सिंधी कॉलोनी मनोहर टांकीज के पीछे जूना बिलासपुर में होली का दहन किया गया वहां कि सिंधी समाज कि महिलाओं के द्वारा होलिका दहन के दिन परंमपरा हैं जो सिंध से चली आ रही है

उस परंमपरा को कायम रखते हुए आज भी गोबर के छैने से छोटी होली बनाते हैं और शक्कर गुड़ का बना हुआ मीठी कोकी के ऊपर धागा बांधते हैं पतला और उसको जो छोटी होली है उसमें पकाते हैं उनकी मान्यता है कि उनकी कोकी पक जाती है पर धागा नहीं जलता है और यह सच भी है पूरी कोकी पक जाती है पर धागा नहीं जलता इसका कारण वह बताते हैं कि जो धागा है

वह भक्त प्रहलाद है, यह त्यौहार बुराई पर सच्चाई और भक्ति की जीत का प्रतीक है होलिका को अग्नि में न जलने का वरदान था फिर भी वह जल गई और भक्त प्रहलाद की भक्ति और ईश्वर प्रेम की जीत हुई,
सब लोग जब अपने-अपने कोकी बना लेते हैं तब सब लोग उसको एक बर्तन में रखकर अपने सिर पर उठाकर होलिका के चारों ओर चक्कर काटते हैं भजन कीर्तन करते हुए अंत में होलिका माता से सुख शांति के लिए प्रार्थना की जाती है पल्लो पाया जाता है और प्रसाद वितरण किया जाता है आज के इस पूरे आयोजन में बड़ी संख्या में समाज कि महिला उपस्थित थी

जीनमे प्रमुख हैं,मिना सिदारा,मोनिका सिदारा,गुंजन दुसेजा,भारती दुसेजा, भारती सिदारा,रेखा सिदारा,कृपा सिदारा, वंशिका ,रति, काजल, पुष्पा, पलक ,लक्ष्मी वाधवानी, पलक भोजवानी ,कुसुम गोदवानी, प्रिया सिदारा,माया,दिपा सिदारा, दिव्या साधना, इशिका सिदारा