23 वाँ भारत-रूस शिखर सम्मेलन 4-5 दिसंबर 2025 – एक निर्णायक समय में ऐतिहासिक मुलाकात- संभावित परिणामों का विस्तृत विश्लेषण

पुतिन की भारत यात्रा 2025- वैश्विक शक्ति- समीकरण के केंद्र में भारत-रूस की नई साझेदारी

23 वें भारत-रूस शिखर सम्मेलन के संभावित परिणामों क़ा,असर अंतरराष्ट्रीय शक्ति- संतुलन ऊर्जा सुरक्षा, रक्षा तकनीकों और वैश्विक वित्तीय संरचनाओं पर भी देखने को मिल सकता है- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

गोंदिया – वैश्विक स्तरपर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की 23 वें भारत–रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन है, 4-5 दिसंबर 2025 क़ी भारत यात्रा न केवल दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि बदलते वैश्विक शक्ति-संतुलन के संदर्भ में भी अत्यंत निर्णायक मानी जा रही है। वर्ष 2022 में यूक्रेन संघर्ष आरंभ होने के बाद यह पुतिन की पहली भारत यात्रा है, इसलिए पूरी दुनियाँ की निगाहें इस मुलाकात पर टिकी हैं। भारत और रूस के ऐतिहासिक, रणनीतिक और सांस्कृतिक संबंध दशकों से अटूट रहे हैं, किंतु इस बार की यात्रा कई नए आयाम खोलने वाली मानी जा रही है जो 21वीं सदी के भू- राजनीतिक ढांचे को गहराई से प्रभावित कर सकते हैं।मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र यह मानता हूं क़ि भारत और रूस के संबंध सदैव समानता,सम्मान और पारस्परिक विश्वास पर आधारित रहे हैं। सामरिक हथियारों,ऊर्जा आपूर्ति,अंतरिक्ष तकनीक नागरिक परमाणु सहयोग तथा रक्षा उत्पादन में दोनों देशों की साझेदारी दुनिया के बड़े रणनीतिक गठबंधनों की तुलना में कहीं अधिक स्थिर और दीर्घकालिक साबित हुई है।पुतिन की इस यात्रा का एक प्रमुख उद्देश्य इन साझेदारियों को आधुनिक वैश्विक परिस्थितियों के अनुरूप पुनर्गठित करना तथा आने वाले दशकों के लिएव्यापक सहयोग का नया मार्ग तैयार करना है।विशेषकर ऊर्जा सुरक्षा, आर्कटिक सहयोग,समुद्री संपर्क,डिजिटल मुद्रा-प्रणाली और रक्षा नवाचारों में दोनों देशों के बीच अत्यंत महत्वपूर्ण वार्ताएँ होने की संभावना है।आज जब अंतरराष्ट्रीय राजनीति बहुध्रुवीय संरचना की ओर तेजी से बढ़ रही है,भारत और रूस दोनों ही इस नए वैश्विक क्रम में अपनी स्वतंत्र विदेश नीति और रणनीतिक स्वायत्तता को सर्वाधिक महत्व देते हैं।भारत एक ओर अमेरिका, यूरोपीय संघ और क़्वाड देशों के साथ सहयोग बढ़ा रहा है,वहीं दूसरी ओर रूस उसके सबसे विश्वसनीय रणनीतिक साझेदारों में बना हुआ है। इसी कारण पुतिन की यह यात्रा भारत के मल्टी-अलाइनमेंट दृष्टिकोण को और अधिक प्रभावी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह यात्रा यह भी दर्शाती है कि भारत वैश्विक कूटनीति के भीतर एक सेतु-राष्ट्र के रूप में उभर रहा है, जो पूर्व और पश्चिम दोनों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखने में सक्षम है।यूक्रेन संघर्ष के बाद रूस पर पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए व्यापक आर्थिक प्रतिबंधों ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार- व्यवस्था को बदल दिया है। ऐसे समय में भारत की भूमिका रूस के लिए अत्यधिक महत्व की हो गई है। ऊर्जा आपूर्ति, वैकल्पिक भुगतान-प्रणाली, समुद्री मार्गों के विकास और वैश्विक दक्षिण के देशों के साथ संवाद में भारत रूस का प्रमुख सहयोगी बनकर उभरा है। पुतिन की यात्रा इस सहयोग को एक नई संस्थागत मजबूती देने का अवसर प्रदान करती है। विशेषकर रुपए-रूबल व्यापार,अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे और सुदूर-पूर्व रूस में भारतीय निवेश जैसे मुद्दे इस यात्रा के केंद्र में रहने की संभावना रखते हैं।


