साहित्य और कला क्षेत्र में सात दशक, बरसों से कार्य कर रही अखिल भारत सिंधी बोली ऐं साहित सभा।

सिंधु भवन,शिवाजी नगर में सुहिणा सिंधी समारोह हो रहा है। इसकी आयोजक संस्था सिंधी बोली साहित्य सभा सात दशक से सिंधी भाषा,साहित्य और कला के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य कर रही है।
स्वतंत्रता प्राप्ति और राष्ट्र विभाजन के पश्चात सिंधी समुदाय रोजी रोटी के लिए संघर्ष में लगा रहा। समाज के लोग कुछ वर्ष खुद को पैरों पर खड़ा करने में व्यस्त हो गए। यह दशक भाषा और संस्कृति के संरक्षण से अछूता रहा। लेकिन वर्ष 1957 में दिल्ली में कुछ प्रबुद्ध सिंधी बंधुओं ने आल इंडिया सिंधी बोली कन्वेंशन आयोजित किया जिसमें साहित्यकार, कलाकार, शिक्षाविद और समाज सेवी शामिल हुए। दिल्ली में हुई इस छोटी सी पहल ने थोड़े ही समय में भाषा के संरक्षण के लिए एक आंदोलन का स्वरूप ले लिया। सिंधियत के अनुरागियों में नई चेतना का संचार हुआ। अगले ही वर्ष मुम्बई में सिंधी साहित्य सम्मेलन हुआ। इसके बाद नागपुर, गांधीधाम, भोपाल, जयपुर, लखनऊ, बंगलौर, अल्वर, मुम्बई, दिल्ली, उल्हासनगर, पालीताना, बड़ौदा और इंदौर शहरों में सम्मेलन हुए। देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री महोदय सहित देश की प्रमुख हस्तियों ने सिंधी भाषा और साहित्य सम्मेलनों में अतिथि के रूप में शामिल होकर संबोधित किया।

अखिल भारत सिंधी बोली और साहित सभा ने साहित्य, नाटक, संगीत और चित्रकला जैसी विधाओं के लिए कार्य करने वाले समाज बंधुओं को प्रतिवर्ष पुरस्कार देना प्रारंभ किया। इन पुरस्कार समारोहों में संगीत, नृत्य और नाटक की पेशकश की परम्परा प्रारंभ की गई।

श्री कीरत बाबानी,गोविंद माली जी ने इस संस्था को सक्रिय बनाए रखा। नई सदी में प्रवेश कर सभा ने सफलता के नए आयाम छुए।करीब बीस वर्ष सुंदर अगनानी जी ने सभा के अध्यक्ष के रूप में विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य के लिए समाज की प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने का कार्य किया। सिलसिला निरंतर चलता रहा । इस वर्ष कार्यक्रम के लिए भोपाल का चयन मध्यप्रदेश वासियों के लिए गर्व का कारण बना है। प्रतिभाओं का सम्मान युवाओं को समाज और देश सेवा के साथ और बेहतर कार्य करने की प्रेरणा देता है। युवाओं के साथ ही अनुभवी और बुजुर्गजन का सम्मान भी पुण्य का कार्य है।

भोपाल में 29 अक्टूबर को जिन आठ विभूतियों को सम्मान के लिए चुना गया उनमें दो वरिष्ठ नागरिक जो 90 और 94 वर्ष के हैं, वे किसी संत से कम नहीं हैं। इन्होंने अपना जीवन अपनी विधा में समर्पण की भावना से कार्य करते हुए व्यतीत किया है। इन्हें सम्मानित कर सिंधी बोली साहित सभा स्वयं सम्मानित हो रही है।

कोई भी समाज यदि सांस्कृतिक पहचान स्थापित नहीं कर पाता तो आर्थिक प्रगति भी मायने नहीं रखती। आज सिंधी समुदाय सेवा के क्षेत्र में भी पहचान बना रहा है। विभिन्न तरह की नौकरियों के साथ ही भारतीय सिनेमा, खेल जगत और सांस्कृतिक जगत में सिंधी युवाओं की उल्लेखनीय भागीदारी देखी जा रही है।

प्रतिवर्ष सभा द्वारा सिंधी भाषा दिवस पर कार्यक्रम किए जाते हैं। सिंधी बोली साहित सभा को युवाओं को अपनी भाषा और सभ्यता से जोड़ने का श्रेय भी है।