सतगुरु बाबा थावार दास साहेब जी का 244 वां ” अवतंरण दिवस देश भर में श्रद्धा भक्ति के साथ मनाया जा रहा है इसी कड़ी में बाबा थावर दास साहिब दरबार तोरवा बिलासपुर में भी तीन दिवसीय जन्म उत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया गया 23 मइ से 25 में तक जिसकी शुरुआत 23 मई को संध्या 6:00 बजे श्री अखंड पाठ साहब श्री सुखमणि पाठ साहब श्री वाहेगुरु नाम जब अखंड आरंभ हुआ दादी साहिबा जी के सानिध्य में श्री संत नारायण सांई जी के नेतृत्व तत्व में 7:00 बजे आरती की गई प्रसाद वितरण किया गया 8:00 बजे भक्ति मय संगीत मय भजन कीर्तन का आयोजन किया गया इस अवसर पर कटनी से आकाश म्यूजिकल पार्टी के द्वारा शानदार भक्ति मय कार्यक्रम की सुंदर प्रस्तुति दी

एक से बढ़कर एक भक्ति भरे भजन व गीत गाए जिसे सुनकर उपस्थित भक्त जन झूम उठे कार्यक्रम में संत नारायण सांई जी के द्वारा बाबा थवरदार साहब जी के 244 वै अवतंरण “दिवस की सभी भक्तों को बधाइयां और शुभकामनाएं दी वह कहा आज का दिन बड़ा ही शुभ है क्योंकि आज एकादशी है और 15 दिन में एक बार एकादशी आती है तो एकादशी का महत्व क्या है उन्होंने बताया वह एक कथा के माध्यम से समझाया भी एकादशी का महत्व बहुत बड़ा है अगर आप लोग समझ गए और इसपर अमल करोगे तो बहुत इसका लाभ है उन्होंने सत्संग में फरमाया कि जब कोई भी शुभ कार्य हो तो समझो यह श्री हरि की कृपा है और अगर कोई कार्य नहीं हो तो समझो यह प्रभु श्री हरि की इच्छा है इस गुरु मंत्र को अगर आप समझ जाओगे तो कभी भी जीवन में दुखी नहीं रहोगे

उन्होंने एक ज्ञानवर्धक कथा सुनाई एक गांव था रामपुर जिसमें एक परिवार था,
रामू का उसके देहांत के बाद गोविंद ओर उसके सात भाई थे माता-पिता चल बसे थे गोविंद सबसे छोटा भाई था 6 भाइयों की शादी हो चुकी थी 6 भाइयों ने अपनी अपनी पत्नियों से कहा कि हमारे माता-पिता चल बसे हैं और सबसे छोटा भाई हमारा गोविंद है इसे हमारे माता-पिता ने बड़े ही लाड प्यार से पाला है तो हम भी चाहते हैं कि इसे कभी भी कोई भी दुख तकलीफ ना हो इसलिए हम इसे कोई काम नहीं देते हैं इसका मन पड़े तो काम करें ना पड़े तो कोई बात नहीं तो तुम भी इसे कोई काम मत बोलना अपने मर्जी से कुछ करना चाहे तो करें ना करें तो कोई बात नहीं गोविंद प्रत्येक दिन को 12:00 बजे दोपहर को ओर रात्रि 8:00 बजे 2 किलो 500 ग्राम अनाज खाता था छह भाइयों की पत्नियां भी समझ गई और गोविंद को कुछ नहीं बोलती थी प्रतिदिन वह 12:00 बजे जाकर बैठ जाता था और खाना भाभी देती थी यह सिलसिला चलता रहा एक दिन 12:00 बज गया भाभियों ने आवाज नहीं दी 12:30 बज गया 1:00 बज गया यह उठकर गया बड़ी भाभी के पास और का भाभी आज क्या बात है 1:00 बज रहा है अभी तक मुझे खाना नहीं मिला है मुझे भूख लग रही मुझे खाना दो तो बड़ी भाभी ने कहा गोविंद तुम काम तो करते नहीं हो और टाइम से खाना मांगते हो और दिवाली का समय चल रहा है हम सभी साफ सफाई कर रहे हैं खाना नहीं बना है और किसी ने भी खाना नहीं