देश :- सच्ची कविता सब कुछ कह देती है चंद शब्दों मेंआज विशाखापटनम की हिंदी साहित्य संस्था सृजन ने सदस्यों की काव्य रचनाओं पर अपने 164 वें कार्यक्रम के रूप में साहित्य चर्चा का ऑनलाइन आयोजन किया। सृजन के रचनाकारों ने विविध विषयों पर अपनी अपनी कविताएं प्रस्तुत की जिस पर सदस्यों द्वारा विस्तृत चर्चा की गई। इस मासिक साहित्य कार्यक्रम में डॉ टी महादेव राव, सचिव सृजन ने आयोजन के विषय में चर्चा की। उन्होंने कहा सच्ची कविता कम शब्दों में बहुत कुछ प्रभावी ढंग से कह देती है। कार्यक्रम का आरंभ भागवतुला सत्यनारायण मूर्ति के स्वागत भाषण से हुआ। उन्होंने लंबे समय बाद जुड़े वरिष्ठ सदस्य वीरेंद्र राय (पंजाब) और नई सदस्या डॉ वंदना काले (रायपुर) का परिचय देते हुये आमंत्रित किया। श्री मूर्ति ने संस्था की गतिविधियों और क्रियाशीलता पर अपनी बातें रखी। उन्होंने बताया हिंदीतर क्षेत्र में हिंदी साहित्य की अलख जगाने को प्रतिबद्ध यह संस्था लंबे समय से इस क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रही है। कार्यक्रम का संचालन नीरव कुमार वर्मा, अध्यक्ष, सृजन ने सफलतापूर्वक किया। कार्यक्रम की शुरुआत हुई महाकवि निराला जी की सरस्वती वंदना से जिसे प्रस्तुत किया जयप्रकाश झा ने। सबसे पहले एसवीआर नायडू (विशाखापटनम) ने हास्य रचना शराबी सुनाई जिसमें शराबी व्यक्ति के खयालों से उत्पन्न हास्य था। डॉ मधुबाला कुशवाहा (विशाखापटनम) ने मैंने जीना सीख लिया है में जीवन के संघर्ष और उससे मिलती सफलता को कविता के माध्यम से बखूबी प्रस्तुत किया। बी एस मूर्ति (विशाखापटनम) ने कटु सत्य कविता में बदलते हुये परिवेश और पाश्चात्य मानसिकता पर तुलनात्मक संदर्भों में कविता सुनाई। जयप्रकाश झा (दुर्गापुर पश्चिम बंगाल) ने मिथिला भूमि की महानता पर प्रभावी गीत प्रस्तुत किया मिथिलपुर की भूमि, जिस पर सीता जैसी महान विभूतियों का जन्म हुआ। भारती शर्मा (विशाखापटनम) ने मेरा साथ शीर्षक अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत की – रह रहकर हमने अपनों से बात की है। एल चिरंजीव राव (चेन्नई) ने मेरा साथ शीर्षक प्रभावी ग़ज़ल में हालातों की बातें की है जब भी हो ज़रूरत हर बार मुलाक़ात की है। डॉ के अनीता (विशाखापटनम) ने अनुभवों से सीखते जीवन के पाठ और कर्मों के प्रति निष्ठा की बात अपनी कविता जीवन की पाठशाला में सुनाई। पारस नाथ यादव (भरूच, गुजरात) ने अपनी कविता बालपन में निश्चिंत जीवन के आरंभ की स्थितियों और भोलेपन को बचपन को प्रतीक बनाकर प्रस्तुत किया। डॉ शकुंतला बेहुरा (भूबनेश्वर, ओड़ीशा) ने बरगद का पेड़ कविता में बरगद को प्रतीक बनाकर जीवन की विविध विसंगतियों को प्रभावी रूप में प्रस्तुत किया। सीमा वर्मा (हैदराबाद) ने स्त्री के जीवन को तथा परिसरों को प्रतीक बनाके सशक्त रचना के रूप में अपनी कविता त्याग और समर्पण पढ़ा। वीरेंद्र राय (चंडीगढ़, पंजाब) ने दो छोटी रचनाएँ बेवफा और ग़ज़ल सुनाई जिसमें कल्पना से झूझता और यथार्थ से संघर्षरत मनुष्य की भावनाओं का लेखा जोखा था। राम प्रसाद यादव (विशाखापटनम) ने वर्तमान परिवेश में कुंठित और असत्य पर टिकी प्रवृत्तियों पर जीते लोगों के बारे में विभिन्न प्रतीकोण के माध्यम से कटाक्ष करती मर्मस्पर्शी कविता आज बचेंगे तो कल सहर देखेंगे का पाठ किया। पुराने समय की मधुर स्मृतियां, आँगन में धूप एयर बैठी बतियाती महिलाए, धूप में आचार बनाने जैसी बातों के आज के समय में अभाव को मीना गुप्ता (बेंगलोर) ने अपनी रचना घरों में झांकती धूप में बखूबी प्रस्तुत किया। डॉ टी महादेव राव (विशाखापटनम) ने बंधन सपनों का में विविध बिंबों को जीवन की रफ्तार से जोड़कर लिखी कविता पढ़ी जो सपनों से होते हुये जागते जीवन पलों की प्रस्तुति रही। निशिकांत अग्रवाल ( जयपुर राजस्थान) ने सृजन की सक्रियता और समर्पण की बात कही। उन्होंने शिक्षा और रोजगार के लिए घर से अलग हो दूर जाते लोगों के हृदय का दर्द अपनी दो मुक्तकों में बखूबी प्रस्तुत किया। नीरव वर्मा (विशाखापटनम) ने सवेरे का सूरज कविता में सूरज, चाँद और तारों को प्रतीक बनाकर मानवीय संवेदनाओं, स्थितियों और अनुभूतियों को प्रभावी अभिव्यक्ति दी। सामाजिक विषमताओं पर, बदलते परिवेश पर मानव व्यवहार की कविता विनिमय का अर्थशास्त्र का पाठ किया।
इस कार्यक्रम में डॉ वंदना काले (रायपुर छतीसगढ़), बुककूरु वेंकट राव (विशाखापटनम) ने भी सक्रिय रूप से भाग लिया। सारी रचनाओं पर चर्चा हुई और सभी ने काव्य साहित्य चर्चा को उपयोगी, प्रेरणास्पद और स्तरीय लेखन का उदाहरण बताया और कहा इस तरह के कार्यक्रमों से लिखने की प्रेरणा और उत्साह मिलता है। कार्यक्रम का समापन सीमा वर्मा के द्वारा की गई कार्यक्रम की संक्षिप्त समीक्षा और धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।
डॉ टी महादेव राव, सचिव सृजन , विशाखापटनम