहरीली होती है, तो उसका असर हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब तक पहुंचता है। इसी तरह, जब चीन में स्मॉग बढ़ता है या यूरोप में औद्योगिक गैसें फैलती हैं, तो उनका प्रभाव वैश्विक तापमान पर पड़ता है। प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और ओज़ोन परत की क्षति ऐसी समस्याएँ हैं जो देशों की सीमाओं को नहीं मानतीं। यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र ने “पेरिस जलवायु समझौते” और “सतत विकास लक्ष्य” के माध्यम से विश्व समुदाय को एक साझा मिशन पर जोड़ा है,जिसका उद्देश्य है 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करना हैँ,भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक देश है, फ़िर भी दिल्ली-एनसीआर की हवा एक बार फिर जहरीली हो गई। मंगलवार दिनांक 11 नवंबर 2025 को सुबह 9 वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 425 तक पहुंच गया,यानी ‘गंभीर’ श्रेणी, जो न केवल मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है बल्कि प्रकृति और शहरी जीवन की स्थिरता के लिए भी एक भयावह संकेत है,परंतु यह भी सच है कि भारत ने विकासशील देशों में सबसे तेजी से हरित ऊर्जा की दिशा में कदम बढ़ाए हैं।भारतीय पीएम द्वारा आरंभ किया गया“राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा मिशन”, “राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन”,“स्वच्छ भारत अभियान” और “राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम” ऐसे प्रयास हैं जो भारत को पर्यावरण- अनुकूल विकास की दिशा में आगे बढ़ा रहे हैं। 2070 तक भारत के “नेट ज़ीरो” लक्ष्य की घोषणा इस दिशा में ऐतिहासिक है। परंतु दिल्ली- एनसीआर जैसे उदाहरण यह दिखाते हैं कि नीतियां तभी सफल होंगी जब स्थानीय प्रशासन,उद्योग और नागरिक, तीनों मिलकर अपनी जिम्मेदारी निभाएं।समाधान और आगे का रास्ता-जब नीति को नागरिक की जिम्मेदारी बनना होगा,वायु प्रदूषण केवल प्रशासनिक चुनौती नहीं, बल्कि सामाजिक उत्तरदायित्व का प्रश्न है।ग्राप जैसे आपातकालीन उपाय अस्थायी राहत दे सकते हैं, पर स्थायी समाधान तभी संभव है जब:(1) स्वच्छ ऊर्जा का विस्तार हो। (2)पराली प्रबंधन के लिए किसानों को व्यवहारिक विकल्प मिलें (3) सार्वजनिक परिवहन सशक्त और सस्ता बने।(4) इलेक्ट्रिक वाहनों को तेज़ी से अपनाया जाए।(5) शहरी हरियाली और वृक्षारोपण को मिशन मोड में बढ़ाया जाए।(6) नागरिक स्वयं अपने स्तर पर प्रदूषण घटाने की पहलज़रूर करें।
साथियों बात अगर हम प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और असंतुलन का खतरा को समझने की करें तो धरती का संतुलन तभी संभव है जब जल, वायु, भूमि और वन एक-दूसरे के साथ सामंजस्य में रहें। लेकिन बढ़ती आबादी,अनियंत्रितऔद्योगिकीकरण और शहरीकरण ने इस संतुलन को गंभीर रूप से बिगाड़ दिया है। जंगलों की कटाई ने प्राकृतिक वायु-शोधन प्रणाली को कमजोर कर दिया है, जबकि सीमेंट और डामर के जंगलों ने हरियाली को निगल लिया है। भूजल का अत्यधिक दोहन, नदियों में प्रदूषण और प्लास्टिक कचरे का ढेर आज उस बिंदु पर पहुंच चुका है जहां प्रकृति प्रतिशोध लेने लगी है,कहीं बाढ़, कहीं सूखा, कहीं जहरीली हवा और कहीं घटते पेयजल स्तर के रूप में।