खाया है जब खाना बनेगा सबसे पहले हम तुम को देंगे गोविंद बड़ी भाभी के रूम से निकल कर सभी भाभियों के पास गया और सभी का एक ही जवाब मिला आखिर में गोविंद घर से निकल कर खेत की ओर धीरे-धीरे पहुंचा , भाई खेत में काम कर रहे थे सारी बात बताई भाइयों को तो भाइयों ने कहा भाई गोविंद दिवाली का समय चल रहा है तो सब साफ सफाई में बिजी है ईस लिए खाना नहीं बना है लेट हो गई है कोई बात नहीं हम लोगो ने भी खाना नहीं खाया है तुम एक काम करो हमारा हाथ बटाओ और संध्या घर 🏡पर चलकर एक साथ खाना खाएंगे पहले तुम खाना बाद में हम खाएंगे गोविंद ने सोचा यह तो मुसीबत हो गई मेरे लिए , तो गोविंद खेत से निकल कर चलने लगा घर की ओर सोचा अब तो खाना वहीं पर मिलेगा रास्ते में धूप तेज थी और पेट में अन्न का दाना भी नहीं था तो चकरा कर गिर गया उसी रास्ते से एक संत मंडली साधुओं की तीरथ धाम यात्रा करके पैदल आ रही थी रास्ते में देखा एक युवक गिरा पड़ा है

उन्होंने करमंडल से जल निकालकर उसके ऊपर छिड़का और वह होश में आ गया और जब गोविंद ने देखा तो सामने साधु और संत महात्मा खड़े उन सब से कहा मुझे खाना दो खाना दो खाना दो साधुओं ने पूछा क्या बात है भाई तो उन्होंने पूरी कहानी बताई तो उसने कहा ठीक है अब तुम उठ गए हो चले जाओ घर जाकर खाना खा लो तो गोविंद ने साधुओं के पांव पकड़ लिया और कहा तुम जा रहे हो मुझे ऐसे ही छोड़कर और फिर मैं कहीं रास्ते में गिर जाऊंगा मर जाऊंगा तो उसका पाप आपको लगेगा साधु ने कहा यह तो अच्छा हमारे गले फस गया ,भाई हमने तो आपको होश में लाया है पानी डालकर आपकी जान बचाई और यह हमें की पाप का भागीदार बनना चाहता है साधुओं ने कहा कि हम क्या करें, गोविंद ने कहा मुझे भूख लगी है खाना दो साधु ने कहा भाई हम तीरथ धाम यात्रा करके आ रहे हैं हमारे पास कुछ नहीं है फल फ्रूट है बोलोगे तो दे दे गोविंद ने कहा नेकी और पुश पुश जल्दी दो मुझे भूख लगी है सभी ने सारे फल वह प्रसाद जो भी था गोविंद को दे दिया जल्दी-जल्दी फटाफट खाने लगा केले का छिलका भी नहीं ह उतारा ऐसे खाने लगा साधु ने कहा कम से कम छिलका तो उतार दो गोविंद ने कहा मैं 2 किलो 500 ग्राम अनाज खाता हूं उस हिसाब से यह फल अढाई किलो से कम है तो छिल्का उतारूंगा तो और कम हो जाएगे, खाने के बाद पानी पी के थोड़ा, आराम आया साधु लोग अब जाने लगे तो गोविंद जी ने फिर से साधु का पांव पकड़ लिया अब क्या हो गया गोविंद ने कहा अभी तो तुमने मुझे फल दिए खा लिया मैंने अब कल का मेरा क्या होगा कल अगर मेरे घर में फिर ऐसे ही हाल होगा मेरी भाभी खाना नहीं बनाएंगे और फिर मैं रास्ते में बेहोश हो जाऊंगा मर जाऊंगा तो उसका पाप आपको लगेगा, साधुओं ने कहा तो हम क्या करें ,

