जब आप दूसरों के लिए मांगोगे तब भगवान आपको, अपने लिए सब कुछ खुदी दे देगा, सांई सेहरा वाले








रायपुर/बिलासपुर:- छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में चालिहा  महोत्सव के समापन के दिन मोवा, में, दासवानी परिवार व पंचायत के द्वारा सेहरा वाले सांई  जी का
एक शाम भगवान झूलन के नाम सत्संग कीर्तन का आयोजन किया गया सत्संग रात्रि 10:00 बजे आरंभ हुआ 12:00 समापन हुआ जैसे ही सांई जी का आगमन मोवा में हुआ भक्तों के द्वारा जोरदार आतिशबाजी कर फूलों की वर्षा करके भव्य  स्वागत व सत्कार किया गया कार्यक्रम की शुरूआत भगवान झूलेलाल जी की मूर्ति पर पुष्प अर्पण कर एवं पूज्य बहराणा साहब की अखंड ज्योत प्रजवलित करके की गई
दासवानी परिवार पूज्य पंचायत मोवा के द्वारा सांई जी का शाल पहनाकर 💐पुष्प गुष्ट देकर स्वागत सम्मान किया गया प्रथम बार सांई जी  का सत्संग समारोह मोवा में हो रहा था सभी लोगों ने सत्संग कीर्तन का आनंद लिया सत्संग में सांई जी ने फरमाया कि हमेशा भगवान का शुकराना करना चाहिए और अपने लिए नहीं दूसरों के लिए पहले मांगना चाहिए जब आप यह करना सीख जाएंगे तो भगवान आपको वह सब कुछ दे देगा जो आप अपने लिए मांगना चाहते थे जो मैं
मैं करता है वह वही खत्म हो जाता है और जो आपके लिए व आपने  किया है कहता  है वह आगे बढ़ जाता है घमंड कभी मत करें और सच्चे मन से प्रेम से भगवान से संतों से अगर कुछ मांगे तो पहले दीन दुखियों के लिए मांगे जब आप उनसे, उनके लिए मांगेंगे तो जो आपको चाहिए आपको खुद ही मिल जाएगा भगवान अंतर्यामी है घट-घट के स्वामी हैं वह हर एक इंसान की इच्छाओं को जानते हैं पर जरूरत है आपको अपने लिए ना मांग कर दूसरों के लिए मांगे इसे ही प्यार त्याग और प्रेम कहते हैं सांई जी ने एक कथा सुनाइ एक गांव रामपुर में गोविंद नाम का आदमी रहता था छोटी झोपड़ी थी कभी काम मिलता था कभी नहीं मिलता था गरीबी में गुजारा चलता था कहीं से कुछ मांग के आ जाता था तो दो दिन तक उसे खाने पीने का इंतजाम हो जाता था पर कुछ दिनों से उसका खाना चोरी हो जा रहा था वह सोच में पड़ गया इस गरीब की झोपड़ी में बांसी खाने के लिए कौन आकर चोरी करके मेरा खाना लेकर जा रहा है एक दिन वह रात को चेक करता है जागते रहता है कि मैंरा खाना कौन चुरा रहा है देखा  बाहर से एक चूहा घुसता है बड़ा और उस खाने को चुरा के वही ले जाता है और कहा तुझे इस जंगल में खाली मेरी गरीब की झोपड़ी मिली थी खाना चुराने के लिए और बाकी इतने बड़े मकान🏠 नहीं मिले तेरे को मेरी झोपड़ी मिली बस तब चूहा कहता है कि भगवान कहते हैं कर्म कर फल की चिंता मत कर तो मैं भी  अपना कर्म करके भाई खाना खा रहा हूं अब वह झोपड़ी है कि महल है मुझे उससे क्या मतलब है मुझे तो खाने से मतलब है मैं 56 भोग नहीं मांगता पेट भरने के लिए  दाल रोटी में खुश रहता हूं और मैं अपना  