आलेख- राजेन्द्र अग्रवाल राजू
बिलासपुर । श्री अग्रसेन जी का जन्म एक छोटे से राज्य प्रतापपुर के राजा श्री वल्लभ सेन एवं भगवती रानी के यहां आज से 5177 वर्ष पूर्व हुआ था। बालक से ही वह मेधावी कुशाग्र बुद्धि और क्षत्रिय गुण से समृद्ध शूरवीर पराक्रमी थे। छत्तीसगढ़ प्रांतीय अग्रवाल संगठन के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष राजेंद्र राजू अग्रवाल ने बताया कि महाभारत के महाविनाशकारी युद्ध में पिता बल्लभ सेन के स्वर्ग सिधार जाने के पश्चात प्रतापपुर में छल से चाचा कुंदनसेन ने राज्य हथिया लिया। तब अग्रसेन गुरु गार्गी से शिव आराधना की दीक्षा लेकर शिवजी को पूजन अभिषेक से प्रसन्न कर फिर से राज्य प्राप्त करने का वरदान प्राप्त कर प्रतापपुर के राज्य सिंहासन पर आरुण हुए। राज्याभिषेक के शुभ अवसर पर पांडवों के साथ भगवान श्री कृष्णा आमंत्रित थे।राज्य अभिषेक के पश्चात श्री कृष्ण ने अग्रसेन से कहा है हे वीर पराक्रमी अग्रसेन महाभारत के भीषण युद्ध के परिणाम स्वरुप कुरुक्षेत्र के आसपास का पूरा क्षेत्र लगभग वीरान सा हो गया है। छोटे-बड़े सभी राज्यों के शासन अध्यक्ष मारे जा चुके हैं। राज्यों

में केवल महिलाएं, बुजुर्ग एवं बच्चे ही रह गए हैं , इनका कोई संरक्षक नहीं है। इधर पांडव भी युद्ध की भीषणत्रासदी से इतनी शोक संतृप्त है कि राज्य संचालन में उनकी रुचि ही समाप्त हो गई है। इसलिए अग्रसेन तुम वीर पराक्रमी कुशाग्र बुद्धि के सत्य और अहिंसा के पक्षधर होने के साथ ही दान दया करुणा के विशिष्ट लक्षण भी मैं तुम्हारे अंदर देखता हूं । अतः मेरा मत है कि तुम कुरुक्षेत्र के आसपास के सभी राज्यों को संरक्षण और अभय प्रदान करो। यह तुम जैसे राजा के लिए सर्वदा उपयुक्त ही होगा। श्री कृष्ण के इस परामर्श को अग्रसेन ने उनका आशीर्वाद के रूप में शिरोधार किया और C उसे पूरे क्षेत्र में प्रत्येक राज्य में जा जाकर उन्हें धैर्य प्रदान किया। उन्हें हिम्मत देने के साथ आश्रय प्रदान किया सभी राज्य को एक सूत्र में बांधकर एक ध्वज के नीचे लाया। उन्हें सनातन संस्कृति के अनुरूप राजनीति और धर्म नीति का पाठ पढ़ाया। वे सभी अग्रसेन का आश्रय पाकर स्वयं को भय मुक्ति पाकर खुशी-खुशी अपने राज्य का प्रभार महाराजा अग्रसेन जी को सौंप दिया ।