सावरकर एक स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिवीर, जननायक, कालजयी साहित्यकार और शिक्षाविद थे…प्रोफेसर शुक्ला

बिलासपुर। अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय,में राष्ट्रीय समाज विज्ञान परिषद् के छठे अधिवेशन में शामिल होने बिलासपुर पहुंचे मुख्य वक्ता प्रो. सुधांशु कुमार शुक्ला (हंसराज महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय) ने ‘समग्र सामाजिक विकास और सावरकर की चिंतन दृष्टि’ विषय पर अपनी बात रखी। मंगलवार को बिलासपुर प्रेस क्लब में उन्होंने पत्रकारों से भी चर्चा की। इस दौरान उन्होंने कहा कि सावरकर एक स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिवीर, जननायक, कालजयी साहित्यकार और शिक्षाविद थे। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का केंद्र बिंदु मातृभाषा में शिक्षा देने की बात जो आई है वह सावरकर जी ने सबसे पहले सन 1910 में ही कह दी थी। उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में भी स्वीकारा। यही कारण है कि भारत की 22 भाषाओं में चिकित्सा, इंजीनियरिंग की बात ही नहीं हो रही है बल्कि AICTE के द्वारा दस हजार पुस्तकों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत VAC और SEC पाठ्यक्रम के द्वारा मूल्य आधारित शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा की बात भी सावरकर के चिंतन में दिखाई पड़ती है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि राष्ट्र निर्माण में भागीदारी, सहकारिता का भाव युवकों में एक ऊर्जा, उमंग, जोश पैदा करने से मेरा, हमारा देश का भाव संचार हो रहा है।

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सावरकर जी ने विदेशी ज्ञान-विज्ञान को कभी गलत नहीं ठहराया, उन्होंने ‘संगीत उत्तर क्रिया’ नाटक में यशवंतराव के मुख से कहलाया ‘फ्रांसीसी सरदार का दिल अच्छा था, गुणग्राही था। उसी ने मुझे फ्रांसीसी सेना में भर्ती करवाया और फिर कई लड़ाइयों में बहादुरी से लड़ने के कारण मेरा नाम हो गया। इंग्लैंड, अमेरिका आदि देश घूमा और ज्ञान प्राप्त करके अपनी मातृभूमि की सेवा में आ गया।’ इस संत ने दलित विमर्श-स्त्री विमर्श के बीज भी डॉ. अंबेडकर के समान 1925 में ही बो दिए थे। शिक्षा अगर बौद्धिक, व्यावसायिक, प्रौ‌द्योगिकी, नैतिक और आध्यात्मिक होगी तो निश्चित रूप से समाज का बहुमुखी विकास होगा। इक्कीसवीं सदी का भारत आज विकसित भारत, नव भारत, मेक इन इंडिआ, स्किल इंडिया, खेलो इंडिया, स्टार्टअप भारत बनकर 2047 तक विश्व गुरु की गरिमा पाने को लालायित है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के शब्दों में यह शिक्षा नीति नए युग की शुरुआत के बीज रोपित करेगी, जो 21 वीं सदी के भारत को नई दिशा देगी।

नौकरी पाने की नहीं, देने वालों की चर्चा होगी। डॉ. शुक्ला ने प्रधानमंत्री जी को श्रीकृष्ण जैसा सारथी कहकर देशवासियों को सेवा भाव में संलग्न होने की बात कही,सारथी स्वयं बेड़ा पार करेंगे। सावरकर का चिंतन समुद्र जैसा अगाध है। तीनों भाइयों के त्याग और कुर्बानी को याद किया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि शहीद भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, मदन लाल ढींगरा, श्यामजी कृष्ण वर्मा सभी सावरकर को अद्भुत नायक मानते थे। विश्व का ऐसा व्यक्ति जिसकी पुस्तक ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ तीन देशों से प्रकाशित होने से पहले ही जब्त कर ली। यह इतिहास की पुस्तक नहीं है, यह स्वयं इतिहास है। हिन्दू-मुस्लिम एकता का दस्तावेज है। उन्होंने कहा कि सावरकर मानते थे कि भारतीयता ही हिंदू है समाज मिलकर चलेगा तभी देश तरक्की करेगा।

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राष्ट्रभाषा हिंदी है जो देश को बांधती है। 1905 में सावरकर ने विदेशी वस्तुओं के विरोध की बात कही थी।उन्होंने हिंदू सनातन की व्याख्या अच्छी की है। सावरकर का धर्म मानवता का धर्म है सभी धरती और इस देश की संताने हैं। विश्व का पहला व्यक्ति जिसे दो बार आजीवन कारावास की सजा मिली। हर पल हर दम भारत माता की बेड़ियाँ काटने को बेचैन यह युवाओं, वृद्धों, स्त्रियों का जननायक 26 फरवरी को संसार से विदा हो गया।
उन्होने यह भी बताया कि सावरकर अपनी संस्कृति से जुड़कर रहने की युवाओं को सदा प्रेरणा देते रहे। उन्होने मदनलाल ढोंगरा की जेल में मुलाकात की चर्चा भी की। उनकी कविता “अनादि मैं अनंत मैं अवध्य में भला’ गाई साथ ही अटल जी की कविता मौत से ठन गई गाकर समारोह में उत्साह भर दिया। आज हम अपनी जड़ो से जुड़कर आधुनिकता को अच्छाई को अपनाकर ज्ञान विज्ञान को पाकर वसुधैव कुटुम्बकम् की ओर बढ़ रहे हैं। विश्य में भारत भारतीयता की पताका लहराने लगी है।पत्रकार वार्ता के दौरान साहित्यकार डॉक्टर विनय कुमार पाठक,अरुण कुमार यदु भी मौजूद रहे।