बिलासपुर :- प्रसिद्ध की दौड़ में इतना भी ना गिरे चर्चित होने के लिए कुछ भी अमर्यादित भाषाओं का इस्तेमाल आध्यात्मिक दृष्टिकोण के लिए घातक है,योग गुरु का बयान हमारी आध्यात्मिक संस्कृति एवं मर्यादा से विपरीत है, योग एक मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक अभ्यास है जो मन, शरीर और आत्मा को स्वस्थ बनाने में मदद करता है, ऐसे बयानों से विपरीत प्रभाव का दुष्परिणाम आध्यात्मिक संस्कृति पर पड़ता है!
साधु-संतों की शब्दवाणी सत्य और ज्ञान पर आधारित होती है, जो लोगों को शांति और सही मार्ग दिखाती है। उनकी बातें ‘जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान’ जैसे उद्धरणों में झलकती हैं, जहाँ कर्म और ज्ञान को सबसे ऊपर रखा जाता है।
कबीर दास के अनुसार: ‘बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय’।
तुलसीदास के अनुसार: ‘राम नाम मन का शरण है और जहाँ प्रेम है, वहाँ भगवान है’!