कई पीढ़ियों पहले सरगुजा से आकर बेलगहना के आखिरी छोर पर पहाड़ी की तलहटी में बसे इस प्यारे से छोटे गांव का नाम ही सरगुझियां पारा रख दिया गया ~ इसी अंतिम छोर पर स्थित उपेक्षित से गांव की शासकीय प्राथमिक शाला में पहली बार किसी सामाजिक संस्था के कदम पड़े और प्राप्त जानकारी के अनुसार मात्र एक शिक्षक वाले इस स्कूल में पहली बार रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया ~
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इस सादगी पूर्ण आयोजन में मां सरस्वती जी की पूजा अर्चना के बाद शालेय छात्र छात्राओं ने अपनी अपनी ग्रामीण परिवेश पर आधारित प्रस्तुतियां दीं जिन्हें पुरुस्कृत करते हुए संस्था के संयोजक सतराम जेठमलानी ने कहा कि यह नन्हा सा उरांव आदिवासी बहुल गांव भारत की अनेकता में एकता वाली कहावत की पुष्टि करता है ठेठ छत्तीसगढ़ी भाषा के साथ सरगुजिहा मिश्रित बोली अलग ही मिठास देती है ~
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कार्यक्रम पश्चात् आमंत्रित अतिथियों रजनी मलघानी , नेहा आहुजा , अंशु पारवानी ने सभी छात्र छात्राओं में चाकलेट बिस्किट , खिलौने व पेंसिल बॉक्स वितरित कर शाला के सर्वाधिक प्राप्तांक वाले और सर्वाधिक उपस्थिति देने वाले बच्चो को मैडल और उनके माता पिता को शाल श्रीफल भेंटकर सम्मानित किया गया ~ संस्था की सहयोगी अंशु पारवानी ने इस नेक कार्य में सहयोग के लिए समाज सेवी राम हिंदूजा , मनोज सरवानी, कार्यक्रम समन्वयक नारायण नायक व ग्राम सरपंच तथा शालेय स्टॉफ के प्रति आभार व्यक्त किया।
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