गोविंद ने कहा कल के लिए भी मेरी🍎 व्यवस्था करके जाओ साधुओं ने सोचा इसने तो हमें अच्छा फंसा दिया साधु ने कहा देख भाई हम तुम्हारे घर में जाकर रह नहीं सकते हैं अगर तुम चाहोगे तो तुम्हारे भैया भाभी को हम बोल दे और नहीं तो तुम चाहो तो हमारे आश्रम चलो वहां पर नियम से 12:00 बजे खाना दोपहर का और रात का 8:00 बजे खाना मिल जाता है सुबह आरती पूजा और प्रभु को भोग लगाने के बाद, गोविंद ने कहा पहले मुझे वचन दो कि कभी मुझे तुम भूखा नहीं मारोगे और 12:00 बजे और रात्रि 8:00 बजे खाना मिलेगा और मैं कुछ काम नहीं करूंगा साधुओं ने कहा ठीक है भाई हम तुम्हें वादा करते हैं चलो गोविंद पहुंचा आश्रम में सुबह आरती पूजा के बाद 12:00 बजे ठीक खाना दोपहर का चालू हो जाता था तो गोविंद जाकर तुरंत पहले पंक्ति में बैठ जाता था खाने के लिए कुछ दिन बीत गए एक बार साधु ने कहा भाई गोविंद तुम रोज खाना खाते हो लेकिन काम नहीं करते हो आश्रम में रहते हो तो भाई कुछ तो काम करो गोविंद ने कहा मुझे तो कुछ आता ही नहीं मैं क्या करूं तो साधु ने कहा भाई तुम झाड़ू निकाल सकते हो पोछा लगा सकते हो पेड़ों में पानी दे सकते हो जो तुम्हें आच्छा लगे करो, गोविंद ने कहा का ठीक है जो मुझसे बंन पड़ेगा मैं करूंगा लेकिन मेरे ऊपर जबरदस्ती मत करना साधु ने कहा ठीक है तो गोविंद कभी पानी देता पेड़ों में कभी झाड़ू पोछा लगा देता था अपने हिसाब से दिन बीतते गए , 15 दिन बीत गए और फिर से एकादशी आ गई उस दिन 12:00 बज गए 1:00 बज गया गोविंद ने देखा तो मुझे खाना तो मिला नहीं अभी तक गया देखने रुम में तो ताला लगा हुआ है खाने वाले रूम में किचन में गया और पूछा जो खाना बनाता है रसोईया से भाई आज खाना क्यों नहीं बनाया है 1:00 बज गया है मुझे भूख लग रही है गोविंद ने कहा, रसोई ने कहा एकादशी
है आज के दिन खाना नहीं बनता है गोविंद ने कहा
तो मैं क्या करूं मुझे तो खाना दो और रसोईया ने समझाया भाई एकादशी के दिन उपवास रहता है खाना नहीं बनता है दूसरे दिन सुबह पूजा पाठ करके खाना खाते हैं और तुम जाओ हमें माला जपने दो प्रभु का सिमरन करने दो , तुम जाकर संत जी से बात करो , गोविंद संत जिसके पास पहुंचा और कहां आज खाना नहीं बना है मुझे खाना चाहिए संत जी ने कहा भाई गोविंद आज एकादशी है उपवास है और आज खाना नहीं बनता है गोविंद ने पूछा उपवास क्या होता है उपवास को कहां रखूं मैं उठा कर बताओ संत ने कहा उपवास को उठाने की चीज नहीं है आज एकादशी है भगवान श्री कृष्ण का दिन है और इस दिन हम सब भक्ति करते हैं नाम जपते हैं और संध्या को कीर्तन करते हैं सारी रात दूसरे दिन नहा धोकर पूजा पाठ कर कर फिर खाना खाते हैं गोविंद ने कहा यह सब मेरे से नहीं होगा आपने वादा किया था मुझे 12:00 बजे खाना मिलेगा तो मुझे खाना दो संत सोच में पड़ गए अब क्या करें उन्होंने कहा भाई हम अपना नियम नहीं तोडेंगे अगर टूटेगा तो गड़बड़ हो जाएगी , यहाँ खाना बनेगा , तुम एक काम करो राशन और सामान बर्तन ले लो जंगल में तालाब के पास नदी के पास अपना खाना बनाओ और वही खा लो फिर नाह धोकर यहां आ जाना ठीक है भाई अब मरता क्या ना करता रसोईघर गया और रसोईया से आनाज लिया एक टाइम का सामन उठाए जाने लगा और संत जी के पास पहुंचकर आशीर्वाद लिया संत जी ने कहा एक बात सुनो गोविंद तुम