क्या प्रशांत किशोर दूसरे केजरीवाल बनेंगे?

विजय की कलम

(संपादकीय)



बिलासपुर:- भारत देश में आजकल लोग पॉलिटिक्स में अपना करियर जमाने के लिए आगे बढ़ रहे हैं कोई सलाहकार बन रहा है तो कोई पार्षद विधायक सांसद चुनाव लड़ रहा है कोई अलग पार्टी बना रहा है हर किसी को किसी न किसी रूप में सत्ता    चाहिए और देखा देखी भी बहुत ज्यादा हो रही है एक ग्लैमर आ गया है राजनीतिक में पहले यह फिल्मी दुनिया में था पर अब यह सब राजनीतिक में देखने को मिल रहा है प्यार विश्वास तकरार धोखा फरेब दोस्ती प्रेम यह सब आजकल राजनीतिक में फिल्मी कहानी की तरह समा गया है आज से 10 साल पहले किसने सोचा भी नहीं था कि अन्ना के दाया बाया हाथ कहे जाने वाले केजरीवाल जन आंदोलन के एक नायक बनकर उभरे जिस पर अन्ना ने आंखें बंद करके विश्वास किया भारत की जनता ने विश्वास किया और अन्ना के इस आंदोलन को राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में पहचान मिली पर आज लोकपाल बिल कहां है वह कानून कहां है किसी को पता नहीं अब कोई इसके बारे में बात करना चाहता भी नहीं है पर इस आंदोलन से कुछ लोगों ने अपनी पहचान बनाई जिनमें एक है   केजरीवाल ,कुमार विश्वास और कई सहयोगी भी थे जो आज केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के सदस्य भी हैं और कुछ लोग पार्टी से निकले जा चुके हैं किसने सोचा नहीं था कि अन्ना के आंदोलन के जननायक केजरीवाल अन्ना से अलग
होकर राजनीतिक में आएंगे पार्टी बनाएंगे एक चालाक होशियार मजे हुए राजनीतिक की तरह उन्होंने अन्ना के आंदोलन में शामिल हुए और अपने आप को भ्रष्टाचार विरोधी नायक के तौर पर पेश किया फिर आम आदमी पार्टी बनाई जनता को लुभाने के लिए फ्री वाली रेवड़ी बार्टी और पहली बार दिल्ली में गैर भाजपा गैर कांग्रेस सरकार बनी जो 1 साल में ही सत्ता में आ गई और 10 साल तक सत्ता में काबीज है उसके बाद पंजाब में सरकार बनाई पर सत्ता में आने के बाद केजरीवाल का व्यवहार में बदलाव आ गया अब उनमें अलग राज नेताओं के गुण समा  गए और जो उसके विश्वास पात्र जो लोग थे जुड़े थे उनसे वह दूर होते गए और उन्हें अंत में पार्टी से निकलना गया क्योंकि वह अन्ना के सच्चे सिपाही थे और वह सच के लिए लड़ रहे थे सत्ता के लिए नहीं पर जीसे  सत्ता की बुख हो उसे रिश्ते नाते से कोई मतलब नहीं होता है जो व्यक्ति जेल में रहकर सरकार चलाएं और उस व्यक्ति के बारे में और क्या कह सकते हैं सभी समझदार हैं यह बात तो पुरानी हो गई अब नई बात जो अभी हाल ही में सुर्खियों में बनी है वह है,रणनीति कार से राज नेता बने
जन सुराज पार्टी के संयोजक प्रशांत किशोर, यह किसी आंदोलन से नहीं आए हैं बल्कि यह राजनीतिक से आंदोलन में आए हैं कई राष्ट्रीय पार्टी और क्षेत्रीय पार्टी