साथियों बात अगर हम रूस के राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा को समझने की करें तो,पुतिन की यह राजकीय यात्रा कई मायनों में खास होगी,यह भारत और रूस, दोनों के नेतृत्व को अपने द्विपक्षीय संबंधों में प्रगति की समीक्षा करने,विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने के लिए दृष्टिकोण निर्धारित करने और आपसी हित के क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान करने का अवसर प्रदान करेगीमॉस्को से मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, रूस और भारत अपनी राष्ट्रीय भुगतान प्रणालियों (नेशनल पेमेंट सिस्टम) को जोड़ने के इच्छुक हैं और दिसंबर में जब राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन नई दिल्ली का दौरा करेंगे तो यह विषय एजेंडे में सबसे ऊपर होगा। भारत और रूस के बीच पुराने और मजबूत संबंध दुनियाँ जानती है, लेकिन इस बार हालात पहले जैसे नहीं हैं। यूक्रेन युद्ध, बदलती वैश्विक राजनीति, डिफेंस डील्स और भारत की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय भूमिका-इन सबके बीच रूस के प्रेसिडेंट व्लादिमीर पुतिन का भारत दौरा काफी महत्वपूर्ण सटीक मायने रख्रता है।
साथियों बात अगर हम रूस के राष्ट्रपति पुतिन की यात्रा की विशेषता का विश्लेषण करें तो, यह यात्रा कई दृष्टियों से ऐतिहासिक है। यह 23वाँ भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन है,जो इस दीर्घकालिक साझेदारी की निरंतरता का प्रतीक है। यूक्रेन संघर्ष के बाद पुतिन का भारत आना यह भी दर्शाता है कि रूस भारत को एक विश्वसनीय,तटस्थ और प्रभावशाली साझेदार के रूप में देखता है। इस यात्रा का प्रमुख उद्देश्य विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी को आधुनिक वैश्विक आवश्यकताओं के अनुरूप पुनर्जीवित करना है। बदलते आर्थिक तंत्र, तकनीकी प्रगति, ऊर्जा सुरक्षा,रक्षा आधुनिकीकरण और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था कीवास्तविकताओं को देखते हुए दोनों देशों के लिए यह बैठक नई संभावनाओं और नए समझौतों का मार्ग खोल सकती है। (1) रक्षा सहयोग- रणनीतिक सुरक्षा की धुरीपुतिन -मोदी वार्ता में रक्षा सहयोग मुख्य केंद्र में रहने की संभावना है। भारत अपनी वायु रक्षा संरचना को सुदृढ़ करने के लिए रूस से अतिरिक्त एस-400 वायु-रक्षा रेजिमेंट प्राप्त करने पर विचार कर सकता है। साथ ही, लड़ाकू विमानों,मिसाइल प्रणालियों हेलीकॉप्टरों और उन्नत सैन्य तकनीकों के संयुक्त उत्पादन पर गंभीर विमर्श संभावित है। भारत लंबे समय से रक्षा क्षेत्र में तकनीकी हस्तांतरण और स्थानीय निर्माण क्षमता को बढ़ावा देना चाहता है, और रूस इस दिशा में एक प्रमुख साझेदार बना रह सकता है। पुराने रक्षा प्लेटफार्मों जैसे सु-30एम क़ेआई के उन्नयन, भविष्य की प्रणालियों जैसे एस-500 तथा अन्य उन्नत एंटी-मिसाइल प्रणालियों पर भी चर्चा संभव है। यह सहयोग भारत की सामरिक स्वायत्तता के लिए अनिवार्य है।(2)आर्थिक, ऊर्जा और औद्योगिक साझेदारी- इस यात्रा के आर्थिक आयाम अत्यंत व्यापक हैं। दोनों देश एक व्यापक 2030 रणनीतिक आर्थिक रोडमैप को अंतिम रूप दे सकते हैं,जिसमें ऊर्जा, प्रौद्योगिकी अंतरिक्ष, कृषि, खनन और औद्योगिक सहयोग शामिल हो सकते हैं। रूस भारत को कच्चे तेल, एलएनजी, कोयला तथा परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में दीर्घकालीन प्रस्ताव दे सकता है। छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों में सहयोग भी भविष्य के ऊर्जा विकास के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है। दूसरी ओर, भारत अपनी बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए रूस को एक महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत तथा निवेश साझेदार के रूप में देखता है। औद्योगिक, वैज्ञानिक और तकनीकी साझेदारी से दोनों देशों के हितों को समान रूप से लाभ मिल सकता है। (3) भुगतान प्रणाली और वित्तीय स्वायत्तता-इस यात्रा का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण पहलू दोनों देशों की राष्ट्रीय भुगतान प्रणालियों- भारत की “रु-पे ” और रूस की “एम आईआर” को जोड़ने का प्रस्ताव है। यह कदम दोनों देशों को पश्चिमी वित्तीय तंत्र, विशेषकर स्विफ्ट, से आंशिक स्वतंत्रता प्रदान कर सकता है।इससे पर्यटकों व्यवसायियों और छात्रों को लेन-देन में सीधी सुविधा मिलेगी। इसके साथ ही