जा रहे हो खाना बनाओगे खाने से पहले प्रभु को भोग लगा देना गोविंद ने कहां यह मेरे से नहीं होगा एक तो वैसे ही लेट हो गई है फिर जंगल जाऊं खाना बनाऊ फिर प्रभु को भोग लगाओ और मैं बाद में खाऊं, प्रभु अगर पूरा खाना खा लेंगे तो मैं क्या खाऊंगा तो संत जी ने कहा भाई भगवान खाना नहीं खाएगे वह भाव के भूखे होते हैं गोविंद ने कहा मैं ऐसा कुछ नहीं जानता अगर वह मेरा खाना खा लिया तो मैं क्या खाऊंगा संत जी ने कहा तुम क्या चाहते हो गोविंद ने कहा तुम भगवान का भी खाना दो मुझे अनाज दो तब मैं उसका भी खाना बना दूंगा और डबल राशन लेकर चल पड़ा जंगल की ओर जंगल में एक नदी के पास पहुंचकर लकड़ी इकट्ठा करके जलाकर जैसे खाना बनाया और बर्तन में डाल कर जैसे ही पहले निवाला उठकर मुंह में डालने वाला था वैसे ही उसे अपने गुरु की बात याद आ गई की मुझे भगवान को भोग लगाना है उन्हें बुलाना है उन्होंने वापस रखा निवाला और हाथ जोड़कर भगवान कृष्ण को प्रार्थना की है प्रभु खाना तैयार आए और इसे ग्रहण कीजिए गोविंद की पुकार कृष्ण ने सुन ली और तुरंत पहुंच गए वहां पर खाने के लिए यह देखकर गोविंद हैरान हो गया गुरुजी ने कहा था कि प्रभु खाना खाते नहीं है वो तो भाव के भुखे है यहाँ तो आ गए खाने के लिए तो अब मैं क्या खाऊंगा उसने कृष्ण से कहा मुझे तो गुरु ने कहा था कि प्रभु तो खाते नहीं है वह तो भाव के बुखे है खाना खाते नहीं है तुम तो यहां पहुंच गए खाना खाने के लिए अगर तुम यह खा लोगे तो मैं क्या खाऊंगा तो प्रभु ने कहा गुरु ने तुम्हें मेरे लिए भी खाना दिया था तो तुम मुझे मेरा खाना दे दो और तुम अपना खाना खा लो,


गोविंद ने कहा आप बहुत होशियार हो पूरी बात आपको पता है इसका मतलब आप चुप चाप हमारी बात सुन रहे थे प्रभु मुस्कुराने लगे चिंता मत करो जितना खाना है तुम खा लो मैं सिर्फ एक अन् दाना भी नहीं लूंगा मैं तो सिर्फ तुम्हारी परीक्षा ले रहा था बेटा चिंता मत करो मेरा पेट भर गया है और अपने गुरु को कहना कि मैंने खाना खाया खा लिया है इस कहानी का तात्पर्य यह है कि जो संत दिन-रात पूजा अर्चना करते थे उनको प्रभु के दर्शन नहीं हुए लेकिन एक ऐसे व्यक्ति को प्रभु को दर्शन हो गए जिसने कभी भगवान की पूजा अर्चना भी नहीं की थी बस कुछ क्षण के लिए उन्होंने अपने सच्चे मन से प्रभु को पुकारा था और प्रभु उसके पास पहुंच गए इसका मतलब यह है कि अगर सच्चे मन से आप भगवान का नाम जपते हो उन्हें पुकारते हो तो किसी न किसी रूप में भगवान आपके पास जरूर आएंगे आपके दुख दर्द जरूर दूर करेंगे,

कार्यक्रम के आखिर में आरती की गई अरदास कि पल्लव पाया गया प्रसाद वितरण किया गया आम भंडारा का आयोजन किया गया बड़ी संख्या में भक्तों ने भंडारा ग्रहण किया आज के इस प्रथम दिन कार्यक्रम को सफल बनाने में बाबा थावर दास सेवा समिति बिलासपुर के सभी सदस्यों का विशेष सहयोग रहा इस कार्यक्रम को कवर करने के लिए हमर संगवारी के प्रधान संपादक विजय दुसेजा विशेष तौर पर पहुंचकर कार्यक्रम को कवर किया