होली का त्यौहार हो और सिंधी गीहर की बात ना हो तो ऐसा तो हो नहीं सकता है होली के त्यौहार में सिंधी समाज के द्वारा जो मिष्ठान खरीदा जाता है वह रिश्तेदारों को अपनी बेटियों को बहनों को ससुराल में भेजा जाता है और पूजा पाठ में भी इसका उपयोग किया जाता है वह मिष्ठान में सबसे पहले जो नाम आता है सिंधी गीहर का यह परंपरा पुराने समय से चली आ रही है समाज के हमारे जो बड़े बुर्जग थे आज भी इस परंपरा को पालन करते हुए आ रहे हैं पर अब पहले जैसे ज्यादा लोग नहीं बनाते है और ना ही लोग अब ज्यादा खरीदते भी नहीं हैं। पर शगुन के तौर पर होलिका दहन के समय पूजा में भी उपयोग किया जाता है
पहले शहर में जगह-जगह गीहर की दुकान लगती थी लोग बनाते भी थे पर अब धीरे धीरे यह सिलसिला खत्म होते जा रहा है। क्योंकि अब छोटी-बड़ी होटल में तरह-तरह के मिष्ठान बनाए जाते हैं एवं हर छोटी बड़ी होटल में गुजिया, मीठा समोसा, खस्ता,पापड़ी, तरह-तरह के नमकीनऔर अनेक प्रकार की चीज उपलब्ध रहती हैं।
चक्करभाटा के भाई रवि के द्वारा विगत 20 सालों से अपनी समाज की परंपरा को आगे बढ़ते हुए गीहर बनाते हैं वह चक्करभाटा एवं बिलासपुर में भी अनेक जगह और लोग होलिका के पूर्व ही आर्डर देते हैं और गीहर ले जाना शुरू कर देते हैं उन्होंने सिंधी कॉलोनी बिलासपुर में भी अपनी दुकान खोली है जो होली के आखिरी दिन तक रहेगी और यहीं पर शुद्ध ताजा प्रतिदिन गीहर बनाते हैं वह बेचते हैं और गीहर के साथ-साथ ,मिठा समोसा खस्ता गुझियां व नमकीन भी उपलब्ध रहता हैं उन्होंने बताया कि पिछले साल से ज्यादा रेट का फर्क नहीं है ₹10 ₹15 का अंतर है वह भी इसलिए क्योंकि तेल का रेट थोड़ा बढ़ गया है और मैदा शक्कर में थोड़ा उठाव है इस कारण,
सिंधी गीहर ₹150 किलो मीठा समोसा 240 रुपए किलो खस्ता 140 रुपए किलो गुंझीया ₹260 किलो नमकीन मिक्चर ₹150 किलो के भाव से वह उपलब्ध है उन्होंने बताया कि पिछले साल की तुलना इस बार आशा है कि ज्यादा माल बिकेगा
पर आज के युवा पीढ़ी इन सबको खाने में इंट्रेस्ट नहीं करती है। परन्तु हमें अपनी परंपरा को कायम रखना वह उसे संभालकर सझोंकर रखना है यह बहुत महत्वपूर्ण बात है और आज भी इस परंपरा को बनाए रखा है आज भी समाज के लोग 👫👬👭गीहर खरीदते हैं उसे पूजा , के अलावा भी घर में सभी लोग प्रसाद के रूप में इसे ग्रहण करते हैं , एवं सभी परिवारों में तरह-तरह के व्यंजन भी बनाए जाते हैं जो होली पर्व के दिन परिवार के सभी लोग मिलकर उसका आनंद लेते हैं। इसके साथ ही जो आसपास हमारी बहन बेटियां रहती हैं उन्हें भी गीहर, गुजिया घर में बनाए गए पकवानों शगुन के रूप में, होली पर्व पर भी भेजा जाता है।
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