सम्पादकीय : जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है वैसे वैसे लोगों का व्यवहार भी बदल रहा है? गर्मी चाहे मौसमी हो चाहे चुनावी हो या पैसों की हो जब आती है तो लोगों का व्यवहार बदलना शुरू हो जाता है। अभी दो प्रकार की गर्मी पड़ रही है एक मौसम ही गर्मी दूसरी चुनावी गर्मी जैसे ही चुनावी होने का समय आने लगा है उनके साथ ही मुखी पद पाने उथल-पुथल मचनी भी शुरू हो गई है। हर कोई चाहता है बहती गंगा में हाथ धो लूं और उनकी सोच सिर्फ एक ही होती है इस बार कम से कम मैं तो मुखी बन जाऊं कोई कहता है कि मैं अपना नाम मुखी पद के लिए देकर भले बाद में समझौता कर अपना नाम वापस ले लूंगा और मुझे कोई ना कोई पद तो मिल ही जाएगा। कोई कहता है मैं एक बार भी मुखी नहीं बना हूं मुझे मुखी बनाया जाए कोई पूर्व मुखी कहता है कि मुझे दोबारा एक और मौका दिया जाए मैं एक बार और सेवा करना चाहता हूं।
हर किसी में लालसा सिर्फ एक ही है मैं बनूंगा मुखी , पर अपना विजन, समाज हित में करने वाले कार्यों के लिए कोई बताना नहीं चाहता है हर कोई माला पहनना चाहता है स्वागत सत्कार कराना चाहता है पर समाज के लोगों के लिए क्या करेगा समाज के लिए क्या करेंगे बताना नहीं चाहता है। पहले जमाने में मुखी का मान सम्मान होता था इज्जत होती थी, समाज और पंचायत में उनका रुतबा होता था पंचायतों में एवं समाज में उनकी कही हुई बातों को पूरा सम्मान दिया जाता था जैसे कहा जाता है की पंच परमेश्वर होते हैं तो उनका मुखिया सरपंच याने मुखी को भगवान का दर्जा दिया जाता था उन्हें आदर की नजरों से देखा जाता था और उन्हें पूरा सम्मान दिया जाता था कुछ वर्षों पूर्व तक मुखी साहब भी सिर्फ माला पहनने के लिए नहीं होते थे सच्ची भावना से समाज सेवा और समाज के उत्थान के लिए सोचते थे परंतु अब तो समाज हो या अन्य ऊंचे पदों पर जाकर आदमी पहले अपने लिए सोचता है अपने स्वार्थ के लिए सोचता है अपने फायदे की सोचता है।
मुखी समाज का अगुआ होता है उनका दायित्व समाज को एकजुट बनाना, समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करना समाज में आपसी एकता एवं अखंडता के लिए कार्य करना समाज में किसी प्रकार का गतिरोधआने पर उसका निराकरण करना समाज की भाषा संस्कृति सभ्यता को बढ़ावा देना सिर्फ और सिर्फ समाज को अच्छे और ऊंचे स्थान पर ले जाना इन उद्देश्यों को लेकर ही आज भी पंचायतों का गठन निरंतर जारी है। पूर्व में समाज के बड़े बुजुर्गों का भी आदर मान सम्मान और उनकी बातों को गंभीरता के साथ सुना जाता था मुख्य मतलब समाज के बड़े बुजुर्गो को पितामह का दर्जा दिया जाता था एवं समाज में निस्वार्थ भाव से सक्रिय योगदान देने वाले समाजसेवी को उचित सम्मान दिया जाता था यही हमारे समाज की संस्कृति संस्कार और परंपराएं थी परंतु आज इसमें बुरी तरह से शिथिलता आ गई है अब सेवा करने वालों समाज के प्रति पूरी तरह से समर्पित उच्च विचार रखने वालों को नजरअंदाज कर दिया जाता है और उन्हें वह सम्मान नहीं मिलता जिनके वह हकदार हैं।
परंतु समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो समाज में अपने स्वार्थ के कारण सेवा करते हैं और सेवा करने के नाम पर मतलब का मेवा ज्यादा खाना चाहते हैं ।इस दिखावे, और मतलब की दुनिया में बहुत लोग स्वार्थ मेंअंधे होते जा रहा है। और वो नहीं चाहते हैं कि अच्छा आदमी सामने आए चुनाव लड़े या अध्यक्ष बने । वे चाहते हैं कि इन पदों पर वही आदमी अध्यक्ष बने जो हमारे कहने पर कठपुतली बनकर नाचे वह आपस में ही एक गुट बनाकर रखे हैं ।जैसे राजनीति में भी कुछ नेता ऐसे हैं कि वह चाहते हैं मेरे बाद मेरा बेटा विधायक बने सांसद बने मंत्री बने मुख्यमंत्री बने। उसी तरह समाज में भी राजनीति घुसते जा रही है और कुछ लोग ऐसे हैं जो अपने ही लोगों को हर बार कुर्सी देते हैं ताकि पावर हमारे हाथ में रहे सत्ता की चाबी किसी और के पास ना जाए उनके दांव पेच देखकर अच्छा और भला आदमी आगे आने की हिम्मत नहीं जुटा पाता और और समाज सेवा करने की चाह मन में रख कर भी दूर चला जाता है और अगर कोई भूले भटके हिम्मत कर सामने आने की कोशिश भी करता है तो उसे हर प्रकार के तरीके अपनाकर उसे पद की लालच देकर बैठा दिया जाता है। अगर वह फिर भी न माने तो फिर राजनीतिक दांवपेच कर उसे हरा दिया जाता है कहने का तात्पर्य है की कुछ भी हो जाए कुर्सी हमें चाहिए मुखी मैं ही बनूंगा, मेरे बाद मेरी हर बात मानने वाला मेरा ही आदमी बनेगा एक बात पुरानी है पर सच्ची है कुछ लोग कहते हैं ना भाड़ में जाए जनता जब अपना काम है बनता।
अभी समाज में कई ऐसे अति महत्वपूर्ण पदों पर ऐसे लोग आसीन हैं जिनका समाज सेवा में कोई महत्वपूर्ण योगदान नहीं है उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर बैठाकर जो बरसों से समाज सेवा में सक्रिय हैं एवं वर्षों से निस्वार्थ भाव से समाज हित में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं एवं महत्वपूर्ण पदों के योग्य हैं उन्हें नजरअंदाज कर उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाई जाती है। जोकि है जोकि अनुचित है हमें लंबे समय से समाज सेवा में सक्रिय समाज के के प्रति निस्वार्थ भाव से समर्पित लोगों को पूर्ण रूप से सम्मान देकर उनका उत्साहवर्धन करना चाहिए एवं लंबे समय से उनके द्वारा की जा रही समाज सेवा के लिए उन्हें समय-समय पर सम्मानित करना चाहिए। हमारे समाज के वरिष्ठ जनों को सोचना चाहिए। काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती है। अब समय बदल रहा है नई जनरेशन नई युवा पीढ़ी भी आगे आ रही है। अब लोगों में जागृति आ रही है सब समझ रहे है इसलिए यह ढोंग करना छोड़ कर नई सोच नई ऊर्जा वाले व्यक्ति को मुख्य पद पर आसीन होना चाहिए जो सच्चा है अच्छा है उन्हें मुखी बनाएंगे जिससे सबका भला हो। पर ऐसा होगा लग नहीं रहा है। अब समय की यह मांग है कि किसी न किसी को तो आगे आना होगा सच के लिए लड़ना होगा सच्ची सेवा भावना लेकर सत्य के आदर्शों पर चलकर मुखी बनना होगा।