विश्व समुदाय को साझा जवाबदेही निभानी होगीप्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अब केवल नीतियों की घोषणा पर्याप्त नहीं है, बल्कि उनके क्रियान्वयन में सख्ती जरूरी है। विकसित देशों को अपने ऐतिहासिक उत्सर्जन की जिम्मेदारी लेनी होगी और विकासशील देशों कोतकनीकी सहायता व वित्तीय सहयोग देना होगा। ग्रीन क्लाइमेट फंड को और प्रभावी बनाना होगा ताकि भारत जैसे देशों को स्वच्छ ऊर्जा अपनाने में मदद मिल सके। वहीं, विकासशील देशों को भी “कार्बन-न्यूट्रल” नीतियों को अपने विकास मॉडल में शामिल करना चाहिए।

साथियों बात अगर हम जन सहभागिता ही असली पर्यावरण रक्षा है इसको समझने की करें तो सरकारें नीतियां बना सकती हैं, कानून लागू कर सकती हैं, परंतु पर्यावरण संरक्षण तब तक संभव नहीं जब तक नागरिक स्वयं अपनी जीवनशैली में बदलाव न लाएँ। निजी वाहनों की जगह सार्वजनिक परिवहन का उपयोग,पेड़ लगाना प्लास्टिक से परहेज, बिजली की बचत, और अपशिष्ट का उचित निपटान,ये छोटे कदम मिलकर बड़े परिवर्तन ला सकते हैं। आज के दौर में हर व्यक्ति “ग्रीन सिटिजन” बन सकता है। स्कूलों और कॉलेजों में पर्यावरण शिक्षा को केवल एक विषय नहीं बल्कि जीवनशैली का हिस्सा बनाया जाना चाहिए।तकनीक और नवाचार से मिल सकता है समाधान आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सैटेलाइट मॉनिटरिंग, स्मार्ट सिटी मॉडल और हरित प्रौद्योगिकी प्रदूषण नियंत्रण में नई दिशा दे सकते हैं। उदाहरण के लिए, स्मार्ट ट्रैफिक सिस्टम वाहनों की भीड़ कम कर सकता है, जबकि ड्रोन्स से प्रदूषण उत्सर्जन की निगरानी संभव है। दिल्ली जैसे शहरों में “स्मॉग टावर” और “ग्रीन वॉल” प्रयोग के तौर पर लगाए गए हैं, पर इन्हें केवल प्रतीक नहीं, बल्कि नीति का अंग बनाना होगा।
साथियों बात अगर हम भारत में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान क़ो चार चरणों में विभाजित किया गया है व अभी 11 नवंबर से चरण-3 लागू किया गया है इसको समझने की करें, चरण- (1)मॉडरेट टू पुअर एक्यूआई 201- 300)(2)चरण-2 (वेरी पुअर, एक्यूआई 301-400)(3) चरण- 3 (सीवियर, एक्यूआई 401-450)(4)चरण-4 (सीवियर प्लस, एक्यूआई >450) 11 नवंबर 2025 को सुबह 9 के बाद 2025 में एक्यूआई 425 तक पहुंचने के बाद, दिल्ली-एनसीआर में तीसरे चरण की कार्रवाई शुरू कर दी गई,यानी ग्रेप-III लागू हो गया।ग्राप lllका तीसरा चरण तब लागू होता है जब वायु गुणवत्ता गंभीर स्तर तक पहुंच जाए,अर्थात एक्यूआई 401 से ऊपर। इस स्थिति में प्रशासन को ऐसे आपातकालीन कदम उठाने होते हैं जो वायु प्रदूषण के सभी प्रमुख स्रोतों को अस्थायी रूप से रोक दें या सीमित कर दें।चरण-3 में प्रमुख प्रतिबंध और उपाय इस प्रकार हैं-(1)निर्माण गतिविधियों पर पूर्ण या आंशिक प्रतिबंध: दिल्ली,नोएडा,गुरुग्राम,गाज़ियाबाद और फरीदाबाद में सभी बड़े निर्माण कार्य,जैसे सड़क, पुल, मेट्रो, वाणिज्यिक कॉम्प्लेक्स आदि,पर रोक लगा दी जाती है।