कर्म   कर रहा हूं तुम भी अपना कर्म करो गोविंद ने पूछा मेरा कर्म क्या है और चूहे ने कहा मैं तो जीव जंतु हूं तुम इंसान हो सिंध के नसरपुर में भगवान झूलेलाल जी का निवास है जाकर उनसे पूछो वही तुम्हारे सवालों का जवाब देंगे गोविंद ने कहा ठीक है दूसरे दिन गोविंद पैदल ही निकल पड़ा नसरपुर सिंध की ओर चलते-चलते जंगल में पहुंचा रात हो गई थी भूख भी लग रही थी थक गया था इधर-उधर देखा तो एक झोपड़ी थी गया दरवाजा खटखटाया तो एक बुजुर्ग ने दरवाजा खोला गोविंद ने सारी बात बताएं उसने कहा आ, जाओ बेटा अंदर आज रात को यही विश्राम करो सुबह चले जाना गोविंद ने कहा बाबा कुछ खाने को है भूख लगी है उसने खाना दिया उस झोपड़ी में उस बुजुर्ग के अलावा उसकी पत्नी वह एक बेटी रहती थी पर उसकी बेटी गूंगी और बहरी थी उसे बुजुर्ग ने कहा जिसका नाम हरि था कि तुम भगवान झूलेलाल  के पास जा रहे हो तो मेरा एक सवाल जरूर पूछना कि मेरी बेटी कब ठीक हो जाएगी गोविन्द ने कहा ठीक है दूसरे दिन गोविंद आगे चला गया तो देखा बहुत बड़ा पहाड़ था वह सोच में पड़ गया कि अगर इतना बड़ा पहाड़ चड़ूगा तो कहीं मैं मर ना जाऊं पर भगवान  झूलेलाल का नाम  लेकर पहाड़ चढ़ गया और सामने देखा एक बड़ा तपस्वी साधु तपस्या कर रहे हैं उनके पास पहुंचा उस  साधु का नाम था प्रेम और गोविंद ने  सारी बात बताई और कहा बाबा जी मुझे नसरपुर का रास्ता बताओ मुझे भगवान  झूलेलाल से मुलाकात करने जाना है साधु ने कहा ठीक है बेटा पर मेरा भी एक सवाल है जो भगवान  झूलेलाल से  जरूर पूछना कि मैं इतने सालों से तपस्या कर रहा हूं मेरी  भगवान  से कब मिलकात होगी  गोविन्द ने कहा ठीक है बाबा साधु के हाथ में एक जादू की छड़ी थी उसने घुमाई और एक कागज में नक्शा आ गया उसने गोविंद को दिया और कहा इस नक्शे को देखकर तुम नसरपुर सिंध पहुंच जाओगे नकशे के हिसाब से गोविंद आगे बढ़ता गया और सिंधु नदी किनारे पहुंच गया और नदी के उस पार नसरपुर था नदी के इस बार गोविंद खड़ा था कोई मछुआर भी नहीं कोई 🚣नाविक भी नहीं था जो उस उस पार पहुँचा दे  ,
सामने देखा वहां पर एक कछुआ था बहुत बड़ा था गोविन्द ने सोचा इसके पीठ पर बैठकर मैं जा सकता हूं उसने कछुए से कहा भाई मुझे उस पार पहुंचा दो भगवान झूलेलाल के पास जाना है और कछुआ🐢 ने कहा मैं तुम्हें पहुंचा दूंगा पर मेरा भी एक सवाल भगवान झूलेलाल से पूछना कि जो यह पीठ पर मेरी इतनी बड़ी खोपड़ी है उससे मुझे कब छुटकारा मिलेगा और कब मैं  मोक्ष मिलेगा
मैं पानी में तो चल सकता हूं पर  जमीन में नहीं चल सकता
गोविंद ने कहा ठीक है भाई आपका भी सवाल पूछ लूंगा कछुए ने अपने पीठ पर बैठा दिया और सिंधु  नदी पार करवा दी जैसे ही सिंधु नदी पार करके पहुंचे  नसरपुर में गोविंद ने देखा यहाँ पर तो सब खुश  है सभी लोग खुशी से मेला घुम रहे है गांव वाले से पूछ  कर भगवान झूलेलाल के घर पहुंचा उसके मंत्री ने कहा कि हर व्यक्ति सिर्फ तीन सवाल पूछ सकता है भगवान झूलेलाल से उससे ज्यादा का सवाल नहीं पूछ सकता है क्योंकि आदमी ज्यादा है इसीलिए अब गोविंद सोचने लगा की तीन सवाल तो तीन लोगों के हैं पर मेरा सवाल मिलाकर चार सवाल हो गए अब किसका सवाल न पूछु किसका पूछु ,