रुपया–रूबल व्यापार को बढ़ावा मिलने की संभावना है, जो वैश्विक व्यापार में डॉलर पर निर्भरता घटाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा। यद्यपि इस प्रक्रिया की तकनीकी और नियामकीय चुनौतियाँ कम नहीं, फिर भी यह पहल दोनों देशों के लिए वित्तीय आत्मनिर्भरता का मार्ग खोल सकती है। (4) कुशल मानव संसाधन और श्रम सहयोग-रूस ने भारत से कुशल और अर्द्ध- कुशल श्रमिकों की भर्ती में रुचि व्यक्त की है। यह प्रस्ताव रूस की श्रम-गत आवश्यकता और भारत के विशाल युवा जनसंख्या व कौशल क्षमता का सम्मिलित समाधान प्रस्तुत करता है। पुतिन-मोदी वार्ता में प्रवासन, वीज़ा व्यवस्था, कौशल मान्यता और पारस्परिक रोजगार प्रणालियों पर समझौते होने की संभावना है। यह कदम भारत के युवाओं के लिए विदेशों में रोजगार के नए अवसर खोल सकता है। (5) अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य और भू-राजनीतिक संदेश-यह यात्रा दोनों देशों के लिए विश्व मंच पर एक संदेश भी है। पश्चिमी प्रतिबंधों और भू- राजनीतिक दबावों के बीच रूस भारत के साथ अपने संबंधों को मज़बूत कर अपनी रणनीतिक स्थिति को स्थिर करना चाहता है। वहीं भारत, अमेरिका और यूरोप से निकट संबंध बनाए रखते हुए भी रूस जैसेपारंपरिक साझेदार के साथ संतुलन कायम रखना चाहता है। भारत का लक्ष्य स्पष्ट है-बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को सुरक्षित रखना। यह यात्रा इसी उद्देश्य को और मजबूती प्रदान कर सकती है। (6) चुनौतियाँ और संवेदनशील मुद्दे-यद्यपि यह यात्रा अवसरों से भरपूर है, चुनौतियाँ भी समान रूप से मौजूद हैं। अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ भारत के संबंधों की संवेदनशीलता को देखते हुए रूस के साथअत्यधिक निकटता पश्चिम की प्रतिक्रिया को जन्म दे सकती है। भुगतान प्रणाली, मुद्रा समन्वय, तकनीकी हस्तांतरण और रक्षा उत्पादन जैसे क्षेत्रों में व्यावहारिक अड़चनें भी कम नहीं।इसके अतिरिक्त, यूक्रेन संघर्ष का वैश्विक राजनीतिक प्रभाव, रूस पर जारी प्रतिबंध,और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय तंत्र में बाधाएँ भी भारत -रूस सहयोग की गति को प्रभावित कर सकती हैं।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कार्य इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि दिसंबर 2025 की पुतिन-भारत यात्रा भारत-रूस साझेदारी के लिए एक निर्णायक क्षण है। यह दौरा केवल पुरानी मित्रता की पुनर्पुष्टि नहीं,बल्कि बदलती वैश्विक वास्तविकताओं के अनुरूप संबंधों के आधुनिकीकरण की दिशा में एक गंभीर प्रयास है रक्षा ऊर्जा अर्थव्यवस्था प्रौद्योगिकी, भुगतान प्रणाली,मुद्रा समन्वय, मानव संसाधन और अंतरिक्ष सहयोग-इन सभी क्षेत्रों में संभावित समझौते आने वाले वर्षों के लिए साझेदारी की नई संरचना तैयार कर सकते हैं। चुनौतियाँ अवश्य हैं, परंतु अवसर भी उतने ही बड़े हैं। यदि दोनों देश इन अवसरों को व्यावहारिक और संतुलित नीति के साथ पकड़ पाते हैं,तो भारत-रूस संबंध आने वाले दशक में वैश्विक राजनीति में एक नई दिशा का निर्धारण कर सकते हैं।

-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र 9359653465