केवल आवश्यक सार्वजनिक परियोजनाएं (जैसे अस्पताल, रेलवे,मेट्रो सुरक्षा परियोजनाएं) को ही अनुमति होती है।रियल एस्टेट और निजी बिल्डिंग निर्माण गतिविधियां बंद रहती हैं।(2)ईंट भट्ठों, हॉट मिक्स प्लांट और स्टोन क्रशर यूनिट्स का संचालन बंद-सभी स्टोन क्रशर यूनिट्स और हॉट मिक्स प्लांट बंद कर दिए जाते हैं ताकि धूल और सूक्ष्म कणों का उत्सर्जन रोका जा सके।(3)वाहनों की निगरानी और प्रतिबंध:पुराने डीज़ल वाहनों (10 वर्ष से पुराने) और पेट्रोल वाहनों (15 वर्ष से पुराने) का संचालन प्रतिबंधित हो जाता है।दिल्ली में बीएस-III पेट्रोल और बीएस -IV डीज़ल वाहनों की एंट्री बंद हो जाती है सार्वजनिक परिवहन को प्रोत्साहन देने और कारपूलिंग को बढ़ावा देने के निर्देश दिए जाते हैं।(4) औद्योगिक इकाइयों पर नियंत्रण:केवल स्वीकृत ईंधन से चलने वाली औद्योगिक इकाइयों को संचालन की अनुमति रहती है।अन्य सभी इकाइयां, जो कोयला, डीज़ल, या गैर-मानक ईंधन का प्रयोग करती हैं, उन्हें तत्काल बंद करने के आदेश जारी होते हैं।(5)सड़क सफाई और जल छिड़काव: स्थानीय निकायों को सड़कों की यांत्रिक सफाई और धूल जमाव कम करने के लिए नियमित वाटर स्प्रिंकलिंग करने के आदेश दिए जाते हैं। नगर निगम और पीडब्लूडी टीमें 24 घंटे सक्रिय रखी जाती हैं ताकि धूल जमा न हो।(6) खुली जलाने की गतिविधियों पर प्रतिबंध- कूड़ा, पत्ते, प्लास्टिक या किसी भी प्रकार के ठोस अपशिष्ट के खुले में जलाने पर पूर्ण रोक लगाई जाती है।उल्लंघन करने वालों पर भारी जुर्माने का प्रावधान होता है। (7) स्कूलों और कार्यालयों के लिए दिशा-निर्देश:बच्चों और बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए स्कूलों में खेलकूद गतिविधियां निलंबित की जाती हैं।कुछ मामलों में स्कूलों को ऑनलाइन मोड में पढ़ाई की सलाह दी जाती है।सरकारी कार्यालयों और निजी संस्थानों को वर्क फ्रॉम होम अपनाने की सलाह दी जाती है (8) जागरूकता और स्वास्थ्य परामर्श:स्वास्थ्य विभागनागरिकों को मास्क पहनने, बाहरी गतिविधियों से बचने और चिकित्सकीय परामर्श लेने की सलाह जारी करता है।अस्पतालों में श्वसन काउंटर और आपातकालीन श्वसन सेवाएं सक्रिय की जाती हैं।ग्राप के अंतिम चरण।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि धरती बची तो सब बचा, दिल्ली- एनसीआर का प्रदूषण केवल हवा में धूल या धुआं नहीं है, यह उस असंतुलित विकास की चेतावनी है जो पूरी मानवता को खतरे में डाल रहा है। यदि हम आज भी नहीं चेते, तो कल सांस लेने की कीमत ऑक्सीजन सिलिंडर से चुकानी होगीइसलिए यह समय है जब भारत सहित पूरी दुनिया को पर्यावरण सुरक्षा के नियमों का कठोर पालन करना चाहिए। स्वच्छ हवा, स्वच्छ जल और हरित पर्यावरण, ये किसी एक देश की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि समूची मानव सभ्यता की साझा विरासत हैं। यदि धरती बचेगी, तो ही मानवता बचेगी; और यदि प्रकृति स्वस्थ होगी, तभी विकास सार्थक होगा।

-संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र 9226229318