इन्होंने मेरी सहायता की है उनके बिना में पहुंच नहीं सकता था यहां पर उसने सोचा मेरे सवाल को जाने दो  भगवान समझ जाएंगे इन तीन लोगों के सवाल पूछ लेता हूं
भगवान के पास पहुंचे तीनों लोगों के सवाल पूछे भगवान ने उनका जवाब दिया और कहा बेटा खाना खाकर जाना गोविंद भरपेट खाना खाकर वापस सिंधु नदी के किनारे पहुंचा तो कछुआ वहीं खड़ा था उसने पूछा भाई मेरा सवाल पूछा भगवान झूलेलाल से वह गोविंद ने कहा पूछा है तो उसने कहा बताओ गोविंद ने कहा भगवान झूलेलाल ने कहा जो तुम्हारी खोपड़ी है जब तुम इसको निकाल कर फेंक दोगे और बाहर निकल जाओगे तब तुम्हें मोक्ष प्राप्त हो जाएगा भगवान के पास पहुंच जाओगे कछुआ बहुत चतुर था वह नदी के नीचे से कई सारे हीरे मोती  लाकर उस खोपड़ी के नीचे अंदर छुपा के रखे थे उसने सोचा अगर मैं हटा दूंगा तो यह सब किसको दूंगा फिर उसने सोचा मरने के बाद वैसे भी सब कुछ छोड़ के जाना है   कुछ लेकर  नहीं जा सकते   है तो इस व्यक्ति को दे देता हूं उसने  नदी पार करवा कर सारे हीरे  उसको दे दिए गोविंद को ओर
अपनी खोपड़ी हटा दी , वह मोक्ष  प्राप्त हो गया भगवान के पास पहुंच गया और गोविंद पैदल चलते हुए पहाड़ी पर पहुंचा साधु के पास साधु ने पूछा मेरा सवाल पूछा तुमने गोविंद ने कहा मैंने पूछा तो क्या जवाब है जब तुम यह छड़ी छोड़ दोगे तब तुम भगवान के पास पहुंच जाओगे और तुम्हें भगवान के दर्शन भी हो जाएंगे क्योंकि उस साधु को बड़ा अहंकार था कि मैं बडा  साधु हूं और  बहुत तपस्या कर रहा हूं तो मैं किसी को भी बुला सकता हूं इस छड़ी के कारण उसका अहकार को तोड़ना था और साधु ने सोचा अगर मर जाऊंगा तो छड़ी कोई काम की नहीं अच्छा यह छड़ी  में  तुम्हें  देता हूं मुझे तो भगवान को प्राप्त करना है भगवान से मिलना है जैसे छड़ी उसने गोविंद को दी वह भी भगवान के दर्शन हुए और भगवान के पास पहुंच गए
गोविंद वापस जंगल होते हुए उस झोपड़ी में पहुंचा उसने पूछा गोविंद से कि झूलेलाल  से बातचीत की भगवान ने क्या कहा मैंरे सवाल का जवाब दिया गोविंद ने बताया हां उसने जवाब दिया उसने कहा जब आप इस झोपड़ी का त्याग करोगे तब आपकी बेटी बोलने लग जाएगी उसने कहा वैसे भी हम बुड्ढे बुड्ढे हैं हमें किस चीज की लालच है कहीं भी हम पड़े रहेंगे खा पी लेंगे पर हमारी बेटी तो सुखी रहेगी, उसने कहा बेटा हम तो वैसे भी चले जाएंगे पर इस बेटी का क्या होगा इसलिए हम चाहते हैं बेटी से विवाह तुम कर लो वैसे भी तुम्हारा कोई नहीं है अकेले हो गोविंद तैयार हो गया गोविंद का उसकी बेटी से विवाह