क्या भारतीय सिंधु सभा,पूज्य सिंधी  सेंट्रल पंचायत के अधीन  हो गई है ?

विजय की कलम

(संपादकीय)

बिलासपुर:-  सिंधी समाज की सबसे पुरानी संस्थानों में जीसकी गिनती की जाती है भारतीय सिंधु सभा की जो कि लगभग 50 साल पुरानी संस्था है और राष्ट्रीय संस्था है उसकी एक शाखा है बिलासपुर में जैसा कि कहा जाता है कि बिलासपुर  मे भारतीय सिंधु सभा कि शाखा अविभाजित मध्य प्रदेश के समय से बनी है बिलासपुर के ही लोग जाकर रायपुर में भारतीय सिधु सभा की नई शाखा रायपुर का गठन किया था जो बड़े ही खुशी की बात है ओर हमारे लिए गर्व की बात है ऐसी संस्था है जो होनार बच्चों का हर साल सम्मान समारोह आयोजित करती है इसमें सिंधी सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है जब-इस कार्यक्रम कि शुरुआत हुई थी बिलासपुर में
तब कम मात्रा में लोग आते थे क्योंकि उनको पता नहीं था,
भारतीय सिंधु सभा महिला शाखा  के लोग सदस्य घर-घर जाकर पामप्लेट  के माध्यम से लोगों को बताते थे जागृत करते थे ताकि उनके बच्चे पढ़ाई-लिखाई में आगे बढ़े वह हर साल उनका सम्मान हो  स्मृति चिन्ह के साथ प्रमाण पत्र दिया जाता है जो समय गुजरने के साथ-साथ आज भी वह कार्यक्रम होता है जो बिलासपुर की शान है यह कार्यक्रम लेकिन धीरे-धीरे जो इसके पुराने लोग थे कुछ लोग स्वर्गवस  हो गएऔर कुछ लोग वृद्धावस्था में पहुंच गए नए लोग आए और जुड़े अच्छी बात है नई ताकत भी होनी चाहिए और नए लोगों को मौका मिलना चाहिए काम करने का पर पुराने लोगों को इंगोंर करना यह उचित नहीं है?
जैसा कि सूत्रों से  जानकारी मिली कि आज के डेट में भारतीय सिंधु सभा में अधिक सदस्य  सेंट्रल पंचायत के हो गए हैं इसमें वर्तमान अध्यक्ष भी शामिल है और कई पूर्व अध्यक्ष भी हैं धीरे-धीरे संस्था अपना अस्तित्व  खोते जा रही  हैं जो  उसकी पहचान थी जो हमारे शहर की शान थी अब वह एक 👤 के अधीन होते जा रही है क्या यह संस्था के लिए उचित है?
जैसा कि हमें  सूत्रों से जानकारी मिली कि मठाधीश जो बिलासपुर का डांन  कहलाना पसंद करता है वह चाहता है कि जिस तरह  सेंट्रल  पंचायत उसके अधीन है वह  कई वार्ड पंचायत को भी अपने कब्जे में करके रखा है वैसा ही बिलासपुर की कई संस्थाओं को भी अपने अधीन चाहता है क्या यह सही है  ?
जब कोई  संस्था अच्छा कार्य करती है और उनके पास जाती है सहयोग के लिए तब वह कहते हैं कि यह कार्यक्रम हमारे अधीन होना चाहिए या हमारे संस्था को भी पंचायत को भी  शामिल किया जाए, या पार्टनर बनाया जाए ताकि उनका नाम आगे बढ़ जाए कुछ संस्थाओं ने तो उनके हां में हां भरी पर एक ,/ दो  संस्था ऐसी भी है जो इसके कारण उनसे सहयोग लेना या उन्हें बुलाना पसंद नहीं करती है बल्कि अपनी अलग ही राह पर चलती है अपना अलग से सेवा कार्य करती है और आज उस  संस्था का नाम बिलासपुर नगर के बाहर पूरे
छत्तीसगढ़  में  प्रसिद्ध हो चुका है जो अपने दम पर सेवा कार्य कर रही है ऐसे, ऐसे, आदिवासी गांव में जाकर सेवा कार्य कर रही है जहां पर आज तक  जनप्रतिनिधि भी नहीं पहुंच पाए हैं ऐसी संस्था को हम सैलूट करते हैं
पर बाकी संस्थाएं उसके अधीन होती जा रही हैं क्योंकि उन संस्थानों में उनके सदस्य ज्यादा से ज्यादा जुडते
जा रहे हैं इसका उनका पावर बढ़ते जा रहा है आखिर में  जैसा मथाधीश चाहता है वैसा अपने आप ही हो जाता है ,,नाम न छापने की शर्त पर एक सदस्य ने बताया कि जब हम नए-नए जुड़े थे तब हमें सेवा  के कार्य  दिया जाता था और हम तन मन धन से सेवा कर रहे थे आज भी करते हैं पर जब अध्यक्ष की बारी आती थी तो कहते थे सीनियर को मौका दिया जाए वक्त बितता गया जब हम सीनियर बन गए तो जो नए लोग जुड़े उनको अध्यक्ष बना दिया गया ओर कहा गया कि नेय लोगों को मौका दिया जाए अब हम कहां जाएं क्या हमारी सेवा यही है की जी हजूरी करते रहे हां में हां मिलाते रहे क्या यह वरिष्ठ सदस्यों के साथ अन्याय नहीं है जो  20 से 30 साल से जुड़े हुए हैं सेवा कार्य कर रहे हैं पर आज तक उन्हें वह पद नहीं मिला वह गरिमा मेंय स्थान नहीं मिला जो उन्हें मिलना चाहिए यह उचित है किया ?
हमारा उद्देश्य इतना है की संस्था कोई भी हो अपना अस्तित्व बनाए रखना जरूरी है और जिस उद्देश्य के लिए बनी है उस उद्देश्य पर वह आगे बढ़ते जाएं सेवा के कार्यों में राजनीतिक नहीं होनी चाहिए पर जहां पर मथाधीश   जैसे लोग आ जाते हैं वहां पर राजनीतिक अपने आप ही शुरू हो जाती है और धीरे-धीरे यहां पर भी वैसे ही हो रहा है भारतीय सिंधु सभा अपना अस्तित्व  खोते   जा रही है उसको अपना अस्तित्व बचाए रखना बहुत जरूरी है ,इसके लिए जो अभी भी वरिष्ठ सदस्य हैं और जो सच्चे मन से इस संस्था की  सेवा कर रहे हैं वह दिल से कार्य कर रहे हैं उन लोगों को सोचना होगा कि यह राष्ट्रीय लेबल की संस्था है और हमारे बड़ों ने इस संस्था को खून पसीने से सींचा है और बड़ा किया है यह एक संस्था नहीं बल्कि परिवार है और परिवार को संभाले रखना सभी सदस्यों की जिम्मेदारी है मुखिया को भी अपने  उपर अहंकार नहीं होना चाहिए बड़ों का सम्मान होना चाहिए और छोटो को प्यार देना चाहिए पहले एक ही कार्यक्रम होता था प्रतिभा सामान समारोह पर विगत 2 साल से नए अध्यक्ष जब बने हैं एक युवा साथी व बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं और अपनी उर्जा लगाकर संस्था को मजबूत बना रहे हैं और जैसे मैंने कहा ना कहीं ना कहीं ऊपरी दबाव जरूर है और आज वह  संस्था में ऐसे लोग आ गए हैं जो अपनी ही मोनोपोली बनाए रखना चाहते हैं अपना एक सिंडिकेट बनाकर रखा है जिस तरह

