इंसान की पहचान उसके कपड़ों से नहीं उसके चरित्र से होती है : विजय दुसेजा।

विजय दुसेजा/सम्पादकीय : आज के इस दौर में इंसान चांद तक तो पहुंच गया है पर अभी भी कहीं ना कहीं कुछ बातें ऐसी हैं जिससे उसकी सोच छोटी साबित होती है.इंसान की पहचान उसके चरित्र से है, उससे काम से हैं, या कपड़ों से हैं? यह सोचना जरूरी है क्योंकि आज के इस वक्त में कुछ लोग इंसान के चरित्र को नहीं देखते हैं, उसके काम को नहीं देखते हैं बल्कि उसके कपड़ों को देखते हैं अगर चाहे चोर हो, डाकू हो, अच्छे कपड़े पहने हैं तो उसे हर कोई सलाम करते है, इज्जत सम्मान देता है चाहे उसका चरित्र भली गलत क्यों ना, हो उसके कार्य भली गलत क्यों ना हो, यह जानते हुए भी उससे प्रेम करते हैं क्योंकि उससे कपड़े अच्छे हैं, उसके पास पैसा है चाहे पैसा गलत कार्य से क्यों न कमाया हो पर पैसा है आज से 100 वर्ष पूर्व आजादी की लड़ाई में गांधीजी भी जब सूट-बूट पहनते थे पर एक ऐसी घटना से सबक लिया और गांधी जी को सूट बूट छोड़ना पड़ा, हाथ में लाठी उठानी पड़ी, धोती पहनकर निकल पड़े आजादी दिलाने के लिए अंग्रेजी कपड़ों की होली जलाई गई, खादि को अपनाया गया , सादगी जीवन जीना ही लक्ष्य बनाया ,लोगों का भला करना ही संस्कार बनाएं गए आजादी के कुछ सालों बाद जब लाल बहादुर शास्त्री जी प्रधानमंत्री बने बहुत ही सरल स्वभाव के, हंसमुख ,व्यक्तित्व के धनी थे उनका जीवन भी सादा था पर उनके विचार और उनके कार्य ऊंचे थे मशहूर वैज्ञानिक हमारे देश के दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति डा.अब्दुल कलाम जी का भी जीवन साधारण था, कपड़े साधारण पहनते थे, लेकिन उनके कार्य भारत को विश्व पटल पर ऊंचाई पर ले जाने वाले थे, वह अपने कार्यों से जाने जाते थे, ना कि अपने पहनावे से.गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पारिकर भी अपने साधारण जीवन जीने और कार्यों से जाने जाते थे ना कि अपने पद से इतना बड़ा पद होने के बाद भी उनका रहन-सहन एक साधारण इंसान की तरह था, पहनावा साधारण इंसान की तरह था, व्यवहार बहुत अच्छा था ऐसे लोग हमारे देश में आज भी बहुत सारे हैं जो धन दौलत बहुत कमाई बड़े-बड़े उच्च पदों पर रहे पर अपने जीवन को साधारण तरीके से जी रहे हैं पहनावा भी साधारण है दिखावा नहीं है बस एक जुनून था कार्य करने का पर आज के इस चकाचौंध दुनिया में विदेशी संस्कृति व सोशल मीडिया ने लोगों के दिमाग को बदल कर रख दिया है आजकल लोग रुपया पैसा धन दौलत और पहनावे को देख रहे हैं लेकिन उन कपड़ों के पीछे इंसान कैसा है ?यह नहीं देखा जा रहा है कि बुरा है या नहीं? आज जो दुनिया टिकी है वह अच्छे लोगों के कारण टिकी हुई है पर लगता है.जब इंसान जन्म लेता है कोई कपड़ा नहीं पहना होता है जब जीवन के अंतिम पड़ाव में आता है तभी सारे कपड़े जलकर खाक हो जाते हैं तो फिर इतना गुरूर क्यों? जीवन में किस बात का घमंड किया जा रहा है?अगर कोई बात इंसान की याद रहती है तो वह उसके अच्छे कर्म, उसके अच्छे कार्य व उसके अच्छे संस्कार जो इंसान को हमेशा याद रहता है बाकी क्या पहना, क्या खाया, वह कोई याद नहीं करता है.ब्रह्माकुमारी आश्रम की कार्यशैली, संस्कार किस तरह साधारण जीवन जिया जाता है कितने अलौकिक कार्य किए जाते हैं? पहनावा उनका साधारण है , उनकी दिनचर्या कितनी साधारण है पर उनके कार्य उच्च कोटि के हैं हां पर लोग उनके परोप कार्य को देखते किंतु कुछ जयचंद उसके विपरीत मार्ग पर चलते हैं.इंसान को उसके कार्य से जाना चाहिए, उसके कर्मों से जानना चाहिए, उसके संस्कार से जानना चाहिए ना कि उसके पहनावे से इस फैशन की दुनिया में अगर कोई फटे कुतरे पाश्चात्य वस्त्र पहने तो उसे फैशन का नाम दिया जाता है इसके विपरीत यदि कोई निम्न अथवा मध्यम परिवार का इंसान पहने तो इसे गरीब श्रैणी की मानसिकता रखते हुए उनके फटे पुराने कपड़े पहने प्रचार प्रसार करने मे आगे रहते है.सोच सोच में फर्क है सोच बदलो तो देश बदलेगा सोच बदलो तो विचार बदलेगा और जीवन में नया युग आएगा और जीवन सुखमय रहेगा. सत्संग ,कीर्तन, मंदिर, गुरुद्वारा, चर्च, दरगाह जाते हैं फिर भी कुछ वहां से लेकर नहीं आते हैं सब छोड़ कर आते हैं तो जाने से क्या फायदा? दिखावे की दुनिया में मत जियो हकीकत की दुनिया में जियो जो तुम्हारे साथ जाएगा उस चीज को इकट्ठा करो जो नहीं जाएगा उसके पीछे मत भागो इंसान की पहचान कपड़ों से नहीं उसके कार्यों से ,उसके अच्छे संस्कारों से होनी चाहिए।