हो गया जैसे ही विवाह हुआ उसकी बेटी बोलने लगी सुनने लगी जो गोविंद झोपड़ी में रहता था अकेला था अब उसका विवाह भी हो गया पत्नी भी मिल गई माता-पिता के रूप में सास ससुर मिल गए हीरे जावरा मिल गए  जादू की छड़ी मिल गई अब गोविंद अरबपति बन गया और अपना सवाल भगवान पर छोड़ दिया था जो चीज हम भगवान पर छोड़ देते हैं भगवान खुश होकर उसे 10 गुना हमें वापस देते हैं गोविंद ने भी इमानदारी से अपने लिए भगवान झूलेलाल से नहीं पूछा उन तीनों के सवाल पूछे तो भगवान ने उसे 10 गुना ज्यादा उसको वापस दिया जितना उसने कभी सोचा भी नहीं था तो प्रैक्टिकल हमें भी जब भी मंदिर गुरुद्वारा जाते हैं तो अपने लिए भगवान से ना मांगे बल्कि दीन दुखियों के लिए मांगे जिस दिन आप यह करना शुरू कर दोगे भगवान आपको खुद ही दे देंगे जो तुम्हें और चाहिए और जो तुम्हारे लिए सही है
इस अवसर पर  छत्तीसगढ सिंधी पंचायत  के कार्यकारी अध्यक्ष महेश रोहरा  ने भी लोगों को जागृत करने के लिए धर्म के बारे में समाज के बारे में एकता के बारे में बताया ओर कहा
समाज कि एकता जरुरी है एक दूसरे की टांग ना खींचे आज बड़े दुख की बात है कुछ लोग लालच की वश में भकावे में अपने धर्म को छोड़ जा रहे हैं ऐसे लोगों का कभी भला नहीं हो सकता है अपना    धर्म  सर्वोपरि है हिंदू धर्म की रक्षा के लिए ही भगवान झूलेलाल ने अवतार लिया हमारे पूर्वजों ने सिंध छोड़ा
धर्म कोई  कपड़ा नहीं  हे की आज पहन लीया  ओर  कल दूसरा पहना, सबसे पहले सनातन धर्म क्या है जाने समझे और सिंधी होना ही सबसे बड़ी गर्व की बात है अपने कुल को अपने समाज को धर्म परिवर्तन करके नुकसान न पहुंचाए,
कुछ समय के लिए आप को फायदा हो सकता है कुछ मिल सकता है पर वह  ज्यादा दिन नहीं  चलेगा,
जीवन भर दुख तकलीफ  खाने के अलावा कुछ नहीं मिलेगा,
इसलिए सोच समझकर बड़ों से सलाह ले थोड़ा  खाए पर घर पर रहे दुख तकलीफ धुप साव   तो आज है कल चला जाएगा, जीवन जब तक है  भगवान झूलेलाल कि  पूजा अर्चना करते रहे

(हिंदू धर्म में जन्म लिया है हिंदू बनकर ही मरेंगे ,यह प्रण् लेना है)

कार्यक्रम के आखिर में आरती की गई पल्लव पाया गया प्रसाद वितरण  किया गया आए हुए सभी साध संगत के लिए आम भंडारे का आयोजन किया गया बड़ी संख्या में लोगों ने भंडारा ग्रहण किया आज के इस पूरे कार्यक्रम को सफल बनाने में कमल दसावानी प्रतीक दसावानी श्री चंद सुदंरानी पूर्व विधायक रायपुर उत्तर ,श्री नंदलाल साहित्य सुनील कुमार कुकरेजा भाजपा मंडल अध्यक्ष तेलीबांधा वासुदेव वाधवा अध्यक्ष पूज्य सिंधी पंचायत मोवा श्री बसंत कुकरेजा अध्यक्ष तेलीबांधा  रायपुर सूर्यांश, विजय जेठानी, सूरज जेठानी, शुभम वाधवानी ,लोकेश कुकरेजा, विक्की दुर्गा ,दिनेश कोटवानी अशोक लालवानी ,मुकेश लालवानी ,विनोद लालवानी ,नितेश लालवानी, एवं अन्य सभी लोगों का विशेष प्रयोग रहा


भवदीय
विजय दुसेजा