थदड़ी माता हमारी बीमारियों से रक्षा करती है

किसी भी धर्म के त्यौहार, भाषा, संस्कृति ही उसकी पहचान होती है जिसे लोग उत्साह विश्वास के साथ मनाते हैं ऐसा ही सिंधी समुदाय का पर्व है थदड़ी ऐसी मान्यता है कि थदडी़ माता मौसमी बीमारियों से बचाव करती है। बारिश में कई बीमारियां होती हैं साथ ही शरीर के तापमान को कम करने के लिए शरीर को ठंडा रखने के लिए भी थदड़ी पर्व मनाया जाता है। इसे बासेड़ा,सताऐ भी कहते है।

एक दिन पूर्व खाना बनाया जाता है जिसे दूसरे दिन उसे खाया जाता है अर्थात ठंडा खाना खाया जाता है जिसमे कूपड़,कोकी,सूखी तली हूई सब्जियां आलू करेला भिंडी दही बड़े व मैदा, शक्कर , इलायची ,मोरन डालकर बनाया गई ढीकरी,गज तैयार किए जाते हैं। रात्रि को खाना बनाकर अग्नि की पूजा की जाती है। उसे ठंडा किया जाता है जिसमें दूध ,गुड़ और कच्चे चावल का प्रयोग किया जाता है दूसरे दिन मौन रहकर नहाकर सुबह गैस साफ करके उसे टीका लगाया जाता है और पूरा दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता। दूसरे दिन ठंडा खाया जाता है। और एक छोटी रोटी माता के स्वरूप में बनाकर उसमें 21 बिंदु( टीका )लगाया जाता है ।शीतला माता का आह्वान किया जाता है ऐसी मान्यता है कि थदडी़ मां कि अराधना से त्वचा संबंधी सभी बीमारियां ठीक होती हैं।

थदडी़ माता (शीतला माता) से प्रार्थना की जाती है सबको स्वस्थ, खुश और समृद्धि रखें खास का बच्चों के लिए उन्हें शीतलता प्रदान करें क्योंकि बारिश में चेचक की बीमारी भी बहुत फैलती है घरों में बड़े छोटे को उपहार स्वरूप खर्ची देते हैं पूजा अर्चना किसी तालाब, नदी ,कुएं पास की जाती है हालांकि आजकल तालाब,कुएँ की कमी की वजह से अब लोग घर और गुरुद्वारों में ही पूजा करते हैं।
पूजा की सारी सामग्री जिसमें गज,कूपड़ जल मे अपित किए जाते है। इस दिन बेटियों को उपहार स्वरूप सभी ,व्यंजन, फल थदड़ी का ढि्ण भेजा जाता है।

सिंधु समुदाय के द्वारा हजार वर्षों से बनाया गया एक खास त्यौहार होता है इसके पीछे कई कथाएं भी प्रसिद्ध है जिसमें मानता है कि मोहनजोदड़ो कल में खुदाई के समय माता की मूर्ति प्राप्त हुई थी तब से उन्हें प्रकृति अपदाओ से बचाव हेतु पूजा रचना की जाती है। दूसरी कथा में देवरानी जेठानी ठंडा पकाती है मगर किसी करण देवरानी बच्चों को सुलाने जाती है और उसे खुद नींद आ जाती है जेठानी ठंडा पकाकर पूजा अर्चना कर देती है वह देवरानी को बुलाना भूल जाती है जिसकी वजह से पूरे वर्ष पर उसका बच्चा बीमार रहता है और जब अगले वर्ष थदडी़ माता की पूजा की जाती है तो बच्चा स्वस्थ होता है।
इस दिन समाज के लोग सामूहिक रूप से पूजा अर्चना भी करते हैं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी करते हैं। आधुनिकता में कुछ स्वरूप बदल गया मगर मूल उद्देश्य आज भी वही है।
ट्विंकल आडवाणी
बिलासपुर,छत्तीसगढ़