में रहकर काम कर चुके हैं चुनाव में काम कर चुके हैं एक रणनीतिकार के तौर पर सलाहकार के तौर पर भाजपा कांग्रेस पार्टी में काम कर चुके हैं ओर उन्हें सत्ता तक पहुंचा भी चुके हैं इतना सब कुछ होने के बाद भी वह चाहते तो किसी भी पार्टी से जोड़कर केंद्रीय मंत्री बन सकते थे पर नहीं बने किसी पार्टी में शामिल नहीं हुए और उन्होंने सब   पार्टी को अलविदा कह दिया और एक संगठन बनाकर लोगों को जागृत करने के लिए उनके हक की लड़ाई लड़ने के लिए जन जागरण यात्रा निकाली बिहार से ओर वह बिहार के ही रहने वाले है और बिहार की जनता को जागृत करने के लिए उनकी आवाज बनने के लिए निकल पड़े बिहार की गांव और सड़कों पर पर जैसा की सब जानते हैं सत्ता की सीढ़ी चढने के लिए जनता के पास आना जरूरी रहता है और कोई ना कोई आदोलन खडा़ करना पड़ता है
जनता के साथ मिलकर, जनहित के मुद्दे उठाने पढते है
  किसी भी  पार्टी में नहीं जाऊंगा बोलने वाले प्रशांत किशोर ने आखिर अपने पत्ते खोल दिए और अपनी राजनीतिक पार्टी बना ली जिसका नाम रखा जन सुरार्ज पार्टी के संयोजक  है और अध्यक्ष रिटायर सरकारी अफसर को बनाया है यह सब एक छोची समझी रणनीति के तहत किया गया है गांव गांव घूम कर जनता की नज़ब  को टटोल कर 2025 के बिहार के विधानसभा चुनाव में लड़ने के लिए तैयार हैं पार्टी बना ली अब पार्टी का विस्तार करेंगे और वही खेल खेल रहे हैं जो केजरीवाल ने खेला था और उसी की राह पर चल रहे हैं पहली राजनीतिक घोषणा उन्होंने कर दी है कि सरकार बनने पर बिहार में शराबबंदी हटा दी जाएगी और उसका कारण बता रहे हैं कि बिहार के विकास के लिए जो पैसे की जरूरत है शराब बेचकर 20000 करोड रुपए जो मिलेंगे वह पढ़ाई लिखाई में विकास में खर्च किए जाएंगे इन्होंने एक तीर से दो निशाने लगाए हैं पहला जो पीने वाले हैं उनको अपना पक्का वोट बैंक बना दिया ताकि वह उनहे वोट देंगे, शराबी बंधी हटाएगे बोल दिया है उनहे खुश कर दिया है
  दूसरा पढ़ाई विकाश के नाम पर कहा कि पैसे को लगाएंगे तो दूसरे निचले तबके   के भी लोगों को भी खुश करने के लिए यह घोषणा किया है ताकि वह भी पक्के वोट बैंक बन जाए इन्हें पता है की पहली बार में बिहार जैसे राज्य में सत्ता पाना आसान नहीं है पर अगर 20 से 30 सिटे जीत लिया तो किंग मेकर की भूमिका निभा सकता हूं जिस तरह नीतीश कुमार हर बार दोनों पार्टीयो से बारी बारी सहयोग लेकर मुख्यमंत्री बनते रहे हैं और कम सिट प्राप्त करने के बाद भी तो वह क्यों नहीं बन सकते हैं यह रणनीति पर काम करते हुए उन्होंने अपने पत्ते खुलने शुरू कर दिए हैं देखना  है क्या  कि 2025 में विधानसभा चुनाव में बिहार की जनता कितना सहयोग करती है कितना सपोर्ट करती है और कितनी सिटे यह जीत पाते हैं क्या यह किंग मेंकर की भूमिका निभा पायेंगे यह तो समय ही बताएगा पर उनके सपने क्या हैं इन्होंने अभी से ही बता दिए हैं
केजरीवाल की राह पर चलकर बिहार का मुख्यमंत्री बनना चाहते  है,


भवदीय
विजय दुसेजा