सेवादार को कभी अहंकार, और गुस्सा नहीं करना चाहिए इससे उसके पुण्य कर्म कम हो जाते हैं ,,








बिलासपुर:- एक शाम  भगवान झूलेलाल के नाम चंद्र महोत्सव के अवसर पर 5 सितंबर को बाबा मैहड़ दरबार  तोरवा बिलासपुर  में कार्यक्रम का आयोजन किया गया कार्यक्रम की शुरुआत संध्या 6 से 7 बजे सुखमनी का पाठ  किया गया 8 से 10:00 भाई कुंदन डोडवानी  के द्वारा सत्संग कीर्तन का आयोजन किया गया:
कार्यक्रम की शुरुआत गुरु नानक देव जी, बाबा थावर दास ,भगवान झूलेलाल जी के फोटो पर पुष्प अरपण कर दीप प्रजवलीत  करके के  कार्यक्रम   शुरू किया गया ,
भाई कुंदन के द्वारा कई भजन, गाए गये जीसे  सुनकर  भक्तजन भाव विभोर हो गए गुरु की गुरबाणी ओर नाम जप   किया गया,गुरुदेव जी के मीठे अनमोल वचन बताएं
एक प्रसग  सुनाया गुरु  गोबिंद सिंह  महाराज जी का प्रसग सुनाया एक बार दरबार साहब में बैठे थे गुरु गोबिंद देव जी महाराज बाहर एक व्यक्ति भालू लेकर आया नाच दिखाने के लिए और वह नाच अंदर में दिखाएगा गुरु के सामने सेवादार ने अंदर जाकर गुरु को बताया उन्होंने  कहा आने दो अंदर वह अंदर आया और नाच दिखाने  लगा , 🐻🐻भालू इधर से उधर से  उशल कुद करने लगा अलग-अलग मस्करी करने लगा लोगों का मनोरंजन बहुत हो रहा था पीछे एक सेवादार था जो चरण हिला रहा था उसे, गुरुजी  ने पूछा कि यह कौन है उसने कहा गुरु जी यह भालू है फिर पूछा सेवदार ने  फिर वही जवाब दिया तीसरी बार फिर पूछा तब सेवादार सोच में पड़ गया कि गुरुजी हर बार मुझसे पूछ रहे हैं जरूर कुछ इसमें राज है उसने फिर कहा गुरु जी यह भालू है तब गुरु जी ने कहा यह तुम्हारे पिताजी हैं जिसे तुम देख रहे हो और बहुत खुश हो रहे हो इसके उछल-कूद से तब वह सेवादार हैरान हो गया और कहने लगा गुरु जी आप क्या कह रहे हो मेरे पिताजी को सचखंड में है और वह तो आपके पिताजी की सेवा करते थे प्रसाद की सेवा करते थे फिर वह भला इस भालू के योनि में क्यों आएंगे और अगर गुरु की सेवा करने के बाद भी यह  योनी मिलनी है तो सेवा क्यों करेंगे, फिर  गुरु ने कहा तुम्हारा प्रश्न सही है की गुरु के घर की सेवा करने के बाद भी यह योनी मिल रही है जानवर बनने की इसका कारण है तुम्हारे पिताजी सेवा करते थे बिल्कुल निस्वार्थ सेवा करते थे पर उनके अंदर बहुत गुस्सा था आने वाली साध संगत को बहुत डाटते व चिल्लाते थे और इस बात का ध्यान   साध संगत  ने गुरु के पास शिकायत की थी गुरु ने भी समझाया की साध  संगत में ही भगवान का वास होता है इसीलिए अपनी वाणी पर थोड़ा कंट्रोल करो और शांत रहा करो पर आपके पिताजी गुरु कि ईस बात को नहीं माना एक दिन वह प्रसाद साध संगत को दे रहे थे लंबी लाइन लगी थी बाहर एक गुरु का भक्त बेल गाड़ी में गुड़ लेकर जा रहा था उसने देखा गुरुद्वारा में प्रसाद मिल राह है तो वह उस प्रसाद को ग्रहण करने के लिए गाड़ी खड़ी करके जल्दी-जल्दी अंदर पहुंचा और लाइन में ना लगते हुए आपके पिताजी को कहा कि भाई मेरी गाड़ी बाहर खड़ी है बाहर सामान पड़ा है कोई चोरी कर ना ले जाए ,या कुछ नुकसान ना हो जाए इसलिए
कृपा करके मुझे प्रसाद पहले दे दो ताकि मैं जल्दी चले जाऊं
नहीं तो मैं भी लाइन में लगकर  ही प्रसाद लेता हूं नियम नहीं तोड़ता हूं गुरु के घर का ,
आज मुझे क्षमा करके प्रसाद मुझे पहले दे दो पर आपके पिताजी उसकी बात को नहीं माना और कहा जाकर लाइन में लग जाओ
एक बार फिर उस गुरु के भक्त ने फिरसे कहा भाई मेरी गाड़ी बाहर खडी़ है इधर उधर चली जाएगी तो कुछ नुकसान हो जाएगा मैं गरीब आदमी हूं कृपा करके मुझे प्रसाद पहले दे दो फिर भी आपके पिताजी नहीं माने और उसको डाटने लगे और कहा भालू की तरह इधर से उधर क्यों उशल कूद  कर रहे हो तब उस गुरु के भक्त ने कहा की आपको मैं भालू नजर आता हूं और उसने आपके पिताजी को क्रोध में कह दिया कि मैं तो भालू नहीं हूं पर आप जरूर भालू बनोगे गुरु के सच्चे भक्त कि  वाणी भी  सत्य  होती है  इसलिए आपके पिताजी को चौरासी लाख योनियों में वापस घूम कर भालू की  योनि में आ गए अगर वह गुरु का कहना मानते वाणी को शुद्ध शांत रखते तो यह हाल नहीं होता सेवादार को मन शुद्ध, वाणी शांत रखनी चाहिए,
उन्होंने सेवादार को कहा जाओ भाई अंदर से  प्रसाद ले आओ उन्होंने भालू को खिलाया और कुछ देर बाद वह भालू की मृत्यु हो गई उन्होंने कहा अब यह संचखड में पहुंच गया है इसे आज मुक्ति मिली है , इस प्रसंग से हमें यह शिक्षा मिलती है कि कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए किसी भी पद का या पैसे का घमंड नहीं करना चाहिए और खास कर जो दरबारों से जुड़े हैं जो गुरु की संतों जनो की सेवा करते हैं उनको इस बात का ध्यान रखना चाहिए की भक्तों के अंदर ही भगवान वास करते हैं तो वाणी को निर्मल और शीतल जल की तरह ठंडा रखें मन को साफ रखें सबसे मीठे बोल बोले, क्रोध न करें नहीं तो आपकी जो सेवा है उसका फल तो मिलेगा लेकिन आपके जो कर्म कि  बैलेंस बिगड़ जाएगा,
कार्यक्रम के आखिर में आरती की गई अरदास की गई पल्लो पाया गया प्रसाद वितरण किया गया आए हुए सभी भक्तों के लिए आम भंडारे का आयोजन किया गया बड़ी संख्या में  भक्तो ने आम भंडारा ग्रहण किया इस पूरे कार्यक्रम में सफल बनाने में , मेहड़ दरबार के सभी सेवादारियों का विशेष सहयोग रहा


भवदीय
विजय दुसेजा