अभीष्ट सिद्धि के लिए कन्या पूजन अति आवश्यक : महामन्त्री हंसदास।

नवरात्रि पर्व के दौरान कन्या पूजन की पावन परंपरा अत्यंत प्राचीन है। कन्या पूजन करके ही दैवीय लाभ का अधिकारी बनना संभव होता है। कन्या पूजन करने से नारी के प्रति पवित्र दृष्टि, पवित्र भावना, पवित्र सोच का मन-मस्तिष्क, अंतःकरण में जन्म होता है। इसके अभाव में अभीष्ट कार्य की सिद्धि संभव नहीं होती है।

नवरात्र अनुष्ठान की सफलता कन्या पूजन, ब्रह्म दक्षिणा, ब्रह्म भोज पर आधारित है, जिसमें मन की पवित्रता अभीष्ट रूप में फलदायक, लाभप्रद व कल्याणकारी है। कन्या के प्रति मन की पवित्रता, शुचिता, वंदन, पूजन का भाव ही अनुष्ठान का सही ध्येय है। इसलिए दो बड़ी नवरात्रि अनुष्ठान में कन्या पूजन का विशेष महत्व है।

कन्याएं साक्षात‍् देवी का रूप होती हैं। वे शक्तिस्वरूपा हैं। वे अत्यंत पवित्र मानी जाती हैं। नौ दिन कन्या पूजन श्रेष्ठ है, लेकिन संभव न हो तो अष्टमी व नवमी तिथि के दिन तीन से नौ वर्ष की कन्याओं का पूजन किए जाने की परंपरा है।

धर्मशास्त्रों के अनुसार ०१ कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, ०२कन्याओं की पूजा से भोग और मोक्ष, ०३ कन्याओं की पूजा-अर्चना से धर्म, अर्थ व काम, ०४ कन्याओं की पूजा से राज्यपद, ०५ कन्याओं की पूजा से विद्या, ०६ कन्याओं की पूजा से छह प्रकार की सिद्धि, ०७ कन्याओं की पूजा से राज्य, ०८ कन्याओं की पूजा से संपदा, अष्टसिद्धि और ०९ कन्याओं की पूजा से नवनिधि तथा पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है।

शास्त्रों में ०२ साल की कन्या कुमारी, ०३ साल की त्रिमूर्ति, ०४ साल की कल्याणी, ०५ साल की रोहिणी, ०६ साल की कालिका, ०७ साल की चंडिका, ०८ साल की शांभवी, ०९ साल की दुर्गा और १० साल की कन्या सुभद्रा मानी जाती हैं। भोजन कराने के बाद कन्याओं को दक्षिणा देनी चाहिए।
इस प्रकार महामाया भगवती प्रसन्न होकर मनोरथ पूर्ण करती हैं। कन्या के पैर धो कर उन्हें आसन पर बैठाएं। हाथों में मौली बांधें, माथे पर रोली से तिलक लगाएं। भगवती दुर्गा को उबले हुए चने, हलवा, पूरी, खीर, पूआ व फल आदि का भोग लगाया जाता है। यही प्रसाद कन्या को भी दिया जाता है। कन्या को लाल चुन्नी और चूड़ियां भी चढ़ाई जाती हैं।

कन्या पूजन की विधि-सर्वप्रथम कन्याओं के घर पर आने के बाद एक बड़ी थाली में पानी में थोड़ा सा दूध और फूल डाल लें और कन्याओं के पैर इसमें धुला दें। साफ कपड़े से पैरों को पोंछ दें और चरण स्पर्श करें। अब कन्याओं को बैठाएं और माथे में हल्का घी लगाने के साथ सिंदूर लगाएं। इसके बाद अक्षत लगाएं और फूल अर्पित करने के साथ चुनरी पहनाएं। इसके बाद पूरी श्रद्धा के साथ पूरी, चना, हलवा या फिर अपनी योग्यता के साथ भोजन खिलाएं।

भोजन कराने के बाद कन्याओं को उपहार के साथ कुछ पैसे दें और पैर छूकर उनका आशीर्वाद लें और भूल चूक के लिए माफी मांग लें। अंत में कन्याओं के हाथ में थोड़े-थोड़े कच्चे चावल दें और घर में मौजूद महिला अपने पल्लू में उन्हे ले लें। इसके बाद कन्याओं को सम्मान के साथ विदा करें। कन्याओं को विदा करने के बाद चावल और पैर धोएं हुए पानी को पूरे घर में छिड़क दें। कन्याओं को घर से विदा करते समय उनसे आशीर्वाद के रूप में थपकी लेने की भी मान्यता है।

ध्यान रहे कि कन्याओं के साथ एक भैरव यानी लड़के का भी पूजन होता है। कन्या पूजन में 9 कन्याओं के साथ लंगूर (भैरव) को बैठाया जाता है और इसकी भी पूजा की जाती है। कन्याओं की थाली में जो भी भोग परोसे जाते हैं वही भोग लंगूर की थाली में भी परोसे जाते हैं। इसके बाद इनके पैर छूकर आशीर्वाद लिए जाते हैं और दक्षिणा देकर विदा किया जाता है। नवरात्रि में कन्या पूजन और भैरव पूजन करने के बाद ही व्रत सफल होता है और माता रानी के आशीर्वाद से घर पर सुख-समृद्धि बनी रहती है।