( सेंट्रल पंचायत में सिंडिकेट बन चुका है कि पहले अध्यक्ष मैं बनूंगा दूसरा यह बनेगा तीसरा  तू बनेगा )

इस तरह खेल खेला जा रहा है ताकि मठाधीश के मुताबिक कार्य हो सके 💜❤दिल से हर कोई इस बात को स्वीकार करता है पर सामने कोई बोल नहीं पाता है पर वक्त की पुकार यही है अपने घर को बचाना है संस्था का अस्तित्व बनाए रखना है तो चुप्पी तोड़नी होगी अपने हक के लिए बोलना होगा नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब यह संस्था भी मथाधीश  की गुलाम बन जाएगी?
जीन सदस्यों ने इस संस्था का गठन किया था क्या उन्हें याद किया जाता है? क्या उनकी संतानों को  संस्था में सेवा  करने  दी गई ? क्या उन्हें मान सम्मान दिया जाता है  जीसके वे हकदार   है?
आज के नए लोग जो जुड़े हैं उनको पता भी नहीं होगा कि संस्था का गठन किन-किन लोगों ने किया था उनके त्याग और बलिदान को भूल चुके हैं
जब हम अपने बड़ों का आधार संस्कार और त्याग बलिदान को भूल जाते हैं तब पतन शुरू हो जाता है और यहां  पर भी वैसा ही हो रहा है
मैं भी इस   संस्था का कुछ समय के लिए सदस्य था अभी तक 20 सालों से इस संस्था को देख रहा हूं उनके कार्यक्रम कवर कर रहा हूं इसलिए मुझे भी दुख हो रहा है आज   संस्था कि यह  हालात देखकर समय की पुकार यही है सच को जानो समझो बोलो और उसे स्वीकार करो अगर सच में अपनी संस्था को और आगे बढ़ना चाहते हो और उसका पुराना रंग और नाम वापस पाना चाहते हो तो मथाधीश  से मुक्ति जरूरी है?
आप कहते हो कि हम लोगों को जोड़ रहे हैं पर वै उन्ही के सपोर्टर लोग हैं  घूम फिर कर वहीं चार लोग 10 संस्थानों में कई पंचायतों में और  सेंट्रल पंचायत में देखने को मिल जाते हैं वे नये कहां से हो गए बिलासपुर सिंधी समाज में और लोग नहीं है किया?
यां  सिर्फ पैसे को देखकर लोगों को जोड़ा जा रहा है?
या मथाधीश  के इशारे पर यह सब किया जा रहा है?
ताकि इसका फ़ायदा 2025  के  सेंट्रल पंचायत के चुनाव में उठाया जाए ?
यह सोचने वाली बात है हमारा काम है  सच का आइना दिखाना और लोकतंत्र को मजबूत करना और हर संस्था में जब लोकतंत्र मजबूत नहीं होगा तब वह  संस्था  कोई काम की नहीं सिर्फ दिखावे की रह जाती है
अभी भी वक्त है उठो आगे बढ़ो और सच के लिए लडो अपनी संस्था  को आजाद संस्था बनाओ समाज हित के लिए जीस  संस्था का गठन किया गया था उन  कार्यो को और आगे बढ़ाओ और मथाधीश के चैले चपाटियों से इस संस्था  को मुक्त कराओ  ?


भवदीय
विजय दुसेजा