क्या सिंधी समाज अपनी संस्कृति से कट गए हैं ? इसलिए पंथों  में बट गए हैं  ?

विजय की कलम

(संपादकीय)


विश्व की सबसे पुरानी संस्कृति जो है वह है सिंधी समाज  की संस्कृति मोहन जो दड़ो की संस्कृति भारत की संस्कृति 5000 साल पुरानी है वह हमारी संस्कृति है,
जो वैज्ञानिक आज नये आविष्कार कर रहे हैं वह सब कुछ उस समय पहले ही हमारे पूर्वजों ने किया था जिसे मोहन जो दड़ो कहा जाता है ऐसी संस्कृति व ऐसे समाज के हम जुड़े हुए व्यक्ति है और हम बड़े खुशनसीब हैं कि हम भगवान झूलेलाल के वंशज हैं हमारी संस्कृति सबसे पुरानी और लोगों को राह दिखाने वाली है पर जैसे-जैसे वक्त बितता गया, समय निकलता गया कलयुग का प्रभाव बढ़ता गया और विज्ञान भी नऐ-नऐ अविष्कार करके प्रगति करता गया नई पीढ़ी भी आती गई और देश का बंटवारा भी हो गया जिस तरह अंग्रेजों ने फूट डालो और राज करो की नीति अपनाई वह हमारे इतिहास को हमारी संस्कृति को खत्म करने की कोशिश की उसका नतीजा आज सबके सामने है बंटवारे के बाद भी 75 साल से अधिक हो गए हैं हमें अपनी संस्कृति से व अपने इतिहास से दूर रखा गया जो हमारे पूर्वज थे देश बंटवारे के बाद भारत आए लेकिन उन्होंने भी अपनी संस्कृति अपने तीज त्यौहार को नहीं भूले, काम किया, मेहनत की, पैसा कमाया पर धीरे-धीरे जो नई पीढ़ी आते गई वह सिर्फ धन कमाने में ही लगी रही और अपनी विरासत, अपना खान-पान, अपना रहन-सहन, अपने तीज तयोहार और अपनी संस्कृति को भुलते गई जिसका नतीजा समाज आज पंथो में बट गया है आज हमारे देश में जितने भी धर्म है , जितने भी गुरु हैं उनमें सर्वाधिक सिंधी समाज के ही लोग  फॉलोवर वह  शिक्षय  हैं जो अनेक अलग – अलग गुरु ओं की दिक्षा गृहण किये है और अन्य समाज के लोग सिंधी समाज के गुरुओं से दिक्षा लेना कतई मुनासिफ नहीं समझते है अगर होंगे भी तो उनका अनुपात गिनती में नहीं कै बराबर  के होंगे पर सिंधी समाज के लोग अन्य पंथो के गुरुओं में जाकर  बैठ गए व अपनी संस्कृति को भूल गए जिसका नतीजा  आज यह है कि हमें व हमारे आने वाले जो संत महात्मा हैं अलग-अलग शहरों से आते हैं बार-बार एक ही बात से प्रभावित करते  हैं कि अपने इष्ट देव भगवान झूलेलाल को मत भूलो, बड़े आश्चर्य की बात है किसी भी धर्म के लोग किसी भी धर्म के संत अपने ईष्ट देव भगवान के लिये ऐसा नहीं बोलते पर सिंधी समाज के संत बोलते हैं अपने समाज के लोगों को जागृत करने के लिए, समझाने के लिए, क्यों?
क्योंकि हमारा समाज अपनी संस्कृति को भूल गया है इसलिए पंथों में बट गया है भेड़ बकरियों की तरह सिर्फ  झुंड  में आगे चलते जा रहे है चलते जा रहे है, वह राह कहां जाएगी ? कोई मतलब नहीं क्यों जा रहे हो, बस आगे  जा रहे  है तो उसमें साथ  जुड़कर आगे बढ़ते जा रहे हैं इससे कितना नुकसान हुआ है हमारे समाज का, अपने परिवार का कभी किसी ने सोचा है ?
नहीं सोचा है, क्यों ? क्योंकि उन्हें पैसा कमाने से फुर्सत नहीं और अब वह इतना आगे निकल गया हैं की पिछे मुड़ के देखना नहीं चाहते हैं गुरु और इष्ट देव में फर्क होता है यह भी उन्हें समझ में नहीं आ रहा है व समझना नहीं चाहते हैं?
हम आने वाली पीढ़ी को क्या देकर जायेंगे ? कभी किसी ने सोचा है ?अपना पहनावा छोड़ दिया, अपना खान-पान भूल गए, अपनी संस्कृति को भुला दिया, अपनी भाषा को भी आप धीरे-धीरे खत्म करते जा रहे हैं तो क्या बचेगा आपके पास ? सिर्फ पैसा ?
एक बात हमेशा याद आती है किसी भी धर्म को या समाज को खत्म करना है तो सबसे पहले उसकी संस्कृति पर वार करो और अन्य धर्म के लोभियों ने यही कार्य किया हमारे सनातन धर्म व हमारी संस्कृति पर वार किया इसका नतीजा धर्मांतरण दिनों दिन बढ़ता जा रहा है विदेशी  संस्कृति हमारे ऊपर हावी होती जा रही है  खान-पान, कपड़े ,वहां के गीत संगीत सब हमारे ऊपर हावी हो रहे हैं इसका प्रमुख कारण एक ही है कि हम लोग अपनी संस्कृति से दूर जा रहे हैं, अपने भगवान को भूलते जा रहे है इस कारण धीरे-धीरे पतन की राह पर आगे बढ़ रहे है अभी भी वक्त है संभल जाओ लौट के आओ क्योंकि दोबारा अवसर नहीं मिलेगा,

( एक हो तो सेफ हो)

और अपनी संस्कृति से वापस जुड़ जाओगे तो मजबूत बन जाओगे
वरना डूबना पड़ेगा और कटना पड़ेगा अब सोचना आपको है कि क्या करना है.

(एक रहना है, सेफ रहना है अपनी संस्कृति से जुड़ना है )

भवदीय
विजय दुसेजा